लखनऊ ( गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र) : बिजनौर जिले के बरकत अली इस समय घबराए हुए हैं कि उन्हें राशन कार्ड और किसानों को दी जाने वाली सहायता से हाथ धोना पड़ जाएगा। बरकत के पास गांव में एक छोटा सा घर है और एक भैंस भी है। खेत अपना है नहीं, बंटाई पर काम करते हैं और जो कुछ भी कमाई होती है वो आधी-आधी बंट जाती है। उनके गांव में मुनादी कराई गई थी जिसमें राशन कार्ड धारकों और किसानों को मिलने वाली आर्थिक सहायता के बारे में शर्तें बता दी गईं। बरकत कहते हैं कि पहले बता देते तो हम पहले ही कार्ड जमा करा देते। अब धमकी देते हैं कि इन शर्तों के बाद भी अगर आपके पास राशन कार्ड हुआ तो आपसे पैसे वसूले जाएंगे।
ये सिर्फ एक बरकत की जुबानी नहीं है। बरकत जैसी ही आपबीती रामलाल, हरकिशन और रेनू देवी की भी है।
क्या है मामला ?
उत्तर प्रदेश में फऱवरी-मार्च में हुए चुनावों में सरकार ने प्रदेश के करीब 15 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने और उनके खाते में पैसे ट्रांसफर करने जैसी बातों का जमकर प्रचार किया था। जिन बैगों में राशन बांटा गया उस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की तस्वीरें थीं। बताया जाता है कि इस लाभार्थी वर्ग ने बीजेपी को जम कर वोट भी किया। बीजेपी दोबारा सत्ता में आई और आते ही अब राशन कार्डों के साथ तमाम तरह की शर्तों को जोड़ दिया गया।
राजनीतिक विवाद की वजह बना
इस बीच, कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश में नए सख्त नियमों के जरिए उन लोगों के खिलाफ कुर्की और वसूली संबंधी कार्रवाई की तैयारी हो रही है जिन्हें कोरोना काल में मुफ्त राशन उपलब्ध कराया गया था। पार्टी प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने ये आरोप भी लगाया कि उत्तर प्रदेश शासन का कदम खाद्य सुरक्षा कानून का उल्लंघन है। उन्होंने एक पत्रकार वार्ता में कुछ दस्तावेजों को साझा करते हुए दावा किया कि, इनमें से कुछ उत्तर प्रदेश के जिला आपूर्ति अधिकारियों और जिलाधिकारियों की ओर से जारी किए गए हैं। इनमें साफ तौर पर कहा गया है कि नए नियमों के तहत राशन कार्ड के लिए वे लोग ही पात्र होंगे, जिनकी खुद की जमीन न हो, पक्का मकान न हो, भैंस, बैल, ट्रैक्टर ट्रॉली आदि नहीं हो, मोटरसाइकिल न हो, मुर्गी पालन और गो-पालन न करता हो, शासन की ओर से कोई वित्तीय सहायता न मिलती हो, बिजली का बिल न आता हो और जीविकोपार्जन के लिए उसके पास कोई आजीविका का साधन न हो।
उन्होंने कहा कि, ऐसे तमाम मानकों के जरिए अपात्र घोषित कर राशन कार्ड तुरंत निरस्त कर दिया जाएगा। अगर ये तथाकथित अपात्र लोग स्वयं राशन कार्ड नहीं देते हैं तो इनसे कोरोना जैसी महामारी के दौरान दिए गए राशन की वसूली और कुर्की तक की जाएगी।
कांग्रेस प्रवक्ता ने दावा किया कि, इस देश में 84 प्रतिशत लोगों की आय कम हो गई है, लोगों की नौकरियां खत्म हो गईं, महंगाई से लोगों की कमर टूट रही है। इस दौरान ये निर्णय लिया गया है कि कोई भी राशन कार्ड धारक अगर अयोग्य पाया जाता है तो उससे 24 रुपए प्रति किलोग्राम गेहूं, 32 रुपए प्रति किलोग्राम चावल की दर से वसूली होगी।
उन्होंने सवाल किया कि, लोगों से तो आप कुर्की की धमकी देकर, वसूली का डर दिखाकर राशन कार्ड जबरन वापस ले लेंगे लेकिन उन अधिकारियों का क्या होगा जिन्होंने तथाकथित अपात्रों को राशन कार्ड दिए ? उनके खिलाफ क्या कार्रवाई होगी ? सरकार को ये बताना होगा।
एजेंसी की खबरों के हवाले से बताया गया है कि, पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने भी सरकार के इस कदम पर तंज कसा है। उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि, चुनाव खत्म होते ही राशन कार्ड खोने वाले करोड़ों देशवासियों की याद अब सरकार को कब आएगी ? शायद अगले चुनाव में..! चुनाव से पहले पात्र एवं बाद में अपात्र।
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने ट्वीट में कहा है कि, गरीबों को राशन से वंचित करने की ये भारतीय जनता पार्टी की नई तरकीब है। उसने गरीबों के वोट लेकर सत्ता हथियाई, अब सरकार को वादे के मुताबिक उन्हें पूरा राशन देना चाहिए।
क्य़ा कहना है सरकार का ?
दिलचस्प बात ये है कि, उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव (सूचना) नवनीत सहगल से जब ऐसी रिपोर्टों के बारे में पूछा गया जिसमें 20 मई तक अपात्र लाभार्थियों को राशन कार्ड सरेंडर करने के लिए कहा गया था तो उन्होंने कहा कि ऐसा कोई निर्देश जारी ही नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि, सरकार केवल राशन कार्डों का सत्यापन करा रही है। राशन कार्डों का सत्यापन अभियान एक सतत प्रक्रिया है। अगर कोई कार्ड सरेंडर कर रहा है तो ये पूरी तरह से उनका फैसला है और वे स्वेच्छा से ऐसा कर रहे हैं।
क्या है असली कहानी ?
यूपी में विधानसभा चुनाव निपट चुके हैं। चुनावों से पहले सरकार ने कोरोना के दौर से चली आ रही मुफ्त राशन की योजना को 31 मार्च तक बढ़ा दिया था। सरकार का दावा था कि 15 करोड़ लोगों को गेंहूं, चावल, दाल, चना, सरसों का तेल और नमक मुफ्त दिया गया। 31 मार्च के बाद सरकार ने चना, तेल और नमक देना बंद कर दिया। इस समय, मुफ्त राशन में गेहूं, चावल और दाल दी जाती है।
सरकार ने मुफ्त राशन की आपूर्ति को चुनावों के दौरान जमकर कर कैश किया। सरकार के दावों को सही माना जाए तो 22 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश की हालत ऐसी थी कि 15 करोड़ लोग या करीब 70 फीसदी जनता को दो जून की रोटी के लिए सरकार के सहारे रहना पड़ता था या फिर चुनावी फायदे के लिए आंख मूंद कर रेवडियां बांटी गईं।
एक दूसरा कारण भी चर्चा में है। कहा जा रहा है कि, आने वाले वक्त में देश में गेंहू की किल्लत हो सकती है। सरकार ने गेंहूं के निर्यात पर रोक भी लगा दी। ऐसे में मुफ्त गेंहू का वितरण उसके खुद के लिए जंजाल साबित होने जा रहा है और वो किसी न किसी तरह से इससे पीछा छुड़ाने की जुगत में है।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया