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चढ़ावे के फूलों के इस नए रूप में छिपी है पराक्रम की नई परिभाषा !

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न्यूज़ डेस्क : नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए बांसुरी अय्यर): शायद आपको इस बात का अंदाजा नहीं होगा  कि देश में हर साल करीब 80 लाख टन फूलों को नदियों में बहा दिया जाता है। ये फूल नदी में दूसरे कचरों के साथ मिल कर नदी को प्रदूषित करने का काम करते हैं। इन फूलों को उपजाने में जमीन में जिन रासायनों  का इस्तेमाल जाता है उनका प्रदूषण भी नदीं  के पानी में मिल कर उसे जहरीला बना देता है।

कानपुर में महिलाओं का एक उद्यमी समूह इस परिपाटी को बदलने में लगा है और उसने फूलों के इस कचरे को एक नया  रूप देकर ना सिर्फ नदियों के प्रदूषण को किया है बल्कि रोजगार के एक नए जरिए को भी खोज निकाला है।

इन उद्यमी महिलाओं के समूह में 100 महिलाएं शामिल हैं और ये सभी अंकित अग्रवाल के फूल डॉट को का हिस्सा है। ये समूह कानपुर में गंगा नदी में से फूलों का कचरा हटाता है। अंकित की टीम में अधिकतर महिलाएं हैं। वे नदी के किनारों और मंदिरों से फूलों को उठाती हैं और उसे रिसाइकिल कर अगरबत्ती और धूप बनाती हैं। यही नहीं, इन फूलों से रंग भी बनाया जा रहा है और होली में उनका इस्तेमाल किया जाता है। अंकित बताते हैं कि, आमतौर पर भारतीय पूजा के फूलों को नदियों में प्रवाहित करना पसंद करते हैं। इसके अलावा विभिन्न नदियों की आरती करते  हुए लोग नदियों में फूल प्रवाहित करते हैं। ये लोग फूलों को दूसरे कचरों के साथ मिलाना नहीं चाहते।

फूल डॉट को, की कोशिश नदियों में फेंके जाने वाले इस फूल की परंपरा को हतोत्साहित करने की है। वे इन फूलों से अगरबत्ती बनाते हैं। अगरबत्ती के पैकेटं पर किसी देवी-देवता की तस्वीर नहीं होती। अगरबत्ती बनाने में तुलसी के बीज का भी इस्तेमाल किया जाता है। फूल डॉट को  के अनुसार, नदियों में सीवेज, औद्योगिक और घरेलू कचरे भी पहुंचते हैं। फूलों को उगाने के लिए जिस किसी भी कीटनाशक का इस्तेमाल होता है वो नदी के पानी के साथ मिल जाता है जिससे पानी अत्यधिक जहरीला हो जाता है।

अच्छी बात ये है कि फूल डॉट को की इस पहल को सहायता देने के लिए टाटा उद्योग समूह ने हाथ आगे बढ़ाया है और उसमें निवेश किया है। गौर करने वाली बात ये हैं कि इस समूह में शामिल अधिकतर महिलाएं पहले हाथ से मैला ढोती थीं या घर पर खाली बैठी थीं। इस पहल से उनके सामने एक नई रोशनी का उदय हुआ जिसके चलते ना सिर्फ उन्हें रोजगार का मौका मिला है बल्कि उन्हें एक आत्मसम्मान और नई पहचान भी मिली है। साथ ही उनके इस नए कौशल से गंगा जैसी पवित्र नदी की स्वच्छता के मिशन में योगदान भी मिल रहा है।

फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया

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