नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए नगमा ) : केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल करके कहा है कि जिन राज्यों में हिंदुओं की संख्या कम है वहां की सरकारें उन्हें अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं। केंद्र सरकार ने ये भी कहा है कि सिर्फ राज्यों को अल्पसंख्यकों के विषय पर कानून बनाने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। इसका मतलब है कि राज्य चाहें तो ऐसा कर सकते हैं लेकिन केंद्र अपने स्तर पर अल्पसंख्यक समुदाय को लेकर अधिसूचना जारी कर सकता है।
सरकार के इस हलफनामे के बाद कई तरह के सवाल चर्चा में आ गए हैं। सबसे पहला तो ये कि क्या हिंदू बहुल भारत में हिंदू को अल्पसंख्यक का दर्जा मिल सकता है? अगर हां, तो उसका आधार क्या होगा और सबसे बड़ी बात ये कि इससे हिंदुओं को फायदा क्या होने वाला है ?
क्यों दाखिल करना पड़ा हलफनामा ?
केंद्र सरकार ने हलफनामा, एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की उस याचिका के बाद दिया जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग की वैधता को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि 2002 में सुप्रीम कोर्ट की 11 जजों की बेंच ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया था कि, राष्ट्रीय स्तर पर भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जा सकता। दोनों की पहचान राज्य स्तर पर की जाएगी। लेकिन अभी तक राज्य स्तर पर इस बारे में कोई गाइडलाइन तैयार नहीं की गई है। याचिका में कहा गया है कि, अल्पसंख्यक को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। बिना किसी आधार के अपनी मर्जी से सरकार ने अलग-अलग धर्मों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया हुआ है। देश में यहूदी और बहाई धर्म के लोग भी हैं लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं मिला हुआ है। ऐसा क्यों ? सुप्रीम कोर्ट अब छह हफ्तों के बाद इस मामले पर सुनवाई करेगा।
क्या है वास्तविक स्थिति ?
अल्पसंख्यकों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए 1992 में देश में अल्पसंख्यक आयोग गठित किया गया था। भारत में राष्ट्रीय स्तर पर 6 धर्मों को अभी तक अल्पसंख्यक का दर्जा मिला हुआ है। इसमें मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन धर्म शामिल है। केंद्र सरकार ने जैन धर्म को 2014 में अल्पसंख्य़क का दर्जा दिया था। भाषा और धर्म के आधार पर जिन लोगों को अल्पसंख्यक का दर्जा मिला हुआ है उन्हें सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन, बैंक से सस्ता लोन और अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त शिक्षण संस्थानों में दाखिले के समय प्राथमिकता दी जाती है। उदाहरण के लिए, दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी को धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिला हुआ है। यहां करीब 50 प्रतिशत सीटें मुस्लिम समाज के छात्रों के लिए आरक्षित हैं। जामिया जैसे देश में तमाम अल्पसंख्यक संस्थान हैं।
अल्पसंख्यक होने का आधार क्या है ?
अभी तक केंद्र सरकार किसी धर्म को अल्पसंख्यक का दर्जा देने को लेकर अधिसूचना जारी करती है जिसका राज्य पालन करते रहे हैं। राज्य में आबादी के हिसाब से अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाएगा या उसका आधार कुछ और होगा ये स्पष्ट नहीं है। ये राज्य सरकारें तय कर सकती हैं। देश में आठ राज्य और केंद्रशासित प्रदेश ऐसे हैं जहां हिंदू आबादी 50 प्रतिशत से कम है। इनमें मणिपुर, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, मेघालय, नगालैंड, लक्षद्वीप और मिजोरम शामिल हैं।
हिंदू किन राज्यों में अल्पसंख्यक हैं ?
वैसे तो देश में करीब 80 फीसदी हिंदू आबादी है लेकिन फिर भी कई राज्य ऐसे हैं जहां हिंदू आबादी के मुकाबले दूसरे धर्म के लोग बहुसंख्या में हैं। पंजाब, लद्दाख, मिज़ोरम, लक्षद्वीप, जम्मू-कश्मीर, नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में हिंदुओं की आबादी के मुकाबले दूसरे धर्म के लोग ज्यादा हैं। मसलन पंजाब में 2011 की जमगणना के हिसाब से सिख 57.69 प्रतिशत और हिंदू 38.49 प्रतिशत हैं। इसी तरह अरुणाचल प्रदेश में ईसाई 30.26 प्रतिशत और हिंदू आबादी 29.04 प्रतिशत है।
अल्पसंख्यक का दर्जा और राजनीति का नफा-नुकसान
पंजाब को लीजिए, पंजाब में लिख धर्म को छोड़ कर किसी भी दूसरे धर्म को नोटीफाई नहीं किया गया है। राज्य से नोटीफाई होने के बाद ही किसी समुदाय को अल्पसंख्यक होने के लाभ मिलते हैं। पंजाब में मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन धर्म को अल्पसंख्यक नहीं माना गया है। लिहाजा सारा फायदा सिर्फ सिख समुदाय ही उठा रहा है। अगर यहां हिंदू धर्म को अल्पसंख्यक घोषित किया जाता है तो सिखों को मिलने वाले लाभ में सेधमारी होगी और वो सिख धर्म के लोगों को पसंद नहीं आएगा।
इसी तरह से नगालैंड में ईसाई करीब 87 प्रतिशत हैं और हिंदू करीब 8 प्रतिशत। अगर किसी पार्टी को नगालैंड में अपनी सरकार बनानी है तो उसे ईसाई लोगों को अपने पक्ष में करना होगा। ऐसे में अगर वो पार्टी अल्पसंख्यक दर्जे के नाम पर हिंदुओं को लामबंद करती है तो इससे ईसाई समुदाय नाराज हो सकता है और ये किसी भी राजनीतिक दल के लिए मुश्किल होगा।
राजनीति विज्ञानी प्रोफेसर राधरमण बताते हैं कि, जो राज्य हिंदू बहुल नहीं है वहां उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग काफी पुरानी है। अटल जी जब देश के प्रधानमंत्री थे तब भी ये मसला उठा था लेकिन केंद्र सरकार हमेशा इससे बचती रही है। संभव है कि राजनीतिक गुणाभाग में उसे कोई नुकसान नजर आ रहा हो। संभव है कि इसी कारण इस मुद्दे पर वो राज्यों को टोपी पहनाना चाहती हो।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया