नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा में भाषण को लेकर चर्चाएं गरम हैं। पत्रकारिता के मोर्चे पर भी ‘पक्षकारों’ और ‘पत्रकारों’ के बीच जंग जारी है। न्यूज़ चैनलों पर अपेक्षा के अनुरूप कसीदे पढ़े जा रहे हैं जबकि सोशल मीडिया पर पक्ष-विपक्ष दोनों तरह की दलीलें हैं।
दलीलों के पीछे की दलीलें भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। अपेक्षा की जा रही थी कि लोकसभा में गौतम अडानी को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जो सवाल उठाए थे प्रधानमंत्री उसका मजबूती से ठोस जवाब देंगे और सरकार का पक्ष रखेंगे। लेकिन क्या ऐसा हुआ? जिस संसदीय मर्य़ादा की बात प्रधानमंत्री कर रहे थे क्या उसका मान उन्होंने और उनकी पार्टी ने खुद रखा ? क्या संसद में उठाए गए सवालों के जवाब की अपेक्षा करने के बजाए प्रत्युत्तर में खुद और अपने मंत्रियों से ऊपपटांग बकवाना यही ससंदीय लोकतंत्र है ?
समीक्षक मानते हैं कि, प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में अडानी पर उठे सवालों को लेकर जिस तरह से कन्नी काटी उससे आम लोगों के मन में उनको लेकर शंकाएं और गहरी हो गईं हैं। विषय से इतर लफ्फाजियों के लिए संसद का पटल नहीं होता। पूरे देश या बल्कि ये कहें कि पूरी दुनिया में अडानी को लेकर जिस तरह की शंकाएं जताईं गईं क्या उसका जवाब देना प्रधानमंत्री को अपनी तौहीन नजर आती थी। अगर आती थी तो साफ हैं कि लोकतंत्र की दुहाई देने वाले प्रधानमंत्री की सोच दंभी और अलोकतांत्रिक है।
आरोपों का जबाव क्यों नहीं ?
किसी का नाम प्रधानमंत्री ले या न लें पूरी दुनिया जानती है कि वे किस पर क्यों निशाना साध रहे हैं। गौतम अडानी ने देश के बैंकों से ढाई लाख करोड़ का कर्ज लिया हुआ है। ये पैसा देश की जनता का है। सवाल क्यों नहीं उठेगा और जवाब सरकार से क्यों नहीं मांगा जाना चाहिए ?
विपक्षी एकता और ईडी
प्रधानमंत्री ने संसद में विपक्ष की लामबंदी और ईडी के रिश्तों को लेकर विचित्र टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि, जो काम चुनाव नहीं करा पाए वो काम ईडी ने कर दिखाया और विपक्ष को एक मंच पर ला दिया। प्रधानमंत्री के ऐसा कहने का मतलब था कि पूरा विपक्ष भ्रष्ट है और जब सरकार ईडी के जरिए उन पर कार्रवाई करती है तो वे सब मिलकर ईडी को सरकारी दमन का माध्यम बताते हैं। विपक्ष के आरोपों में पूरी नहीं तो आंशिक सच्चाई तो है ही। 2014 के बाद से ईडी ने जितने छापे मारे उनमें से 90 फीसदी से ज्यादा छापे विपक्षी नेताओं पर पड़े। तमाम विपक्षी नेता जो भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे थे वे बीजेपी में जाकर दूध के धुले हो गए। प्रधानमंत्री जी, क्या इससे ईडी के दुरुपयोग का सवाल नहीं उठेगा? बिल्कुल उठेगा और उठना भी चाहिए।
आरोपों का जवाब आरोप नहीं
गांधी परिवार नेशनल हेरल्ड मामले में बेल पर है। मामला अदालत के समक्ष विचाराधीन है। लेकिन क्या इन स्थितियों में राहुल या सोनिया गांधी के भ्रष्टाचार पर बोलने पर पाबंदी लग जाती है। प्रधानमंत्री ने राहुल गांघी के आरोपों पर कुछ नहीं बोला। चुप्पी कई बार स्वीकारोक्ति होती है। कम से कम अडानी के मामले में तो संदेश कुछ ऐसा ही जाता है।
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