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बीवी की टैक्सचोरी, अमेरिकी ग्रीन कार्ड, ऋषि सुनक के रास्ते में बाधाएं ही बाधाएं

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) : हो सकता है कि ऋषि सुनक ब्रिटेन में भारतीय मूल के पहले प्रधानमंत्री चुन लिए जाएं। ऋषि को लोग डिशी ऋषि के नाम से भी पुकारते है। 42 साल के ऋषि के सामने अब केवल विदेश मंत्री लिज ट्रस की चुनौती रह गई है। अब फैसला कंजरवेटिव पार्टी के एक लाख साठ हजार सदस्यों के हाथ में है। ऋषि के सामने चुनौतियों की लंबी फेहरिस्त है और पीछे विवादों का साया भी। उनसे पार पाकर ही वे 10 डाउनिंग स्ट्रीट के अंदर दाखिला पा सकते हैं।

ऋषि सुनक का रास्ता इतना आसान भी नहीं है। एक ब्रिटिश इंटरनेट मार्केट रिसर्च और डेटा कंपनी-यूगव के ताजा पोल इस बात के संकेत दे रहे हैं कि कंजर्वेटिव सदस्य ऋषि सुनक के खिलाफ उतरने वाले किसी भी अन्य उम्मीदवार को वोट देंगे। बोरिस जॉनसन की लॉबी भी ऋषि के खिलाफ सक्रिय है। नया प्रधानमंत्री कौन होगा इसकी घोषणा पांच सिंतबर को होगी।

राजनीति में नौसिखिया लेकिन शातिर खिलाड़ी

ऋषि सुनक इंग्लैंड में उत्तरी यॉर्कशर की रिचमंड (यॉर्क्स) सीट से सांसद हैं। उनकी राजनीतिक उड़ान बस कुछ सालों पहले ही शुरू हुई। वे 2015 में कंजर्वेटिव पार्टी की परंपरागत सीट रिचमंड से चुनाव लड़ कर संसद पहुंचे। इस सीट पर कंजर्वेटिव विलियम हेग 1989 से 2015 में रिटायर होने तक काबिज रहे। 2018 से 2019 के बीच ऋषि, टेरीसा मे की सरकार में स्थानीय शासन के लिए संसदीय अवर-सचिव बने और फरवरी 2020 में ब्रिटिश इतिहास के सबसे युवा चांसलर का पद उन्होंने संभाला।

राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में वर्तमान कंजर्वेटिव सरकार में एशियाई चेहरों की चर्चा होती रही है। तीन सबसे महत्वूपूर्ण पदों पर गृह मंत्री प्रीति पटेल, पूर्व चांसलर और वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री साजिद जाविद और पूर्व चांसलर ऋषि सुनक की मौजूदगी बेहद दिलचस्प है। इसके अलावा ब्रिटेन में  भारतीय मूल के लोगों की राजनीतिक भागीदारी लगातार बढ़ रही है। साल 2019 में चुनकर आए संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमंस में भारतीय मूल के 15 सांसद हैं जिनमें से चार पहली बार सदन पहुंचे।

ऋषि सुनक को राजनीति में उतरे ज्यादा वक्त नहीं हुआ है लेकिन वे कम वक्त में ही एक जाना-पहचाना चेहरा बन गए। प्रधानमंत्री पद के लिए जिस मजबूती के साथ उन्होंने दावेदारी पेश की और सांसदों के वोटों के जरिए लड़ाई के अंतिम दौर तक पहुंचे उससे साफ है कि सांसदों में उनकी पैठ है लेकिन इस बात पर लगातार संशय बना हुआ है कि वो पार्टी के आम सदस्यों का वोट हासिल करके प्रधानमंत्री पद तक पहुंच पाएंगे।

ऋषि सुनक का चांसलर के तौर पर महामारी के दौर में पद की जिम्मेदारियां निभाना, लाखों पाउंड का राहत पैकेज, व्यवसायों की मदद के लिए उठाए गए कदमों ने उन्हें मजबूत इच्छाशक्ति वाले राजनेता के तौर पर सामने रखा है।

ऋषि सुनक की जन्म साउथंप्टन में हुआ लेकिन उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि उत्तर भारत की है। उनके दादा-दादी का जन्म पंजाब में हुआ था जो भारत छोड़ कर पहले पूर्वी-अफ्रीका में बसे और 1960 के दशक में ब्रिटेन आ गए। उनके पिता यशवीर सुनक पेशे से डॉक्टर और मां ऊषा सुनक फार्मासिस्ट हैं। ऋषि सुनक की स्कूली पढ़ाई ब्रिटेन के बेहद मंहगे बोर्डिंग स्कूल विन्चेस्टर कॉलेज से हुई है। इसके बाद वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान, दर्शन शास्त्र और अर्थशास्त्र में स्नातक और अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री लेकर फाइनेंस की दुनिया में करियर बनाने उतरे। कुछ साल नौकरी करने के बाद उन्होंने साझेदारी में अपनी कंपनी खड़ी की और इसी दौर में वे कंजर्वेटिव पार्टी के साथ जुड़ गए। ऋषि सुनक की शादी भारतीय उद्यमी और आईटी कंपनी इंफोसिस के संस्थापक एन आर नारायण मूर्ति की बेटी अक्षता मूर्ति के साथ हुई है। सुनक अपने पुराने साक्षात्कारों में अपनी भारतीय जड़ों का जिक्र बार-बार करते हैं और इस बात को दोहराते हैं कि उनका संबंध ऐसे भारतीय परिवार से है जिसे एक नई जिंदगी की तलाश में अपना देश छोड़ना पड़ा।

