नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ): लोकसभा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारतीय संघ और आइडिया ऑफ इंडिया को लेकर कुछ सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि भारत विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं, लोकाचारों का अद्भुद संगम है और इसकी विभिन्नता में ही एकता के सूत्र निहित हैं। जरूरी है कि सभी का सम्मान हो और किसी को भी अपने देश में खुद को कभी कमतर न आंकना पड़े। राहुल गांधी ने ये भी कहा कि लगता है कि देश में एक राजा है और पूरा देश उसका अनुपालक।
राहुल गांधी के इस भाषण से कुछ दिनों पहले गणतंत्र दिवस पर कुछ इसी तरह की चिंता तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के.स्टालिन ने अपने पत्र में जाहिर की। ये पत्र उन्होंने देश के विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के लिखा। पत्र में उन्होंने कहा कि देश के सामने इस समय कट्टरता और मजहबी एकाधिकार का खतरा मंडरा रहा है और सभी राजनीतिक दलों को एक मंच पर आकर इस खतरे का मुकाबला करना चाहिए। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर इस दृष्टि से ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस बनाने की पहल की।
स्टालिन ने अपने पत्र में लिखा कि, ‘आज जब मैं य़े पत्र लिख रहा हूं, हमारा विशिष्ट, भिन्नताओं से भरा और ढेर सारी संस्कृतियों वाला संघ कट्टरता और मजहबी एकाधिकार के खतरे के सामने खड़ा है। इन खतरों से हम तभी मुकाबला कर सकते हैं जब समानता, आत्म सम्मान और सामाजिक न्याय में विश्वास करने वाली शक्तियां एकजुट होंगी। ये कोई राजनीतिक फायदे का सवाल नहीं हैं बल्कि हमारे गणराज्य की बहुलवादी पहचान को फिर से स्थापित करने का प्रश्न है जैसा कि हमारे देश के निर्माताओं ने सोचा था।‘
स्टालिन ने कहा कि, ‘सामाजिक न्याय के विचार का सीधा और सरल सा मतलब है- सभी के लिए सभी कुछ। अवसरों की समानता के जरिए ही हम उस समाज को बना सकते हैं जो हमारे संविधान निर्माताओं ने सोचा था।‘
स्टालिन ने ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस की स्थापना गणतंत्र दिवस के दिन की और उन्होंने देश के सभी राजनीतिक दलों को इसमें शामिल होने का न्यौता दिया। स्टालिन ने देश के 37 जाने-माने नेताओं को भेजे पत्र में देश के सामने मौजूद खतरों का जिक्र करते हुए सभी से एकजुट होने की अपील की। स्टालिन ने जिन नेताओं को पत्र भेजा उनमें कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव, फारूक अब्दुल्ला, ममता बनर्जी, शरद पवार, सीताराम येचुरी, डी राजा, चंद्रबाबू नायडू, के चंद्रशेखर राव, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे शामिल हैं। इसके अलावा, एआईएडीएमके के कोऑर्डिनेटर पनीरसेलवम, पीएकके के संस्थापक ए रामडॉस और वाइको को भी पत्र भेजा गया।
उन्होंने पत्र में बताया कि सामाजिक न्याय के लिए गठित उनका मंच वो रोडमैप तैयार करेगा जिस पर चलकर भारत में सामाजिक न्याय की लड़ाई को बेहतर तरीके से लड़ा जा सके। इसके साथ ये मंच उन विषय क्षेत्रों की पहचान करते हुए एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तय करेगा और सभी सदस्य राज्य उस पर अमल करेंगे।
सामाजिक न्याय के रास्ते एक राजनीतिक फ्रंट
स्टालिन के पत्र के तुरंत बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने मुखर होकर इसका समर्थन किया। उन्होंने केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के खिलाफ एक सशक्त मोर्चा बनाने की दिशा में इसे एक रचनात्मक कदम बताया।
इससे पहले, ममता बनर्जी ने बीजेपी को 2024 में सत्ता से बेदखल करने के लिए सभी राजनीतिक दलों से एकजुट होने की अपील की थी लेकिन कांग्रेस की तरफ से उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला था। ममता बनर्जी ने भी साफ किया है कि बीजेपी को रोकने में कोई उनकी मदद करे या न करे वे अकेले भी इस लड़ाई को लड़ती रहेंगी।
राजनीति विज्ञानी राधारमण कहते हैं कि, पिछले कुछ वर्षो में केंद्र सरकार की नीतियों और उत्तर भारत मे जिस तरह के राजनीतिक प्रयोग हो रहे हैं उनसे दक्षिण के राज्यों में शंका का माहौल बना है। भाषा और संस्कृति को लेकर दक्षिणी राज्य हमेशा से संजीदा रहे हैं। सामाजिक न्याय और परिवर्तन के सवाल उनके सामने दशकों पहले आ गए थे। अब लड़ाई उसे बचाने और संजोने की है। राधारमण मानते हैं कि, ऐसा कोई भी फ्रंट जो क्षेत्रीय दलों को को एक बड़ी छतरी के नीचे ला पाने मे सक्षम हो पाएगा वो एक राजनीतिक ताकत भी होगा इसमें कोई कोई शक नहीं होना चाहिए।
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