नई दिल्ली, 31 अक्टूबर (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : पिछले कई साल से चल रही रस्म अदायगी एक बार फिर शुरू हो गई है, लेकिन हालात इस बार भी खराब ही दिख रहे हैं। हर बार की तरह दिवाली के बाद दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। सरकार ने इस साल भी वायु प्रदूषण से निपटने के लिए GRAP के तीसरे स्तर को लागू कर दिया है, लेकिन इसका कोई ज्यादा असर पड़ेगा ऐसा फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। अक्टूबर के दूसरे हफ्ते में लगातार तीन दिन हुई बारिश के बाद जहां इस इलाके में हवा बेहद साफ हो गई थी, वो फिर काफी प्रदूषित हो गई है।
पराली और पटाखे कितने जिम्मेदार ?
दिल्ली-एनसीआर में जाड़ों में होने वाले प्रदूषण के लिए पराली को सबसे बड़ा खलनायक माना जाता रहा है, लेकिन कई विशेषज्ञ कहते हैं कि पराली तो सालों से जलाई जाती रही है, लेकिन उससे पहले इतना प्रदूषण नहीं हुआ जितना हाल के सालों में देखने में आया है। वैसे, पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए पिछले कुछ सालों से कई इंतजाम किए गए हैं। पराली को गलाकर खाद में बदलने वाले केमिकल किसानों को देने से लेकर पराली को कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स में भेजने तक के इंतजाम किए गए हैं, लेकिन फिर भी प्रदूषण के स्तर में खास कमी देखने में नहीं आ रही है।
दिवाली पर पटाखे फोड़ने से होने वाले प्रदूषण को भी कई विशेषज्ञ इतना बड़ा नहीं मानते। उनका कहना है कि एक दिन का ये मामला तभी गंभीर बनता है, जब पहले से प्रदूषण का स्तर ज्यादा हो और हवा की रफ्तार कम हो। प्रदूषण के मूल कारणों के लिए वे कई और कारकों को जिम्मेदार मानते हैं।
वाहन हैं सबसे बड़े विलेन
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक अध्ययन से पता चलता है कि दिल्ली में होने वाले वायु प्रदूषण में वाहनों का 36 प्रतिशत का योगदान है। कई विशेषज्ञ कहते हैं कि ये आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है। यही हालत एनसीआर इलाके के और शहरों की है। इसके साथ ही वाहनों के सड़कों पर चलने से जो धूल और अन्य कण पैदा होते हैं, वे भी वायु प्रदूषण का एक बहुत बड़ा कारण हैं। वाहनों की संख्या के बढ़ने का कारण अब भी सार्वजनिक यातायात की पुख्ता व्यवस्था न होना है। अकेली मेट्रो दिल्ली जैसे शहर की जरूरतों को संभाल नहीं पा रही है। कई लोगों की अपने ही वाहन से जाने की जिद भी दिल्ली की हवा को खराब कर रही है। निजी वाहनों की संख्या पर लगाम लगाने की कोशिश न सरकार ने पहले की और न अब कर रही है।
शिद्दत से काम नहीं हो रहा
सरकार ने GRAP के तहत नियमित अंतराल पर सड़कों की धुलाई करने को कहा है, लेकिन ये काम भी दिल्ली यो या एनसीआर, कहीं भी शिद्दत से नहीं किया जाता। इससे हवा में पीएम 2.5 का स्तर काफी बढ़ जाता है। स्मॉग टावर्स से प्रदूषण पर काफी काबू पाया जा सकता है। चीन ने इनकी मदद से अपने कई शहरों में प्रदूषण पर लगाम पाने में कामयाबी हासिल की है। दिल्ली और नोएडा में कुछ जगहों पर ये टावर लगाए तो गए हैं, लेकिन इनकी संख्या नाकाफी है।