विवाद, चुनौतियां और वायदे

कहने को तो ऋषि सुनक ने राजनीति में इतना कम वक्त गुजारा है कि उन्हें दुश्मन पैदा करने का भी वक्त नहीं मिला होगा, लेकिन क्या सचमुच में ऐसा है ? विवादों का साया हमेशा ऋषि के साथ रहा। लॉकडाउन में डाउनिंग स्ट्रीट में हुई आधिकारिक पार्टियों के मामले में उन पर फाइन लग चुका है। एक कठिन वक्त में नेताओं का गैर-जिम्मेदारी भरा बर्ताव लोगों के जेहन में कड़वाहट छोड़ गया है।

बताया जा रहा है कि, ऋषि सुनक की पत्नी अक्षता मूर्ति ने ब्रिटेन में नॉन-डॉमिसाइल होने का फ़ायदा उठाकर अपनी कुल आय पर वाजिब टैक्स नहीं चुकाया है। अक्षता की इंफोसिस में हिस्सेदारी है जिससे उन्हें सालाना करोड़ों रुपयों की आमदनी होती है। अनुमानों के मुताबिक ये टैक्स राशि कई करोड़ पाउंड की हो सकती है। लेबर पार्टी और लिबरल डेमोक्रेटिक सदस्यों के अलावा कंजर्वेटिव पार्टी में बोरिस जॉनसन के वफादार नेताओं ने भी इस मसले पर ऋषि को आड़े ङाथों लिया है।

ऋषि सुनक के पास अमेरिकी ग्रीन कार्ड है। ग्रीन कार्डधारक अमेरिका में टैक्सदाता होता है और इसका सीधा संबंध वहां बसने की संभावनाओं से है।

ऋषि के लिए उनका बेदह धनी होना भी एक मुसीबत बन गया है। उन पर लगातार ये सवाल उठाया जा रहा है कि वे आम वर्ग से नहीं आते और जनता जीवन की हकीकत से उनका कोई सरोकार नहीं है।

विवादों के साये से अलग ऋषि सुनक के हिस्से चुनौतियां भी कम नही हैं। पार्टी के पार्टी के भीतर बोरिस जॉनसन का वफादार गुट उनके लिए लगातार एक चुनौती बना हुआ है। एक युवा चांसलर के तौर पर वे कोविड महामारी के सबसे बुरे दौर से गुजरने के बाद, यूक्रेन युद्ध और अब भयंकर मुद्रास्फीति के कंटीले रास्ते से गुजर रहे हैं। टेलीविजन बहसों में उन्हें लगातार ऊंचे-टैक्स वाला चांसलर और देश को सबसे ऊंची मुद्रास्फीति वाले काल में धकेलने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। अपने सभी प्रतियोगी उम्मीदवारों से उलट ऋषि सुनक ने अपनी आर्थिक नीतियों पर बात करते हुए बार-बार कहा है कि वे मुद्रास्फीति काबू करने से पहले टैक्स कटौती के हक में नहीं हैं जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी लिज ट्रस टैक्स-कटौती का आश्वासन देती रही हैं। टैक्स का मसला इस चुनावी टक्कर में नतीजे को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा कारण बन सकता है।

कोविड काल के दौरान साल 2020 में सुनक ने 350 बिलियन पाउंड का राहत पैकेज घोषित किया तो उनकी लोकप्रियता चरम पर थी लेकिन अब ये संकट का दूसरा दौर है। इस समय ब्रिटेन में मुद्रा स्फीति की दर 9.1 प्रतिशत की ऐतिहासिक उंचाइयों को छू रही है और लोगों के जीवन यापन और खर्च करने की क्षमता प्रभावित हो रही है। नए प्रधानमंत्री के लिए इससे निपटना सबसे बड़ी चुनौती होगी।

इसके अलावा, अपनी दावेदारी को मजबूती देने के क्रम में ब्रेक्सिट-समर्थकों का साथ हासिल करने की मंशा से ऋषि सुनक ने ये भी वायदा किया है कि वे ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन के कानूनों से तुरंत निजात दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

देखने की बात होगी कि कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्य जो राजनीति में आमतौर पर भारतीय समुदाय के खिलाफ काफी मुखर रहते हैं, किस हद तक अपनी लीक से हट कर ऋषि सुनक के रूप में एक नई सोच को अपनाने के लिए तैयार हो पाते हैं।

फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया

 

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