नई दिल्ली, 22 सितंबर (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) :एक किलो के वजन को अंतरिक्ष में भेजने पर 10 से 15 हजार डॉलर का खर्च आता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने अब इस खर्च को कम करने के लिए कमर कस ली है। वो अब ऐसा रॉकेट तैयार करने की कोशिशों में जुट गया है, जिसे दोबारा भी इस्तेमाल किया जा सके। इस बात की पुष्टि हाल में ही इसरो के चेयरमैन एस. सोमनाथ ने की।
उनका कहना है कि अभी किसी रॉकेट को एक बार स्पेस में छोड़ने पर वो लौटकर नहीं आ पाता है। इसके कारण उस पर होने वाला खर्च एक बार में ही बेकार चला जाता है। उनके मुताबिक, अब भारत ऐसे रॉकेट बनाएगा, जिन्हें एक बार से ज्यादा बार इस्तेमाल किया जा सके। इससे किसी भी पेलोड को स्पेस में भेजने का खर्च एक हजार डॉलर प्रति किलो या उससे भी कम हो जाएगा। भारत की योजना दूसरे देशों के लिए भी ऐसे रॉकेट बनाने की है और इस काम में निजी सेक्टर का भी सहयोग लिया जाएगा। गौरतलब है कि कुछ समय पहले सरकार ने निजी क्षेत्र को भी इसरो के लिए काम करने की मंजूरी दे दी थी। सोमनाथ के मुताबिक, भारत की कोशिश होगी कि इसरो जो अगला जीएसएलवी Mk3 रॉकेट बना रही है, वो दोबारा इस्तेमाल किया जा सकने वाला हो।
अभी अमेरिका को छोड़कर चीन, जापान, रूस और यूरोप के देशों के पास भी ऐसे रॉकेट नहीं हैं, जिनका फिर से प्रयोग किया जा सके। इसरो के चेयरमैन सोमनाथ खुद एक रॉकेट साइंटिस्ट हैं और वे चाहते हैं कि भारत जल्द से जल्द दोबारा इस्तेमाल किया जा सकने वाला रॉकेट बना ले। इस तरह के एक रॉकेट का भारत सफल परीक्षण कर चुका है, लेकिन इस पर अभी काफी काम बाकी है। अगर भारत इस प्रयास में सफल हो जाता है तो उसे विदेशी सैटेलाइट्स छोड़ने के ऑर्डर भी बड़े पैमाने पर मिलने लगेंगे। इसरो इंसान को अंतरिक्ष में भेजने के मिशन पर भी काम कर रहा है।
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