नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र): मीडिया की आजादी को लेकर विवादों और अदालत तक मामले पहुंचने के क्रम के बीच नरेंद्र मोदी सरकार के एक और फैसले ने विवाद खड़ा कर दिया है। सरकार ने सेंट्रल सिविल सर्विसेंज़ (पेंशन ) नियम – 1972 में संशोधन करते हुए सुरक्षा और अभिसूचना से जुड़े रिटायर्ड अधिकारियों पर नरेंद्र मोदी सरकार की मौजूदा नीतियों पर टिप्पणी करने से रोक लगा दी है। इस संशोधन के तहत वे बिना पूर्वानुमति के मीडिया से बात नहीं कर पाएंगे और लेख या किताब वगैरह नहीं लिख पाएंगे।
इन संशोधनों को नियम 8 के तहत लागू किया गया है जिसमें पेंशन को भविष्य में अच्छे आचरण से जोड़ा गया है। इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि इन नए दिशानिर्देशों का जरा भी उल्लंघन हुआ तो रिटायर्ड अधिकारी की पेंशन खतरे में पड़ जाएगी। साल 2008 में पेंशन नियमों में हुए संशोधन में सिर्फ ऑफीशियल सीक्रेट एक्ट और आपराधिक कानून के तहत अधिकारियों से अपेक्षा की गई थी कि वे संवेदनशील जानकारियों को उजागर नहीं करेंगे।
31 मई 2021 को कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय जो प्रधानमंत्री खुद देख रहे हैं की तरफ से जारी गजट नोटीफिकेशन में कहा गया है कि, कोई भी सरकारी कर्मचारी जिसने अभिसूचना या सुरक्षा संबंधी संगठनों में काम किया हो वो संगठन के मुखिया की पूर्वानुमति के बिना सेवानिवत्त होने के बाद किसी तरह के लेखन या प्रकाशन का काम नहीं कर सकता।
गजट में लेखन या प्रकाशन के बारे में विभागीय कार्य़, विशेषज्ञता और अनुभव के इस्तेमाल संबंधी कई तरह की बंदिशें लगाई गई हैं। नए नियमों में इन अधिकारियों पर मीडिया से संपर्क संबंधी भी कई बंदिशें लगाई गई हैं।
इन नियमों के तहत जिन 18 संगठनों को ऱखा गया गया है उनमें इंटेलीजेंस ब्यूरो, रॉ, रेवेन्यू इंटेलीजेंस निदेशालय, सेंट्रल इकोऩॉमिक इंटेलीजेंस ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, एवियेशन रिसर्च सेंटर, स्पेशल फ्रंटियर फोर्स, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, इंडो –तिब्बतन बॉर्डर पुलिस, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, एनएसजी, असम रायफल्स, स्पेशल सर्विस ब्यूरो, अंडमान निकेबार -स्पेशल ब्रांच (सीआईडी), दादरा नागर हवेली की क्राइम ब्रांच – सीआईडी-सीबी और लक्षद्वीप पुलिस की विशेष शाखा शामिल है।
तमाम सेवानिवृत्त अधिकारी सरकार के इस कदम से बेहद चिंतित हैं। वे मानते हैं सरकार इस समय हर हाल में पूरे परिदृश्य को अपने अनुकूल बनाने की कोशिश में जुटी है। इन अधिकारियों को आशंका है कि अब सरकार की मुखालफत करने वाले या सरकारी नीतियों पर सवाल उठाने वाले अधिकारियों की पेंशन खतरे में पड़ सकती है। देखा गया है कि, क़स्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप सरीखे संगठनों में सुरक्षा और अभिसूचना से जुड़े कुछ पूर्व अफसर शामिल हैं और वे विभिन्न विषयों और संदर्भों पर लिखते-पढ़ते रहते हैं। कई बार उन्होंने सरकार के कदमों पर भी सवाल उठाए हैं जिससे सरकार को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है।
ऐसी ही सेवा से रिटाटर हुए एक अफसर का कहना है कि, सरकार इस समय चारो तरफ अपनी आलोचनाओं से घिरी हुई है। इसमें सरकारी तंत्र से जुड़े अफसरों का मुखर विरोध भी शामिल है। पेंशन को शर्तों में बांध कर सरकार ऐसे लोगों को दबाव में लेना चाहती है जो व्यवस्था के पेंचों को भलीभांति समझते हैं।
सरकार पर सवाल
इस बीच, भारत सरकार में वरिष्ठ पदों पर रहे तीन अफसरों ने नौकरशाहों के बारे में सरकारी रवैये पर नाराजगी जाहिर की है। रिटायर्ड कैबिनेट सेक्रेटरी बीके चतुर्वेदी, डीओपीटी में सचिव रहे सत्यानंद मिश्र और पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई ने कहा है कि सरकार ऐसे काम कर रही है जिससे नौकरशाही का मनोबल टूट रहा है। उन्होंने पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव आलापन बंदोपाध्याय के साथ हुए व्यवहार पर भी नाराजगी जताई और कहा कि आजाद भारत के इतिहास में किसी वरिष्ठ नौकरशाह के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं किया गया। आमतौर पर किसी भी नौकरशाह को केंद्र में प्रतिनियुक्ति का बाकी प्रक्रिया पूरी होने के बाद 6 दिन और ट्रेवेलिंग टाइम दिया जाता है लेकिन यहां जिस तरह से फरमान सुनाया गया वो सर्वथा अनुचित और नियमों के खिलाफ था।
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