नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) : केंद्र सरकार एक ऐसा कानून बनाने के तैय़ारी में जुटी है जो न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है बल्कि अगर ये लागू हो गया तो अदालतों में काम करने वाले वकीलों पर तमाम तरह की बंदिशें लग जाएंगी। उन्हें विरोघ दर्ज कराने और हड़ताल जैसे लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाएगा। यही नहीं, प्रस्तावित बिल के मसौदे में उल्लेखित नियमों के तहत किसी वकील को दुराचरण या MISCONDUCT का दोषी पाए जाने पर हमेशा के लिए वकालत के पेशे से भी हटाया जा सकता है।
ADVOCATE AMENDMENT BILL -2025
सरकार ने वकीलों से संबंधित कानूनों में संशोधन करने के लिए ADVOCATE AMENDMENT BILL -2025 का मसौदा तैयार किया है। ये मसौदा 98 पेज की पीडीएफ फाइल के रूप में सरकारी पोर्टल पर मौजूद है और लोग इस पर 28 फऱवरी तक अपनी राय दे सकते हैं। उसके बाद, इस बिल के मसौदे को अंतिम रूप दिया जाएगा।
प्रस्तावित संशोधन चौंकाने वाले
भारत में वकीलों से संबंधित तमाम नियम और संहिताएं बार काउंसिल ऑफ इंडिया तय़ करती रही है। यह अधिकार उसे ADVOCATE ACT 1961 के अधीन मिला हुआ है। वकीलों के आचरण, उनके अधिकार और सीमाएं सभी कुछ इसी एक्ट के नियमों के तहत तय हुआ करती है।
BAR COUNCIL में सरकारी प्रतिनिधि को नामित करना
लेकिन अब, ADVOCATE AMENDMENT BILL -2025 के मौसदे को देखा जाए तो इसमें सेक्शन 4 (D) के तहत बार काउंसिल में सरकारी प्रतिनिधि को भी नामित किए जाने का प्रस्ताव किया गया है। सरकार के इस प्रतिनिधि को बार काउंसिल के दूसरे तमाम सदस्यों की तरह ही सारे अधिकार होंगे जिसमें वोटिंग का अधिकार भी शामिल है। इसका सीधा सा मतलब बार काउंसिल के काम काज में सरकारी दखल को बनाना है।
MISCONDUCT का मायाजाल
प्रस्तावित बिल में MISCONDUCT या दुराचरण शब्द का ऐसा मायाजाल बुना गया है जिसका जमकर दुरुपयोग किया जा सकता है और सरकार किसी भी वकील, वकीलों की संस्था या संगठनों को अपनी धुन पर नाचने को मजबूर कर सकती है। MISCONDUCT शब्द प्रस्तावित मसौदे में कई बार आया है और अगर वकील पर दुराचरण के आरोप साबित हो गए तो उसे अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबित किया जा सकता है या फिर उसे हमेशा के लिए कानूनी पेशे से निकाला जा सकता है।
कमेटी करेगी दुराचरण के आरोपों पर फैसला
अब पहले आपको ये बता दें कि, किसी वकील, वकीलों के समूह या फिर वकीलों की संस्था के खिलाफ MISCONDUCT के मसले का कैसे निर्धारण होगा और फैसला किन नियमों के तहत होगा। ADVOCATE AMENDMENT BILL -2025 में बताया गया है कि दुराचरण से संबंधित शिकायतों की सुनवाई और फैसला एक कमेटी करेगी। कमेटी को सेक्शन 9 (B) के तहत सजा के निर्धारण का अधिकार होगा। यही नहीं कमेटी प्रस्तावित बिल के सेक्शन 26 ( A) के तहत किसी भी वकील के नाम को आजीवन बार काउंसिल की सदस्यता से हटाने का आदेश दे सकती है।
जज और वकील के बीच मतभेद
अदालतों में कई बार किसी मसले को लेकर जज और वकीलों के बीच तनातनी हो जाती है। किसी मामले में दोनों पक्षों की दलीलें अलग- अलग होती हैं। वकील आमतौर पर अपने विरोध को जाहिर करने के लिए प्रदर्शन, न्यायिक कामों से अनुपस्थिति या हड़ताल जैसे रास्तों को चुनते हैं। भारत की आदालतों में यह बहुत आम है। लेकिन ADVOCATE AMENDMENT BILL -2025 के सेक्शन 135 ( A) के तहत इसे MISCONDUCT या दुराचरण का आधार बनाया जा सकता है।
इसका मतलब क्या है ? कोई भी वकील या वकीलों का समूह या फिर वकीलों की संस्था किसी भी मामले में अपने विरोध को जाहिर नहीं कर सकती है। उसे ADMINISTRATION OF JUSTICE यानी न्यायिक प्रशासन में बाधा डालने के आरोप में दुराचरण का आरोपी ठहराया जा सकता है। हां वह अपना विरोध जाहिर कर सकता है लेकिन न्यायिक कार्यावधि के बाद। मतलब, 9 से 5 अदालत का काम खत्म होने के बाद धऱना या विरोध प्रदर्शन करना हो तो करो। सवाल ये है कि, अगर किसी विरोध प्रदर्शन से कोई फर्क ही नहीं पड़ने वाला तो उसे करने का मतलब ही क्या रह जाता है? दरअसल, सरकार यही चाहती है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो अगर ये बिल कानून बन गया तो अदालतों में कार्यावधि के दौरान, किसी वकील और वकीलो के संगठनों को किसी भी तरह के प्रभावी विरोध प्रदर्शन या हड़ताल जैसी चीजों की इजाजत नहीं होगी।
मुवक्किल यानी क्लाइंट और वकील के बीच विवाद की स्थिति
