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यूपी- बिहार, एमपी और झारखंड के हिस्से सबसे ज्यादा गरीबी और कुपोषण….!

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क ) :बिहार,  झारखंड और उत्तर प्रदेश देश के सबसे गरीब राज्य हैं। इसके अलावा  बिहार में कुपोषित लोगों की संख्या सबसे अधिक है। इसके बाद झारखंड,  मध्य प्रदेश,  उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ का स्थान है। बाल और किशोर मृत्यु दर के मामले में उत्तर प्रदेश की हालत सबसे खराब है जबकि उसके बाद नंबर बिहार और मध्य प्रदेश का आता है। ये चौंकाने वाले आंकड़े नीति आयोग के बहुआयामी ग़रीबी सूचकांक के निष्कर्ष हैं। एक तरफ जहां दावा किया जा रहा है देश चौतरफा विकास कर रहा है, देश के सबसे बड़े राज्य उत्त्तर प्रदेश की स्शिति का ये शर्मनाक पहलू है। आश्चर्य तब और बढ़ जाता है जब इन फिसड्डी राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश वे राज्य हैं जहां केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का ही शासन है और कहा जाता है कि इन राज्यों में डबल इंजन की सरकार काम कर रही है।

सबसे अधिक गरीब बिहार     

बहुआयामी सूचकांक के अनुसार,  बिहार की आधे से ज्यादा (51.91 प्रतिशत) जनता गरीब है। झारखंड में 42.16 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 37.79 प्रतिशत आबादी गरीबी में रह रही है। सूचकांक में मध्य प्रदेश 36.65 प्रतिशत के साथ चौथे स्थान पर है। मेघालय 32.67 पांचवें स्थान पर है।

केरल में सबसे कम गरीबी

गरीबी को मात देने वालों में केरल सबसे अव्वल है। केरल 0.71  प्रतिशत, गोवा 3.76 प्रतिशत,  सिक्किम 3.82  प्रतिशत,  तमिलनाडु 4.89 प्रतिशत और पंजाब 5.59 प्रतिशत के साथ सबसे कम गरीबी वाले राज्य हैं।

बेहाल बिहार

बिहार में कुपोषित लोगों की संख्या सबसे अधिक है। झारखंड,  मध्य प्रदेश,  उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ का स्थान उसके बाद है। मातृत्व स्वास्थ्य से वंचित आबादी का प्रतिशत, स्कूली शिक्षा से वंचित आबादी, स्कूल में उपस्थिति और खाना पकाने के ईंधन तथा बिजली से वंचित आबादी के प्रतिशत के मामले में भी बिहार का सबसे खराब प्रदर्शन है।

य़ूपी का हाल भी खराब

बाल एवं किशोर मृत्यु दर के मामले में उत्तर प्रदेश की स्थिति सबसे खराब है। इसके बाद बिहार और मध्य प्रदेश का नंबर आता है। स्वच्छता से वंचित आबादी के मामले में झारखंड का प्रदर्शन सबसे खराब है जबकि बिहार और ओडिशा उसके बाद आते हैं।

 क्या होते हैं सूचकांक के मानक

बहुआयामी गरीबी सूचकांक में मुख्य रूप से परिवार की आर्थिक हालात और अभाव की स्थिति को आंका जाता है।  भारत में सूचकांक में तीन आयामों, स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के मूल्यांकन को आधार बनाया गया है। पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, प्रसवपूर्व देखभाल, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने के ईंधन, स्वच्छता, पीने के पानी, बिजली, आवास, संपत्ति तथा बैंक खाते जैसे 12 मानकों के आधार पर आंकड़ों को एकत्र किया जाता है।

केंद्र सरकार के कैबिनेट सचिवालय ने वर्ष 2020 की शुरुआत में वैश्विक रैंकिंग में भारत की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से निगरानी,  विश्लेषण और मूल्यांकन के लिए 29 वैश्विक सूचकांकों की पहचान की। सुधार और विकास के लिए वैश्विक सूचकांक प्रणाली के तहत नीति आयोग को बहुआयामी गरीबी सूचकांक को तैयार करने के लिए नोडल एजेंसी बनाया गया।  भारत का राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डवलपमेंट इनीशिएटिव (ओपीएचआई) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा विकसित विश्व स्तर पर स्वीकृत और मजबूत पद्धति का उपयोग कर तैयार किया जाता है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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