नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ): इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएट, जयंत कुमार की उम्र 31 साल की हो चली है। दक्षिण दिल्ली के कटवारिया सराय में तीन और लड़कों के साथ मिलकर एक कमरा लिया है जहां वे पिछले कई सालों से रह रहे हैं। मूल रूप से राजस्थान के पाली के रहने वाले जयंत दिल्ली एक बेहतरीन सरकारी नौकरी का सपना लेकर आए थे। तमाम परीक्षाओं के इम्तिहान दिए लेकिन बात बनी नहीं। पहले सिविल सर्विस का ख्वाब देखने वाले जयंत को आज बस किसी तरह से एक अदद नौकरी की तलाश है लेकिन सरकारी नौकरी की चाह अभी भी बरकरार है।
जयंत से मिलती विजेश की कहानी
जयंत से मिलती-जुलती कहानी विजेश की भी है। यूपी के सीतापुर के रहने वाले विजेश, न्यू राजेंद्र नगर में रहते हैं। यूपीएससी से लेकर क्लर्क तक की नौकरी में किस्मत अजमा चुके विजेश को एक प्राइवेट कंपनी में काम मिल गया है लेकिन उन्होंने अभी भी सरकारी नौकरी के लिए कोशिश छोड़ी नहीं है।
जयंत और विजेश के मन की बात ?
जयंत का कहना है कि, सरकारी नौकरी चाहने के पीछे कई वजहें हैं। सबसे पहले तो यही कि, यहां एक बार नौकरी मिलने के बाद जाती नहीं है। तनख्वाह कम या ज्यादा हो लेकिन कम से समय पर आ तो जाती है। ऊपरी कमाई के बारे में सोचा तो नहीं लेकिन इसमें गुंजाइश तो रहती ही है। परिवार सुकून में रहता है।
विजेश तो प्राइवेट कंपनी में काम करते ही हैं। बताते हैं कि, प्राइवेट में तो आप कोल्हू के बैल की तरह से जोते जाते हैं। न कोई समय, न कोई वेतन, न कोई सुरक्षा। नौकरी आज है कल नहीं, किस बिना पर परिवार रखें और पालें। सरकार भी सरकारी नौकरियां खत्म करने पर अमादा है। नौकरियां आती ही नहीं, आईं तो पर्चा लीक, सब ठीक तो रिजल्ट गायब और रिजल्ट आ गया तो ज्वाइनिंग का भरोसा नहीं। क्या रास्ता छोड़ा है सरकार ने हम सबके सामने। सपने देखते-देखते उम्र गुजार दो या सब कुछ छोड़छाड़ कर सरेंडर कर दो।
क्या कहते हैं आंकड़े ?
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक के अनुसार, साल 2014 से 2022 के बीच भारत में 22 करोड़ उम्मीदवारों ने केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन किया और इनमें से केवल 7,22,000 का चयन किया गया।
राज्य़ सरकारों के लिए आवेदन का गणित अलग है। 2024 की शुरूआत में उत्तर प्रदेश पुलिस की भर्ती के लिए 50 लाख से ज्यादा छात्रों ने आवेदन दिया था जबकि पद सिर्फ 60,000 थे। इसी तरह, केंद्रीय सुरक्षा बल के 26,000 कांस्टेबल के पदों के लिए 47 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया था।
सरकारी नौकरी की चाहत क्यों ?
करियर काउंसलर मानुषी रॉय के अनुसार, भारत जैसे देश में जहां बेरोजगारी का आलम दशकों के रिकॉर्ड तोड़ रहा है, सरकारी नौकरी का ख्वाब हर नौजवान के मन में पलता है। वे बताती हैं कि, देश में ज्यादातर नौकरियों की स्थिति ठीक नहीं है। हायर एंड फायर का सिस्टम है। हाथ ज्यादा हैं काम बहुत कम लिहाजा प्राइवेट कंपनियां इसका बेजा फायदा भी उठाती हैं। सरकारी नौकरी के साथ नौकरी में स्थिरता, समय पर वेतन, समाज में रुतबा जैसे तमाम कारक जुड़े होते हैं। समाजिक हिसाब-किताब तो ये हैं कि लोग सरकारी दामाद खोजने के लिए एड़ी-चोटी लगा देते हैं।
मानुषी मानती हैं कि, इस तरह की दकियानूसी सोच उत्तर भारत के राज्यों में बहुत ज्यादा है। दक्षिणी राज्य़ों में ये सब कम है।
प्लेसमेंट कंपनी चलाने वाले रविंद्रन नाय़र, इस सोच के पीछे, प्राइवेट जॉब के बाजार में मची असुरक्षा को मानते हैं। वे कहते हैं कि, भारत में प्राइवेट कंपनियों की सर्विस कंडीशन पर पहले सरकार की निगाह हुआ करती थी। 90 के दशक के बाद बाजार में खुलेपन के नाम पर सबसे ज्य़ादा अंधेरगर्दी प्राइवेट कंपनियों ने मचाई। नायर बताते हैं कि, पीठ पर सरकार का हाथ था। नौकरियां खूब गईं, कहीं कोई सुनवाई नहीं। कर्मचारी संगठन खत्म हो गए, अदालतों में भी कोई पूछने वाला नहीं। जाहिर सी बात है इन हालात में सरकारी नौकरी की तरफ नौजवानों का रुझान और ज्यादा बढ़ा।
वे कहते हैं कि, सरकारें, अगर प्राइवेट संस्थानों की सर्विस कंडीशन और उनके कंप्लायंस पर निगाह रखें तो प्राइवेट संस्थान भी नौकरियों के लिए आकर्षण का केंद्र हो सकते हैं। उन्होंने एक सर्वे एजेंसी कांतार से मिले आंकड़ों का जिक्र करते हुए बताया कि, आज हर चार नौकरीशुदा भारतीय़ में से एक को अपनी नौकरी जाने का भय सता रहा है। 219 प्राइवेट कंपनियों से 68000 से ज्यादा कर्मचारियों की छंटनी कर दी गई। आने वाला समय तो और भयावह है जब तमाम काम इंसानों की जगह मशीनें करेंगी।
क्या सरकार सचमुच गंभीर है?
समय-समय पर दिल्ली में बैठी सरकारें रोजगार के सवाल पर तमाम तरह के दावे किया करती रही हैं। हालांकि, इस समय सरकार के आंकड़ों के हिसाब से ही देश में बेरोजगारी की दर पिछले 50 सालों में सबसे ज्यादा यानी करीब 41 प्रतिशत है। दूसरी तरफ, एक अनुमान के अनुसार, देश में विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में करीब 86 लाख पद खाली हैं जिन पर भर्तियों का इंतजार है।
केंद्र में पिछले 10 साल से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार ने हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा किया था। सरकार का दावा है कि, उसने 2018 के बाद से हर साल 2 करोड़ रोजगार के अवसर पैदा किए हैं। मानुषी के अनुसार, जब सरकार ये दावा करती है तो शायद उसका इशारा स्वरोजगार और कृषि जैसे असंगठित क्षेत्र की तरफ होता है। अगर ऐसा है तो इन क्षेत्रों को संगठित करने की जरूरत है ताकि रोजगार की बेहतर स्थितियां बनाई जा सकें।
फोटो सौजन्य-सोशल मी़डिया