नई दिल्ली, 23 अगस्त (गणतंत्र भारत के लिए न्यूज़ डेस्क) : क्य़ा अगले आम चुनाव तक देश में सभी मतदाता पहचान पत्रों को आधार से जोड़ने की योजना है ? हालांकि सरकारी तौर पर इससे इनकार किया जा रहा है लेकिन अंदरखाने जो कुछ चल रहा है उससे इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि काफी हद तक ऐसा होना संभव है। बैंक खातों और पैन को जोड़ने के बारे में मामला देश की सर्वोच्च अदालत गया लेकिन, अदालत की तमाम हिदायतों के वाबजूद पैन और आधार की इंटरलिंकिंग आज जरूरी हो चुकी है। यहां तक कि ऑनलाइन आयकर रिटर्न फाइल करने में भी पैन और आधार का लिंक होना अनिवार्य शर्त है।
मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने का प्रावधान दिसंबर 2021 में चुनावी कानून (संशोधन) अधिनियम, 2021, के पारित होने के बाद लाया गया था। इसके तहत स्वैच्छिक तौर पर वोटर आईडी को आधार से जोड़ने की अनुमति दी गई थी। इसके पीछे वजह मतदाता सूची में डाले गए नामों के सत्यापन को बताया गया था।
लेकिन प्राइवेसी एक्टिविस्टों ने दावा किया है कि सरकार ने चुपचाप नए कानून के तहत मतदाता पहचान पत्र और आधार को जोड़ने का काम अनिवार्य कर दिया है। ऐसे दावे भी किए जा रहे हैं कि चुनाव आयोग के अधिकारी तो यहां तक कह रहे हैं कि आधार नंबर न देने से मतदाता सूची से नाम हटा दिया जाएगा और मत डालने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
इस बारे में एक गैर सरकारी संस्था इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) ने ट्विटर पर लिखा कि उसके एक कर्मचारी से बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) ने संपर्क कर कहा कि वो अपना आधार नंबर दें नहीं तो उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा। हरियाणा से जुड़े इस मामले में ये भी दावा किया गया है कि, 16 अगस्त को जारी एक पत्र में हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने सभी बीएलओ से कहा कि वो घर-घर जा कर मतदाताओं के आधार नंबर हासिल करें। हालांकि उस पत्र में लिखा हुआ है कि आधार नंबर देना स्वैच्छिक है लेकिन आयोग के अधिकारी इसे अनिवार्य बता रहे हैं।
संस्था का दावा है कि, ये कानून जब संसद से पारित हुआ तब उसमें तो ‘स्वैच्छिक आधार’ का जिक्र किया गया था लेकिन बाद में विधि मंत्रालय ने जब कानून संबंधी नियम बनाए तो उनमें आधार नंबर देना अनिवार्य कर दिया गया।
प्रशासन की सफाई
हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने बताया है कि आधार नंबर लेने का उद्देश्य मतदाताओं की जानकारी का सत्यापन है और ये पूरी तरह से स्वैच्छिक है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि आधार नंबर न देने से किसी का भी नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ ?
विशेषज्ञ इस बारे में एकराय नहीं है। एक वर्ग इन प्रयासों से चिंतित है जबकि दूसरा वर्ग इसमें कुछ भी गलत नहीं देखता। इन कोशिशों पर चिंता जताने वाले वर्ग का तर्क है कि मत डालने के अधिकार को आधार की जानकारी साझा करने या न करने से नहीं जोड़ा जा सकता। आधार के बारे में तो खुद यूआईडीएआई कहती है कि वो न तो नागरिकता का प्रमाण है और न ही निवास का। लेकिन, एक बड़ा वर्ग मानता है कि आधार के साथ मतदाता पहचान पत्र की लिंकिंग से वोटर आईडी की डुप्लीकेसी खत्म होगी और चार-चार मतदाता पहचान पत्र रखने वालों की वजह से पैदा हुई दिक्कतें दूर होंगी। वे मानते हैं कि पैन, आधार और वोटर आईडी को आपस में जोड़ने से देश के नागरिको को काफी सहूलियत हो जाएगी।
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