लखनऊ ( गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र ) : पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की तरीखों की घोषणा कर दी गई है। उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में चुनाव होने हैं। उत्तरप्रदेश में 10 फऱवरी को पहले चरण का मतदान होगा जबकि सातवें यानी अंतिम का मतदान 7 मार्च को होगा। उत्तराखंड, पंजाब और गोवा में 14 फरवरी को मतदान होगा। मणिपुर में चुनाव दो चरणो 27 फऱवरी और 3 मार्च को होगा । मतगणना 10 मार्च को होनी है। वैसे तो सभी राज्यों के चुनावों का अपना महत्व है लेकिन उत्तरप्रदेश के चुनाव पक्ष और विपक्ष दोनों ही धड़ों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गए हैं। कोई दोराय नहीं कि यहां की जीत या हार 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए एक पृष्ठभूमि तैयार करेगी। ये चुनाव कई राजनीतिक दलों और व्य़क्तियों के अलावा, देश की राजनीति को भी कई तरह से प्रभावित करने वाले हैं।
मोदी फैक्टर का लिटमस टेस्ट
इन चुनावों में सबसे बड़ी परख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और मोदी ब्रांड की अहमियत की होने वाली है। इसमें कोई दो राय नहीं कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के अलावा इन राज्यों में 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के पास मोदी ब्रांड की मौजूदगी इनके लिए तुरुप का पत्ता साबित हुई थी। स्थानीय स्तर पर किसी नेता का न तो वो कद था और न वो प्रतिष्ठा जो मोदी ब्रांड को टक्कर दे पाती। पिछले कुछ विधानसभा चुनावो में मोदी ब्रांड उस तरह का कमाल नहीं दिखा पा रहा है जो पहले दिखाई दे रहा था । ऐसे में प्रधानमंत्री की निजी छवि और प्रतिष्ठा इन चुनावों में दांव पर लगेगी ये तय है। ये भी तय है कि, अगर इन चुनावों में मोदी के नाम का जादू नहीं चला तो उनके लिए 2024 में अपनी जगह को मजबूत रख पाना भी मुश्किल होगा।
योगी की ताकत
राजनीतिक के अखाड़े में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी में दूसरे नंबर पर उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को स्थापित करने का यत्न जोरशोर से किया जा रहा है। इसके पीछे योगी की कट्टर हिंदू नेता की छवि के साथ उनके ऊपर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का हाथ होने की बात कही जाती है। पिछले विधानसभा चुनाव में योगी आदित्य नाथ उत्तरप्रदेश में बीजेपी की राजनीति का चेहरा नहीं थे। चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ा गया और जीता गया। योगी पूरे राज्य में बीजेपी के सर्वमान्य नेता कभी नहीं बन पाए। पार्टी के भीतर ही उन्हें तमाम दूसरे धड़ों के विरोध का सामना करना पड़ा। कहा तो यहां तक जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी योगी आदित्य नाथ को पसंद नहीं करते। योगी के कद को छांटने के लिए ए. के .शर्मा को आईएएसस की नौकरी छुड़ा कर गुजरात से लखनऊ भेजा गया लेकिन ये प्रयोग सफल नहीं रहा। देखना ये होगा कि क्या इन चुनावो के बाद योगी खुद को स्वतंत्र रूप से मोदी की छाया से अलग बीजेपी के एक विश्वसनीय चेहरे के रूप में स्थापित कर पाते हैं नहीं।
राहुल- प्रियंका का कद
उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड, पंजाब और गोवा में कांग्रेस का प्रदर्शन कांग्रेस नेतृत्व के लिए अस्तित्व की लड़ाई साबित होने जा रहा है। कांग्रेस में नेतृत्व के खिलाफ पहले ही जी- 23 के नेता मुखर हैं। पंजाब में नेतृत्व परिवर्तन के साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह से मिलने वाली चुनौती और सबसे बड़ा प्रियंका गांधी की महिलाओं को राजनीति में ज्यादा हिस्सेदारी देने का प्रयोग कितना प्रभावी साबित होता है ये सब दांव पर होगा। राहुल गांधी पहले ही अपनी राजनीतिक शैली को लेकर विवादों में रहते हैं। कोविड और अर्थव्यवस्था के बहाने उन्होंने सरकार पर दबाव जरूर बनाया था लेकिन उससे उनके राजनीतिक कद पर कितना फर्क पड़ने वाला है ये देखने वाली बात होगी।
उत्तरप्रदेश में कांग्रेस करीब तीन दशक के बाद सभी विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है। इस बहाने कांग्रेस अपनी खुद की स्थिति का आंकलन करना चाहती है। प्रियंका गांधी उत्तरप्रदेश में खुद पार्टी की कमान संभाल रही हैं और वे एक जुझारू नेता के रूप में अपनी छवि को मजबूत करती दिख रही है लेकिन जनता के मन वे किस हद तक जगह बना पाई हैं ये देखने वाली बात होगी।
नए राष्ट्रपति का चुनाव
देश में राष्ट्रपति चुनाव 7 जुलाई के होने हैं। विधानसभा चुनावों में बीजेपी का अपेक्षाकृत मजबूत प्रदर्शन न होने का कारण उसे राष्ट्रपति पद पर अपनी पसंद का उम्मीदवार निर्वाचित कराने में मुश्किल हो सकती है। राज्य विधानसभाओं में बीजेपी की स्थिति अगर कमजोर होती है तो उसे अपने उम्मीदवार के लिए जो संख्याबल चाहिए वो नहीं हासिल हो पाएगा और विपक्षी उम्मीदवार के लिए ये फाय़दे की बात होगी।
राज्यसभा का गणित
जुलाई तक राज्यसभा की 73 सीटों के लिए चुनाव होने हैं। विधानसभा में सीटों के गणित से ही राज्यसभा की सीटें तय होती हैं। यानी किस पार्टी को राज्यसभा में कितनी सीटें मिलने जा रही हैं ये विधानसभा में पार्टी के सदस्यों की संख्या से ही तय होगा। अगर इन चुनावों में बीजेपी की स्थिति मजबूत नहीं रही तो राज्यसभा में उसके संख्याबल पर असर पड़ेगा। अल्पमत की स्थिति में किसी कानून को पास करना भी मुश्किल होगा।
क्षेत्रीय दल और गठबंधन का प्रयोग
इन विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, अकाली दल, राष्ट्रीय़ लोकदल जैसे कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। हालांकि इस बार उत्तरप्रदेश में बीजेपी के मुकाबले समाजवादी पार्टी गठबंधन मुख्य प्रतिद्वंदी के तौर पर सामने हैं और लड़ाई कांटे की है लेकिन वास्तव में समाजवादी पार्टी कितनी ताकतवर है इसका आंकलन तो चुनावों में प्रदर्शन से ही जाहिर हो पाएगा।
बंगाल के बाहर दीदी का असर
तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल के बाहर इन चुनावों में अपनी ताकत को आजमाने की कोशिश की है। गोवा में तृणमूल कांग्रेस दमखम का साथ चुनाव में उतर रही है। बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन तैयार करने की पहल भी कुछ दिनों पहले ममता बनर्जी ने की थी। उन्हें राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, शिवसेना जैसे दलों से समर्थन भी मिला था लेकिन कांग्रेस की तऱफ से उन्हें कोई सकारात्मक संकेत नहीं मिला। ममता बनर्जी ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए दूसरे राज्यों में अपनी ताकत को आंकना शुरू कर दिया है। अगर यहां उन्हें सफलका मिलती है तो निश्चित रूप से मोदी विरोधी मोर्चे की धुरी के रूप में ममता बनर्जी की जगह और मजबूत होगी।
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