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जानिए, ओबीसी आरक्षण पर अदालती फैसला कैसे बना योगी के गले की फांस…?

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लखनऊ ( गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र) : इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार की ओर से जारी ड्राफ्ट नोटीफ़िकेशन को रद्द कर दिया है और ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव कराने का निर्देश दिया है। अदालत ने इस बारे में प्रदेश सरकार की शहरी स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर पांच दिसंबर की अधिसूचना को भी भी खारिज कर दिया। फै़सला न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने सुनाया।

हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद ओबीसी आरक्षण को लेकर नए सिरे से बहस शुरू हो गई। विपक्षी पार्टियों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है वहीं फैसले ने खुद बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।

क्या था मामला ?

निकाय चुनावों को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से जारी अधिसूचना के खिलाफ हाई कोर्ट में एक पीआईएल दाखिल की गई थी जिसमें ओबीसी आरक्षण को लागू करने की प्रक्रिया को चुनौती देते हुए इसे सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के खिलाफ बताया गया। पीआईएल में कहा गया था कि, आरक्षण परिपत्र में सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट फार्मूले का ध्यान नहीं रखा गया। सरकार को इसका ध्यान रखना चाहिए और ओबीसी की स्थिति के आंकलन के लिए एक आयोग गठित करना चाहिए।

ट्रिपल टेस्ट फार्मूले के तहत, नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण तय करने से पहले आयोग गठित किया जाता है जो पिछड़ेपन का आंकलन करता है। इसके बाद सीट आरक्षण प्रस्तावित किया जाता है। अगले चरण में ओबीसी की संख्या पता की जाती है और फिर तीसरे चरण में सरकार के स्तर पर इसे सत्यापित किया जाता है।

हाई कोर्ट को क्या थी आपत्ति ?

हाई कोर्ट, यूपी सरकार ने ओबीसी आरक्षण को लेकर जो फार्मूला लागू किया था उससे असहमत था। यूपी सरकार ने अदालत को बताया कि, उसने एक रैपिड सर्वे कराया और ये ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले की ही तरह था। लेकिन अदालत ने इससे अपनी असहमति जताते हुए यूपी सरकार के आरक्षण परिपत्र को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निर्धारित ट्रिपल टेस्ट न हो, तब तक आरक्षण नहीं माना जाएगा।

हाई कोर्ट के फैसले से योगी सरकार की किरकिरी

हाई कोर्ट के फैसले ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार की किरकिरी शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि, उनकी सरकार नगर निकाय चुनावों में ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण देगी। उन्होंने कहा कि, जरूरी हुआ तो उनकी सरकार सुप्रीम कोर्ट में भी अपील कर सकती है।

विपक्षी दलों ने बीजेपी पर उठाए सवाल

हाई कोर्ट के फैसले के बाद बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने ट्वीट करते हुए लिखा कि, यूपी में बहुप्रतीक्षित निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग को संवैधानिक अधिकार के तहत मिलने वाले आरक्षण को लेकर सरकार की कारगुजारी का संज्ञान लेने सम्बंधी माननीय हाईकोर्ट का फैसला सही मायने में भाजपा व उनकी सरकार की ओबीसी एवं आरक्षण-विरोधी सोच व मानसिकता को प्रकट करता है।……ट्रिपल टेस्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था को समय से निर्धारित करके चुनाव की प्रक्रिया को अन्तिम रूप दिया जाना था, जो सही से नहीं हुआ। इस गलती की सज़ा ओबीसी समाज बीजेपी को ज़रूर देगा।

समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इस ममाले में सरकार की मंशा पर सवाल उठाए। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि, आज भाजपा ने पिछड़ों के आरक्षण का हक़ छीना है, कल भाजपा बाबा साहब द्वारा दिए गए दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी।

आज़ाद सामाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्र शेखर आज़ाद ने भी एक ट्वीट में लिखा कि, यूपी के निकाय चुनावों मे पिछड़ों के आरक्षण पर कुठाराघात भाजपा की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव बाबा साहब की सोच और पूरे बहुजन समाज के साथ नितांत धोखा है।

कांग्रेस ने बीजेपी को दलित विरोधी सोच का गुनाहगार कहा है। पार्टी का कहना है कि यूपी सरकार ने अदालत के सामने रैपि़ड सर्वे जैसी जो दलील दी वो गले उतरने वाली नहीं है। सरकार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन करना चाहिए।

आपको बता दें कि, यूपी सरकार ने इस महीने की शुरुआत में पांच दिसंबर को प्रदेश की 17 महापालिकाओं के मेयरों,  200 नगर पालिका और 545 नगर पंचायत अध्यक्षों के आरक्षण की एक प्रॉविजनल लिस्ट जारी की थी। लिस्ट के मुताबिक प्रदेश में चार मेयर सीट (अलीगढ़, मथुरा-वृंदावन, मेरठ और प्रयागराज) को ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित किया गया था।

इनमें से अलीगढ़ और मथुरा-वृंदावन ओबीसी महिला के लिए आरक्षित थी। नगरपालिका अध्यक्ष की 54 और नगर पंचायत अध्यक्ष की 147 सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित की गईं थीं।

फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया

 

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