पर्यावरण मंत्रालय ने 2017 में एक गाइलाइन जारी करके दिल्ली और एनसीआर की सरकारों से फसलों के अवशेष और खुले में कूड़ा जलाने पर रोक लगाने को कहा था। इसके साथ ही निर्माण स्थलों के प्रदूषण पर रोक लगाने, होटलों, रेस्टोरेंट्स में कच्चा कोयला और लकड़ी जलाने पर भी रोक लगाने को कहा गया था। मंत्रालय ने राज्यों से ये भी कहा था कि वे वाहनों से होने वाले पलूशन पर रोक लगाने के लिए स्मार्ट ट्रैफिक मैनेजमेंट पर अमल करें और सड़कों की हालत दुरुस्त रखें। गाइडलाइंस में ये भी कहा गया था कि दिल्ली में आने वाले मालवाहक वाहनों की ओवरलोडिंग रोकने के लिए बॉर्डर पर इनका वजन नापने की मशीनें लगाएं। सड़कों पर धूल न उड़े, इसके लिए भी जरूरी इंतजाम किए जाएं। उसने बिना जिगजैग तकनीक वाले ईंट भट्ठों को भी बंद करने को कहा था।
मंत्रालय के कई सुझावों पर अमल तो हो रहा है, लेकिन जितनी शिद्दत से ये काम होना चाहिए था, वो नहीं हो रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हर साल गठित की जाने वाली टीमें भी साफ हवा के लक्ष्य को हासिल करने में खास मददगार साबित नहीं हो पा रही हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली-एनसीआर में पल्यूशन के सबसे बड़े स्रोत- वाहनों की संख्या पर लगाम लगाने के लिए सरकार को ठोस नीति बनानी होगी। सड़कों और निर्माण स्थलों से धूल न उठे इसके लिए सख्त कदम उठाने होंगे। स्मॉग टावर्स की संख्या हर शहर में बढ़ानी होगी। सड़कों की धुलाई नियमित अंतराल पर करानी होगी। जिन होटलों और ढाबों में अब भी कच्चा कोयला और लकड़ी जलाई जाती है, उन पर कार्रवाई करनी होगी। जाड़ों में कहीं भी धुआँ न पैदा हो, इसके लिए बाजारों पर खास नजर रखनी होगी। सड़कों की हालत सुधारने के साथ ही स्मार्ट ट्रैफिक मैनेजमेंट पर ध्यान देना होगा। वैसे, अभी के जो हालात हैं, दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, देश के बहुत से शहरों में हवा की क्वॉलिटी बेहद खराब हो चुकी है। सरकार ने इसे बेहतर बनाने के लिए नेशनल एयर क्वॉलिटी प्रोग्राम लॉन्च किया है, लेकिन इसके नतीजे भी उत्साह बढ़ाने वाले नहीं हैं।
विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई
अगस्त 2018 में पर्यावरण संबंधी मामलों की संसदीय समिति ने दिल्ली-एनसीआर में पेड़ों की कम होती संख्या पर चिंता जताई थी। उसने कहा था कि इससे राजधानी और आसपास के इलाकों की हरियाली तो कम हो ही रही है, पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ रहा है। उसका कहना था कि विकास योजनाएं इस तरह से तैयार की जानी चाहिए, जिससे कम से कम पेड़ काटने की नौबत आए। इस समिति ने भी वाहनों की संख्या कम करने और सड़कों की सफाई पर खास जोर दिया था। उसने ये भी कहा था कि स्मार्ट ट्रैफिक सिस्टम को दिल्ली-एनसीआर के हर शहर में जल्द लागू किया जाए। इस पर कोई खास काम अब तक नहीं हो पाया है। समिति का ये भी कहना था कि सरकार को वाहनों के पल्यूशन पर लगाम लगाने के लिए फ्यूल की क्वॉलिटी और वीइकल टेक्नॉलजी पर भी फोकस करना होगा। देश में मिलावटी फ्यूल मिलने की शिकायतें आम हैं। समिति की रिपोर्ट में दिल्ली में लैंडफिल साइट्स के खराब मैनेजमेंट पर भी नाखुशी जताई गई थी। कहा गया था कि इनमें आग लगने की कई घटनाएं हो चुकी हैं। इसके कारण जहरीली गैसें पैदा होती हैं, जो कि सेहत के लिए खतरनाक हैं।
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