नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) : पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार पर छाए संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश हो चुका है और उस पर 31 मार्च से बहस शुरू होगी। इस बीच, अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले इमरान सरकार की सहयोगी पार्टी मुताहिदा कौमी मूवमेंट- पाकिस्तान (एमक्यूएम-पी ) ने उनके खिलाफ वोट देने का एलान कर दिया है। एमक्यूएम-पी के पास सात सदस्य हैं। इमरान खान ने अपनी सरकार बचाने की आपात स्थिति को भांपते हुए व्हिप जारी कर अपनी पार्टी के सांसदों को अविश्वास प्रस्ताव पर वोट नहीं करने को कहा है। इससे साफ है कि इमरान सरकार को खतरा विपक्ष के अलावा अपनी पार्टी के संसदों से भी है।
एमक्यूएम-पी के फैसले की जानकारी, पीपीपी अध्यक्ष बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने एक ट्वीट के जरिए दी। उन्होंने अपने ट्वीट में बताया कि, संयुक्त विपक्ष और एमक्यूएम के बीच समझौता हो गया है। हम कल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया के साथ ये फ़ैसला साझा करेंगे। बधाई हो पाकिस्तान। इमरान सरकार के खिलाफ विश्वास मत पर वोट इस हफ्ते के अंत तक होने की उम्मीद है।
पाकिस्तान के प्रमुख अख़बार डॉन के अनुसार, विपक्षी दलों पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ (पीएमएल-एन) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के पास अब 170 सांसदों का समर्थन हो गया है। एमक्यूएम के 7 सदस्य भी इसमें शमिल हैं।
सत्ता में बने रहने के लिए इमरान ख़ान की सरकार को कम से कम 172 सांसदों का समर्थन चाहिए। वहीं, विपक्ष को भी अविश्वास प्रस्ताव पारित कराकर सरकार गिराने के लिए भी 172 सांसद चाहिए।
इमरान ने किया जन समर्थन दावा
इमरान खान ने विपरीत हालात में मामले को जनता की अदालत में ले जाने का फैसला किया। पिछली 27 मार्च को सत्तारुढ़ पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) पार्टी की एक ऐतिहासिक सभा का आयोजन किया गया। इमरान खान मे रैली में आरोप लगाया कि पाकिस्तान में विदेशी धन के सहारे सरकार गिराने की कोशिश की जा रही है। विपक्ष ने इमरान के बयान को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि रैली में जुटी भीड़ भी पैसे देकर लाई गई थी।
भारत के लिए क्या हैं मायने ?
पाकिस्तानी पत्रकार आरजू काजमी का कहना है कि, पाकिस्तान में सरकार पर हमेशा से फौज का दबाव काम करता रहा है। इमरान खान की सरकार हो या किसी और की यहां चलनी तो सिर्फ फौज की ही है। उन्होंने कहा कि इमरान भी पहले फौज के ही दुलारे थे अब नहीं पटी तो उनके लिए संकट पैदा हो गया।
आरजू मानती हैं कि पाकिस्तानी विदेश नीति में फौज का करिदार सबसे अहम है। हालांकि फौज ने देश के राजनीतिक घटनाक्रम से अभी तक प्रत्यक्ष तौर पर खुद को अलग रखा है लेकिन पर्दे के पीछे से खेल सारा उसी का माना जा रहा है। उन्होंने कहा कि इमरान ने एक बड़ी गलती भारत की तारीफ करके कर दी। शायद वे ये मैसेज देना चाहते हैं कि भारत की तारीफ के कारण फौज उनसे नाराज हो गई है जबकि कहानी पहले से ही चल रही थी।
लाहौर से वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार अदनान शेख के अनुसार, पाकिस्तान में लोकतंत्र की निरंतरता ही भारत के साथ उसके अच्छे रिश्तों का आधार बन सकती है लेकिन बदकिस्मती से ऐसा हो नहीं पाता। पाकिस्तान में फौज का इस कदर राजनीतिकरण हो गया है कि वो बस मौके की ताक में रहती है कि कैसे सत्ता में उसका दखल हमेशा बना रहे। उनका कहना है कि भारत के साथ रिश्तों में किसी बदलाव की बात तभी हो सकती है जब पाकिस्तान में फौज की भूमिका सरकार के फैसलों में खत्म हो जाए जो फिलहाल नामुमकिन लगती है।
भारत में पाकिस्तानी राजनीति के विशेषज्ञ सुशांत सरीन का मानना है कि जब तक इमरान ख़ान सत्ता में रहेंगे भारत और पाकिस्तान के बीच सामान्य और सभ्य बातचीत की संभावना न के बराबर है। उनका कहना है कि, इमरान ख़ान को अगर हटा हटा दिया जाता है, तो संभव है कि दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की पूर्ण बहाली हो जाए, ‘ट्रैक टू’ के लेवल पर बातचीत पर कोई गतिविधि शुरू हो जाए और दोनों देशो के बीच धीरे-धीरे व्यापार फिर से खोल दिया जाए। वे मानते हैं कि, दोनों देशों के रिश्तों में किसी बुनियादी बदलाव की संभावना फिलहाल नहीं है।
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