आमतौर पर कोई भी वकील कभी केस हारने के लिए नहीं लड़ता है। केस को जीतने के लिए वो हर संभव दलील और साक्ष्य अदालत के सामने रखता है। लेकिन फिर भी वो कभी-कभी केस हार जाता है। तमाम दलीलों और साक्ष्यों के बावजूद वो जज साहब को कनविंस नहीं कर पाता। ADVOCATE AMENDMENT BILL -2025 के सेक्शन 45 (B) के तहत ऐसे मामलों में अगर मुवक्किल या क्लाइंट चाहे तो वकील के खिलाफ असंतोष जाहिर करते हुए उस पर दुराचरण का आरोप लगा सकता है और उसकी शिकायत कर सकता है। वकील के खिलाफ शिकायत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ता आयोगों में की जा सकती है। यही नहीं, भारतीय न्याय संहिता की धारा 223 के तहत भी मामला बन सकता है। वकील को ऐसे मामले में हर्जाना भी भरना पड़ सकता है।
अब इसे व्यावहारिक स्थिति में भी देखा जाना चाहिए। कोई भी क्लाइंट केस को हारने और उस पर पैसे और समय को खर्च करने के बाद क्या वकील से खुश हो सकका है, जवाब नहीं होगा। फिर इस प्रस्ताव का मतलब क्या है, सिर्फ वकीलों की नाक में नकेल डालना। उन्हें विभिन्न प्रावधानों के तहत इस तरह से उलझाना कि उनके लिए काम करना दुश्वार हो जाए।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना
आपको बता दें कि, 7 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया लॉयर्स एवं जसबीर सिंह के जुड़े एक मामले मे एक फैसला सुनाया था। फैसले में सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट किया था कि, किसी भी अधिवक्ता या वकील के खिलाफ उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में साफ कहा था कि वकील और उसके मुवक्किल के बीच रिश्ता विभिन्न कानूनी प्रावधानों, साक्ष्यों और दलीलों पर निर्भर करता है उसे उपभोक्ता और वकील के रिश्तों की तरह से नहीं परिभाषित किया जा सकता है। लिहाजा, किसी भी अधिवक्ता के खिलाफ, किसी भी मुवक्किल की शिकायत को उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत नहीं स्वीकारा जा सकता।
एक तरफ जब, सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया और उसी दौरान ADVOCATE AMENDMENT BILL -2025 का मसौदा तैयार करते समय किसी वकील को उसके केस के सिलसिले में उपभोक्ता आयोगों को सामने लाकर खड़ा कर देना कहां तक न्यायोचित माना जा सकता है? इसमें कोई दोराय नहीं कि, इन प्रावधानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच विवाद की स्थिति पैदा होगी।
सरकार की मंशा पर सवाल
इन प्रावधानों को लेकर सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि सरकार को इस फैसले की जानकारी न हो लेकिन फिर भी इस तरह के नियमों को मसौदे में शामिल करके सरकार आखिर साबित क्या करना चाहती है? क्या उसकी मंशा अदालती आदेशों के अवहेलना की है? पहले भी ऐसा देखा गया है। अभी हाल- फिलहाल में दिल्ली में चुनी हुई सरकार और लेफ्टिनेंट गवर्नर के बीच सत्ता संघर्ष के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को जिस तरह रातोंरात अध्यादेश के जरिए पलटा गया वह भी कुछ इसी तरह की मानसिकता को दर्शाता है।
विदेशी लॉ फर्म्स की कमान सरकार के पास
ADVOCATE AMENDMENT BILL -2025 के सेक्शन 49 (A) के तहत, अब किसी भी विदेशी लॉ फर्म को भारत में कामकाज की आजादी होगी। उनसे संबंधित सारे नियम कायदे बार काउंसिल नहीं बल्कि केंद्र सरकार बनाएगी। पहले भी विदेशी लॉ फर्मस् भारत में काम करती रही हैं लेकिन उनकी भूमिका सिर्फ सलाहकारी यानी कंसल्टेंसी तक ही सीमित थी।। अब सरकार उनके लिए भारतीय अदालतों के दरवाजे खोलने जा रही है और साथ ही उनके लिए जो भी नियम कायदे तय होंगे उनका निर्धारण भी सरकार के हाथों में होगा। बार काउंसिल की उसमें क्या कोई भूमिका होगी भी या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है।
आपराधिक मामले और अधिवक्ता
ADVOCATE AMENDMENT BILL -2025 का सेक्शन 24 (A) सजायाफ्ता अधिवक्ता के संबंधित है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि, अगर किसी वकील को किसी केस में 3 साल या अधिक समय के लिए कनविक्ट किया गया है तो ऐसी स्थिति में अधिवक्ता के रूप में उसके नाम को बार काउंसिल के पटल से हटा दिया जाएगा। यानी वकील को अगर किसी मामले में 3 साल या उससे अधिक की सजा सुना दी गई है तो वकील के रूप में वो आगे काम नहीं कर पाएगा।
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