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क्या अकेलापन महामारी बन गया है ? WHO ने उठाया ये बड़ा कदम…!

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत को लिए आशीष मिश्र ) : क्या दुनिया के लिए अकेलापन एक महामारी बनने जा रहा है ? अकेलेपन की समस्या इतना विकराल रूप ले चुकी है कि विश्व स्वास्थ्य़ संगठन (WHO) ने इसके समाधान की दृष्टि से कदम उठाने की पहल करते हुए सामाजिक जुड़ाव से संबंधित एक आयोग बनाने की घोषणा कर दी है।  WHO का मानना है कि इस समस्या के पीछे शहरीकरण, आर्थिक दबाब और सामाजिक संबधों में बढ़ती दूरी है ही, साथ ही कोविड- 19 महामारी ने इस मार को और गहरा करने का काम किया है। आयोग अगले वर्ष यानी 2025 के मध्य तक अपनी पहली रिपोर्ट प्रकाशित कर देगा।

WHO ने बनाया आयोग

WHO ने अकेलेपन की समस्या की गंभीरता को देखते हुए पिछले वर्ष नवंबर में अकेलपन को प्राइमरी पब्लिक हेल्थ प्रॉबलम के रूप में देखना शुरू किया और इसके तुरंत बाद उसने इसके समाधान के लिए सामाजिक जुड़ाव आयोग के गठन की घोषणा कर दी। आयोग में कुल 11 सदस्य हैं जिन्हें सामाजिक जुड़ाव के वैश्विक एजेंडे को परिभाषित करने, जागरूकता फैलाने और साक्ष्य आधारित समस्याओं के समाधान का दायित्व सौंपा गया है।

दुनिया की एक चौथाई आबादी पर असर

WHO का मानना है कि अकेलेपनन की समस्या से दुनिया की एक चौथाई से ज्यादा आबादी पर असर पड़ रहा है और ये समस्या आने वाले समय में लोक-स्वास्थ्य के लिए एक बड़े खतरे के रूप में उभर रही है। WHO के अनुसार ये एक ऐसी स्वास्थ्य समस्या है जो दीर्घकाल में बहुत सी बीमारियों की वजह बन सकती है लेकिन कोई सर्वमान्य मानक न होने के कारण इसकी गंभीरता का तुलनात्मक अध्ययन मुश्किल है।

भारत में राष्ट्रीय डेटा मौजूद नहीं

WHO बताता है कि, अकेलापन सिर्फ बुजुर्ग आबादी तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसकी जद में तेजी के साथ युवा आबादी भी आती जा रही है। कोविड- 19 महामारी ने इस समस्या को और विकराल बना दिया है। आपको बता दें कि भारत में बुजुर्ग आबादी के अलावा अकेलेपन से जूझ रहे लोगों से संबंधित किसी भी तरह के राष्ट्रीय आंकड़े मौजूद नहीं हैं। फेसबुक और व्हाट्स अप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स चलाने वाली कंपनी META एवं एनेलेटिक्स और कंसल्टिंग फर्म GALLOP ने इस बारे में एक अध्ययन किया जिसे ‘द ग्लोबल स्टेट ऑफ सोशल कनेक्शंस’ शीर्षक से प्रकाशित किया गया। अध्ययन में बताया गया कि, अकेलेपन की समस्या से दुनिया की एक चौथाई आबादी जूझ रही है और भारत से जितने प्रतिभागियों ने इस अध्ययन में हिस्सा लिया उनमें से 30 फीसदी ये मानते हैं कि वे अकेलापन महसूस करते हैं।

अकेलापन और Medical Science

साइकोलॉजी में अकेलेपन को एक निजी एहसास के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें आमतौर पर सामाजिक संबंधों में कमी देखी जाती है हालांकि इसके बारे में भी अलग- अलग राय सामने आती है। Down To Earth पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में मनोरोग की प्रोफेसर अपर्णा शंकर ने बताया कि, ‘अकेलापन हर व्यक्ति का निजी एहसास है क्योंकि ये अलग- अलग लोगों को भिन्न- भिन्न तरीके का अनुभव दे सकता है। सामाजिक रूप से कटे व्यक्ति के लिए ये ट्रिगरिंग प्वांइट का काम कर सकता है। लेकिन, ऐसा भी संभव है कि आप दोस्तों से घिरे हों लेकिन तब भी अकेलेपन के एहसास से भरे हों।’ वे कहती हैं कि, ‘अकेलापन तभी घर करता है जब व्यक्ति  संबंधों  की गुणवत्ता से असंतुष्ट होता है।’

अकेलापन सेहत के लिए खतरनाक

अकेलापन सेहत के लिए कई तरह के खतरे भी पैदा करता है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, अकेलापन झेल रहे लोगों में 14 गुना अधिक डिप्रेशन देखने को मिला जबकि हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा 30 फीसदी जबकि टाइप-2 डायबिटीज़ का खतरा तो 98 फीसदी तक बढ़ जाता है। यही नहीं, इसके चलते इस तरह के व्यावहारिक बदलाव आते हैं जो व्यक्ति को खुदकुशी या नशे की लत की तरफ धकेल देते हैं।

WHO के सामने भी चुनौतियां कम नहीं

समाज विज्ञानी प्रोफेसर पी. कुमार, मानते हैं कि, WHO की पहल सार्थक और समयानुकूल है। लेकिन साथ ही उनका कहना है कि, ‘इस मामले में कई तरह की चुनौतियां भी उसके सामने होंगी। पहली तो यही कि, उसके पास जो भरोसेमंद सूचनाएं कहां से आएंगी ? दुनिया भर में अकेलेपन को मापने के पैरामीटर्स बहुत अलग- अलग हैं और भारत सहित तमाम देशों में इससे जूझ रहे लोगों के बारे में अधिकतर पता ही नहीं चलता।’

प्रोफेसर कुमार मानते हैं कि, ‘अकेलेपन के लिए जिम्मेदार कारक विकसित, विकासशील और अविकसित देशों के अलावा भिन्न-भिन्न सामाजिक तबकों में अलग – अलग हो सकते हैं। मसलन भारत जैसे देश में, शहरीकरण, गरीबी, अशिक्षा, बहुत ज्यादा डिपेंडेंसी और इस बारे में जागरूकता में कमी जैसे कारण अकेलेपन की आम वजहें हैं जबकि बुजुर्गों का अकेले रहना, परिवारों में विग्रह, एकल परिवार इसके समाजिक कारकों में शामिल हैं।’

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया   

 

 

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