रांची ( गणतंत्र भारत के लिए विष्णु दास, सिटीजन जर्नलिस्ट) : रांची के पास अनगड़ा ब्लॉक के हेतू छोटी- मोटी किसानी करते हैं। खेती बाड़ी से निपट कर शहर मे रिक्शा चलाने के लिए चले जाते हैं। जैसे खेती बाड़ी सीजनल है वैसे ही रिक्शा चलाना भी खेती के काम से निपटने पर ही निर्भर करता है। 50 पार कर चुके हेतू की चिंता अब उसकी बड़ी हो चुकी बेटियां हैं। उसकी दो बेटियां हैं- बड़ी बेटी चनिया -18 साल की जबकि छोटी बेटी रूपा 16 साल की हो चुकी हैं। हेतू ने बेटियों को सामर्थ्य भर पढ़ाया भी लेकिन पिछले तीन सालों में बदहाली ने उनके जीवन की धारा को ही बदल दिया। बेटिय़ों की पढाई छुड़ानी पड़ी, खेत गिरवी रखना पड़ा और मानो जीवन अब उधार चुकाने की जद्दो जहद में ही बीत रहा है।
हेतू, तीन साल पहले तक खाता -पीता छोटा किसान हुआ करता था। खेती से खाने को अनाज और कुछ पैसे भी मिल जाते थे। बाकी कमी शहर में रिक्शा चला कर पूरी हो जाती थी। कोरोना ने रिक्शा चला कर होने वाली कमाई पर लगाम लगाया तो घर का संतुलन ही बिगड़ गया। साहूकार से कुछ पैसे उधार लिए कि हालात सुधरने पर वापस हो जाएंगे लेकिन कर्ज का बोझ बढ़ता ही गया। घर में बीमारी और बड़ी होती बेटियों की चिंता ने हेतू के हौसले को भी तोड़ कर रख दिया।
सरकार से मदद के नाम पर उसके परिवार को राशन जरूर मुफ्त मिला है लेकिन सिर्फ उससे कहां काम चल पाता है। हेतू गांव की जमीन बेच कर परिवार समेत शहर जाने की तैयारी में है। कहता है बेटियों की शादी करनी है, पैसा तो चाहिए। रिक्शा चलाऊंगा, ठेला लगा लूंगा। खेती किसानी में कुछ धरा नहीं है।
हेतू की ये कहानी अकेली नहीं है। आसपास के गावों में किसानों के जीवन पर निगाह डालिए, तमाम हेतू खड़े मिलेंगे।
झारखंड देश का वो राज्य है जहां से देश के विभिन्न हिस्सों में काम करने वाले कामगारों का एक बड़ा हिस्सा देखने को मिलता है। देश के बड़े शहरों में घरेलू कामकाज करने वाली तमाम महिलाएं झारखंड के ग्रामीण इलाकों से आती हैं। ऐसी महिलाओं को रोजगार दिलाने के नाम पर अपना धंधा चमकाने वाली प्लेसमेंट एजेंसियां भी खूब सक्रिय हैं।
झारखंड में कम हो गई किसान की आय
लेकिन हमारा मकसद हेतू के बहाने एक दूसरी चर्चा को विमर्श में लाने का है। झारखंड देश के उन राज्यों में भी शामिल है जहां आमतौर पर पिछले वर्षों में किसानों की आय में गिरावट आई है। इस फेहरिस्त में मध्य प्रदेश, उड़ीसा और नगालैंड जैसे राज्य भी शामिल हैं। केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक देश में किसानों की आय दोगुनी करने की महत्वाकाक्षी योजना की घोषणा की थी। इस लक्ष्य की समीक्षा के लिए गठित संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में साफ किया कि कृषि मंत्रालय किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य हासिल नहीं पाया है। समिति के अध्यक्ष बीजेपी सांसद पीसी गद्दीगौदर हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, ये एक तथ्य है कि भारत सरकार के कई विभाग, संगठन और मंत्रालय इस देश के प्रत्येक किसान की आय को एक निश्चित समय सीमा के भीतर दोगुना करने के लिए जिम्मेदार हैं। लेकिन पैनल ने ये भी कहा कि इस बात से कोई इनकार नहीं है कि किसानों की आय दोगुनी करने का प्रमुख कार्य कृषि और किसान कल्याण विभाग (मंत्रालय) के पास है।
क्या कहते हैं संसदीय समिति की रिपोर्ट के आंकड़े
रिपोर्ट में कहा गया है कि, विभाग द्वारा दिए गए उत्तर से प्रतीत होता है कि विभाग किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य से दूर है, बल्कि कुछ राज्यों में वर्ष 2015-16 और वर्ष 2018-19 के बीच यानी चार वर्षों में ये कम हो गई है। जैसे कि झारखंड में 7068 रुपए से घटकर 4895 रुपए, मध्य प्रदेश में 9740 रुपए से घटकर 8339 रुपए, नागालैंड में 11428 रुपए से घटकर 9877 रुपए और उड़ीसा में 5274 रुपये से घटकर 5111 रुपए रह गई है। रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि ऐसा तब हुआ है जब देश की मासिक कृषि घरेलू आय 8059 रुपए से बढ़कर 10218 रुपए हो गई है और पिछले तीन वर्षों के दौरान कृषि और किसान कल्याण विभाग द्वारा 67929.10 करोड़ रुपए के फंड का इस्तेमाल नहीं हुआ और उसे सरेंडर कर दिया गया।
समिति ने मंत्रालय को इन राज्यों में किसानों की आय में गिरावट के कारणों का पता लगाने और सुधारात्मक कदम उठाने के लिए एक विशेष टीम बनाने की सिफारिश की है।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया