बेंगलुरू( गणतंत्र भारत के लिए पंखुड़ी अय्यर):
जिज्ञासा और उद्यम जुनूनी लोगों की फितरत होती है। चुनौतियां अगर सामने मौजूद हों तो जुनून और भी बढ़ जाता है।अब संजीव अर्जुन गौर को ही लीजिए, उनके स्टार्ट अप धक्का ब्रेक्स ने एक ऐसे पुनर्उत्पादक ब्रेक सिस्टम को इजाद किया है जिसे इस तरह से डिजाइन किया गया है ताकि रिक्शाचालकों का काम आसान हो सके। इसमें ब्रेक के इस्तेमाल के समय रिक्शे की गति को संरक्षित रखा जाता है और ब्रेक छोडऩे के बाद वापस उसी संरक्षित गति से रिक्शे को आगे बढऩे में मदद मिलती है।
रिक्शे पर बैठे तो विचार आया
गौर के दिमाग में ये खय़ाल अचानक उस दिन आया जब उनकी कार खराब हो गई और उन्हें दिल्ली की भीड़ भरी सडक़ पर रिक्शे से सफर करना पड़ा। उन्होंने महसूस किया कि भीड़ भरी सडक़ पर बार- बार रिक्शा चालक को ब्रेक लगना पड़ता था और फिर से उसे गति देने के लिए काफी ताकत लगानी पड़ती थी। गौर का ध्यान इस बात पर भी गया कि इसी कारण रिक्शाचालक की हमेशा कोशिश रहती थी कि उसे ब्रेक ना लगाना पड़े।
साइकिल रिक्शा चालक को भीड़ भाड़ वाली सडक़ों पर कई बार ब्रेक लगाने के बाद रिक्शे को हाथ से खींचते हुए पैदल चलना पड़ता था। ये सब इतनी जल्दी और बार-बार होता है कि उसे तीन से चार किलोमीटर के फासले में लगभग हर दो मिनट बाद ऐसा करना पड़ता था। गौर ने कई रिक्शाचालकों से इस बारे में बात की और फिर उन्हें इस बात पर यकीन हो गया कि ब्रेक के बाद रिक्शे को फिर से गति देने के काम में उन्हें कम से कम चार से पांच गुना ज्यादा मेहनत खर्चनी पड़ती है।
चुनौतियां भी कम ना थी
गौर अपने खोज के बारे में याद करते हुए बताते हैं कि, इन बातों से मेरे दिमाग में ये विचार कौंधा कि मैं स्प्रिंग के साथ एक ऐसा उपकरण तैयार कर सकूं जिसमें रिक्शे की गति को संरक्षित किया जा सके और ब्रेक हटाने के साथ रिक्शे को आगे धकेलने के काम में उसका उपयोग हो सके। आमतौर पर ब्रेक लगाने से ये गति बरबाद हो जाया करती थी।
फिर क्या था, गौर अपनी सोच को अंजाम देने के काम में जुट गए। सात साल कब बीते पता नहीं चला। उनके सामने दो चुनौतियां थी- उनका उत्पाद किफाती हो ताकि उसे गरीब रिक्शाचालक खरीद सकें। दूसरा, उसका वजन कम से कम तो ताकि उसके चलते रिक्सा चालक पर अतिरिक्त बोझ ढोने का भार ना बढ़े। दोनों ही काम हुए। उनका उपकरण छब बार परीक्षण के दौर से गुजर कर तैयार हुआ। बेयरिंग की जगह पर एसप्रोकेट का इस्तेमाल करके इस पर होने वाले खर्च को 500 रुपए तक कम किया जा सका। इस उपकरण की कुल कीमत 2500 रुपए है। गौर ने उपकरण की आवाज और वजन घटाने के लिए इसके डिजाइन में बदलाव किया। उन्होंने बताया कि, इस उपकरण का पहला प्रोटोटाइप 22 किलो का था और फिर से स्टार्ट करने पर बहुत तेज आवाज करता था। इसे सुधारने के लिए हमने बार बार इसमें बदलाव किए – सात सालों में छह बार बदलाव के दौर से गुजरना पड़ा। इस यांत्रिक उपकरण को सही तरह से बनाने में हमारा बहुत वक्त खर्च हुआ। गौर ने इस पर होने वाले भारी खर्च को वहन नहीं कर पाने की वजह से इसे बीच में ही छोड़ देने का भी विचार किया। अब हमारे सामने एक ऐसा उपकरण हैं जो व्यावहारिक है और उसका वजन सिर्फ 7 किलो है।
धक्का ब्रेक उपकरण में रिक्शे के पिछले एक्सेल पर एक घुमावदार स्प्रिंग का इस्तेमाल किया जाता है। गौर का कहना है कि, अब तक साइकिल रिक्शा के अगले पहिए में ब्रेक लगा होता है इसलिए ये असुरक्षित होता है और इसके पलटने का खतरा बना रहता है। धक्का ब्रेक के इस्तेमाल से वाहन कहीं ज्यादा सुरक्षित रहता है क्योंकि इसमें पिछले पहिए से ब्रेक लगाने का काम होता है और वही ज्यादातर वजह उठाने का काम भी करता है।
जरूरतमंद तक पहंच सके उत्पाद
गौर, धक्का ब्रेक्स के अपने इस अविष्कार को सभी जरूरतमंद मेहनतकशों तक पहुंचाना चाहते हैं। उन्हें इस काम में तमाम दूसरे संगठनों और संस्थानों से मदद भी मिल रही है। देखना होगा कि गौर की इस खोज से भारत के मेहनतकश रिक्शा चालकों के जीवन में कितना फर्क पड़ रहा है। गौर की योजना इस उपकरण के उत्पादन और उसके संयोजन की है। वे शुरुआत में दिल्ली में वितरण के लिए 500 से 1000 इकाइयों के उत्पादन का लक्ष्य रखते हैं। वे कहते हैं कि, ( हम जिन एनजीओ ( गैर सरकारी संगठनों) के संपर्क में हैं वे हमसे उपकरण ख्ररीद कर उसे उन रिक्शाचालकों को देना चाहते हैं जो उनसे जुड़े हुए हैंं। ) आगे जाकर गौर को उम्मीद है कि वे पूरे देश में धक्का ब्रेक्स के लिए बाजार तलाश पाएंगे।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया