नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) : नरेंद्र मोदी सरकार ने सहकारिता के क्षेत्र में महत्वाकांक्षी योजना को ध्यान में रखते हुए मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटीज़ (संशोधन) बिल- 2022 पेश किया। सरकार मानती है कि बदलती परिस्थियों के अनुरूप 20 साल पुराने मौजूदा एक्ट में संशोधन जरूरी है ताकि किसानों और उत्पादकों को अपेक्षित लाभ पहुंचाया जा सके। संसद के शीत कालीन सत्र में सहकार मंत्रालय के राज्य मंत्री बी.एल वर्मा ने लोकसभा में सात दिसंबर को ये संशोधन बिल पेश किया लेकिन विपक्ष की आपत्तियों के बाद बिल को संयुक्त संसदीय समिति के पास अपनी अनुशंसा के लिए भेज दिया गया। विपक्ष का दावा है कि मौजूदा स्वरूप में इस बिल से राज्यों के अधिकारों में कटौती होगी। विपक्ष इस बिल को संसद की स्थायी समिति के पास भेजने की मांग कर रहा था।
सवाल ये है कि, क्या इस बिल से वास्तव में उत्पादक को लाभ पहुंच पाएगा? सरकार की ईमानदार मंशा पर भी प्रश्नचिन्ह है। सवाल ये भी है कि सरकार राज्य सूची के इस विषय में क्यों व्यापक बदलाव लाने के लिए जोर आजमाइश कर रही है ?
सरकार क्यों चाहती है इस कानून में संशोधन ?
मौजूदा मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटीज़ एक्ट- 2002 को तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने बनाया था। सरकार मानती है कि अब ये कानून दो दशक पुराना हो चुका है और इसमें बहुत से बदलावों की जरूरत है। उस वक्त सहकारिता का विषय कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आता था। 6 जुलाई 2021 को मोदी सरकार ने सहकार को एक मंत्रालय बना दिया और गृह मंत्री अमित शाह को इस मंत्रालय को भी संभालने का जिम्मा सौंपा गया। अमित शाह ने पदभार ग्रहण करने के साथ ही नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति बनाने और मौजूदा कानून में व्यापक बदलाव करने की योजना की घोषणा कर दी।
2002 में जब मल्टी स्टेट को ऑपरेटिव सोसायटीज़ एक्ट लाया गया था तो बिल लाने के कारणों और उद्देश्यों के बारे में दिए गए वक्तव्य में कहा गया था कि कानून बनाने का मकसद कोऑपरेटिव सोसायटीज़ को मजबूत बनाने के साथ स्वयं सहायता समूहों को ताकत देते हुए इसे कहीं ज्यादा लोकतांत्रिक और ऐच्छिक बनाना था। इसके अलावा, इसके उद्देश्यों में ऐसे संगठनों का लाभ सिर्फ एक राज्य तक सीमित न करके उससे ज्यादा से ज्यादा राज्यों को लाभ पहंचाने की इच्छा थी ताकि इसके जरिए पारस्परिक सहायता से अधिक से अधिक लोगों को सामाजिक बेहतरी और आर्थिक ताकत भी मिल सके।
नए बिल के प्रस्ताव
इस बिल में प्रस्ताव है कि कोऑपरेटिव सोसायटी का किसी भी मौजूदा मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटी में विलय किया जा सकता है। बिल के प्रावधानों के अनुसार, कोई भी कोऑपरेटिव सोसायटी अपनी आम सभा की बैठक में उपस्थित दो- तिहाई सदस्यों की अनुशंसा पर किसी भी मौजूदा मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटी में विलय का निर्णय ले सकती है। मौजूदा नियमों के तहत कोई मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटी ही खुद को एकीकृत करते हुए कोई नई मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटी गठित कर सकती है।
चुनाव का अधिकार
प्रस्तावित बिल में कोऑपरेटिव इलेक्शन अथॉरिटी बनाने का प्रावधान किया गया है ताकि सहकारी क्षेत्र में चुनाव सुधारों को कार्यान्वित किया जा सके। प्रस्तावों के अनुसार इस इलेक्शन अथॉरिटी में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और केंद्र सरकार द्वारा अधिक से अधिक तीन सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है। प्रस्ताव के अनुसार, अध्यक्ष के पद पर उसी व्यक्ति को नियुक्त किया जा सकता है जिसने भारत सरकार में कम कम से अतिरिक्त सचिव के पद पर काम किया हो। उपाध्यक्ष के लिए भारत सरकार में कम से कम संयुक्त सचिव या उसके समकक्ष पद पर काम किया होने की आवश्यक शर्त रखी गई है। सदस्यों की नियुक्ति के लिए के लिए कई शर्ते निर्धारित हैं।
97 वां संविधान संशोधन
इस संविधान सशोधन के तहत 9 बी (सहकारी संस्थाएं) को संविधान में जोड़ा गया। सहकारी संस्थाओं के गठन को अनुच्छेद 19 (1) के अधीन स्वतंत्रता के अधिकार के रूप में जोड़ने के साथ कोऑपरेटिव सोसायटीज़ के संवर्धन को संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल किया गया।
कठोर प्रावधान
प्रस्तावित बिल में मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटी के निदेशक मंडल और अधिकारियों के नियम विरुद्ध कार्यों और निधि के दुरुपयोग पर दंडात्मक प्रवाधन किए गए हैं। दोषी पाए जाने पर एक माह से लेकर एक साल तक की सजा और पांच हजार से लेकर एक लाख रुपए के अर्थ दंड का प्रस्ताव किया गया है।
ऑमबड्समैन या लोकपाल की नियुक्ति
बिल में एक नया प्रस्ताव ऑमबड्समैन की नियुक्ति का किया गया है। प्रस्ताव के अनुसार, इन कोऑपरेटिव ऑमबड्समैनों की संख्या एक या अधिक हो सकती है और वे तयशुदा क्षेत्राधिकार में कोऑपरेटिव सोसायटीज़ के सदस्यों की शिकायतों को सुनने के लिए प्राधिकृत होंगे। इन्हें सिविल कोर्ट जैसे समन और सुनवाई के अधिकार होंगे और तीन महीने में मामले की सुनवाई पूरी करनी होगी।
खस्ताहाल संगठनों की आर्थिक मदद
प्रस्तावित बिल में खस्ताहाल मल्टी स्टेट सोसायटीज के लिए ‘कोऑपरेटिव रि हेबलिटेशन, रि कंस्ट्रक्शन एंड डवलपमेंट’ फंड की व्यवस्था का प्रावधान भी किया गया है।
विपक्ष को क्यों है आपत्ति और क्या होंगी नई चुनौतियां
केंद्र सरकार के प्रस्तावित बिल को लेकर विपक्षी दलों ने कई आपत्तियां जाहिर कीं। विपक्ष का कहना था कि, सहकारिता राज्य सूची का विषय है और केंद्र सरकार इस प्रस्तावित बिल में जिस तरह के प्रावधान कर रही है उससे राज्यों की शक्ति इस मामले में काफी कम हो जाएगी। इस बारे में 7 वें शेड्यूल में स्पष्ट रूप से राज्यों के अधिकार को परिभाषित किया गया है।
विपक्षी दलों का ये भी कहना था कि, सरकार को इस विषय में किसी भी कानून को बनाने से पहले उस पर व्यापक विचार-विमर्श कर लेना चाहिए और प्रस्तावित बिल को संसद की स्थायी समिति के पास विचार के लिए भेजा जाना चाहिए।
भले ही केंद्र सरकार इस बिल को लेकर दूसरे उद्देश्य एवं लक्ष्यों का उल्लेख करे लेकिन विपक्षी दलों को शंका है कि इस कानून की आड़ में केंद्र सरकार तमाम क्षेत्रीय दलों के आर्थिक स्रोत्रों पर कुठाराघात करना चाहती है। मौजूदा वक्त में गुजरात और महाराष्ट्र में सहकारी संस्थाएं काफी मजबूत स्थिति में हैं। यहां तक कि वे राजनीतिक सत्ता के निर्धारण में भी काफी अहम भूमिका निभाती हैं। महाराष्ट्र के सहकारी संगठनों पर शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की मजबूत पकड़ है। इसी तरह से गुजरात के सहकारी संगठनों पर बीजेपी की पकड़ मजबूत है।
विशेषज्ञों की मानें तो देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूती देने की बहुत जरूरत है लेकिन इसकी आड़ में राजनीतिक ताकत तलाशने की कोशिश सहकारिता के मूल मकसद को ही फेल कर देगी और उससे बचने की जरूरत है।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया