लखनऊ (गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र ) : उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव जैसे- जैसे पूरब की तरफ बढ़ रहा है वैसे- वैसे राज्य में लाभार्थी (सरकारी योजनाओं का अधिकतम लाभ पाने वाला वर्ग) वोटबैंक का सवाल भी कहीं ज्यादा प्रासंगिक होता जा रहा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्य का वो इलाका है जो अपेक्षाकृत पिछड़ा एवं गरीब है। जनसंख्या का घनत्व ज्यादा है और यहां राजनीति में जातीय और इलाकाई समीकरण काफी मायने रखते हैं।
बीजेपी का दावा है कि कोरोना काल के बाद से राज्य के 15 करोड़ लोगों को लगातार मुफ्त राशन और दूसरी सरकारी योजनाओं का लाभ उपलब्ध कराया जा रहा है। पार्टी का मानना है कि, निश्चित रूप से राज्य की जनता अगली सरकार चुनते वक्त इन बातों को ध्यान में रखेगी। किसान सम्मान निधि और उज्ज्वला जैसी सरकारी योजनाओं लाभ उठाने वाला वर्ग भी बीजेपी का लक्षित वोटबैंक है।
सवाल ये है कि क्या वास्तव में उत्तर प्रदेश का ये लाभार्थी वर्ग बीजेपी को वोट का लाभ पहुंचाने वाला है या इसकी निष्ठा सवालों के घेरे में है ?
लाभार्थी, कितने लाभ में
मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने विभिन्न चुनावी सभाओं में दावा किया है कि कोरोना काल के बाद से ही राज्य के 15 करोड़ लोगों को लगातार हर महीने एक मुश्त राशन, खाने का तेल और नमक उपलब्ध कराया जा रहा है जिसमें नमक के अलावा पांच किलो गेंहू, एक किलो दाल और एक लीटर खाने का तेल शामिल है। कहीं-कहीं चना भी राशन में दिया गया है। मुफ्त राशन की ये स्कीम पहले 31 जनवरी 2021 तक थी लेकिन राज्य सरकार ने इसे बढ़ाकर 31 मार्च 2022 तक कर दिया है। सरकार का दावा है कि इसी तरह उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन भी इस इलाके में खूब बांटा गया है। शौचालय और इंदिरा आवास योजना के तहत मकान बनाने में सहायता भी काफी की गई है।
महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम के तहत भी काफी काम कराए गए हैं और ग्रामीणो को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। बीजेपी ये मान कर चल रही है कि इन सरकारी योजनाओं का लाभ उसके लिए सियासी फायदे का सौदा साबित होगा। पिछले दिनों गृहमंत्री अमित शाह ने भी एक चुनावी सभा में बात को आगे बढ़ाते हुए कहा था कि 10 मार्च को बीजेपी को चुनाव जिताइये और 20 मार्च को होली के बाद एक गैस सिलेंडर मुफ्त ले जाइए।
लाभार्थी क्या सचमुच एक वोटबैंक है
लखनऊ से रायबरेली के रास्ते में मोहनलाल गंज के आगे सड़क किनारे काम करने वाली रामरती पास के ही एक गांव की निवासी हैं। वे बताती हैं कि, पिछले कुछ महीनों से राशन और कुछ दूसरी चीजें मिल रही हैं। इनसे मदद हो जाती है। कोरोना के बाद से गांव के पास के बाजार में दुकान पर काम ठंडा था। गाय-गोरू खेत भी चर जाते हैं। उसे भी बचाना पड़ता है। राशन न मिलता तो भूखे मर जाते।
मैंने कहा, सरकार तो फिर ठीक है। इतना फायदा मिल रहा है। वोट तो कमल को ही दोगी। रामरती का जवाब थोड़ा चौंकाने वाला था। बोली पैदा तो हमीं करके देते हैं कौन सा एहसान कर रहे हैं। चुनाव है, तब तक है सब, उसके बाद सब खतम। सरकार तो मायावती की अच्छी थी।
रायबरेली, सुल्तानपुर, अमेठी, प्रतापगढ़ कई जगहों पर रामरती जैसे कई लाभार्थी मिले और उनके जवाब भी कम चौंकाने वाले नहीं रहे।
सुल्तानपुर के रामनिहोर ने लाभार्थी कहलाने पर ही एतराज किया। उन्होंने कहा कि सरकार कहती है कि 15 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दे रहे हैं। सरकार ये तो बताए कि 24 करोड़ के उत्तर प्रदेश में 15 करोड़ लोगों की हालत 2 समय अपना पेट भरने की क्यों नहीं रही। उज्ज्वला में गैस कनेक्शन तो मिल गया लेकिन सिलेंडर 1000 के करीब है कहां से भराएंगे। मनरेगा में थोड़ा काम मिल जाता था लेकिन आजकल उसमें भी परेशानी है। पैसा देर से मिलता है। रामनिहोर कहते हैं कि, हमें पता है कि सारा खेल चुनाव तक है। उसके बाद कौन लाभार्थी और कौन सा राशन।
लेकिन सभी लाभार्थी एकराय हों ऐसा भी नहीं है। रायबरेली से प्रतापगढ़ की तरफ आगे बढ़िए तो जायस पड़ता है। मलिक मुहम्मद जायसी का गांव। कस्बा कह सकते हैं। यहां फजल मुहम्मद मिल गए। कहने लगे, लाभार्थियों से बीजेपी को फायदा होगा। काफी वोटर बीजेपी को सिर्फ इसलिए वोट देंगे कि उन्हें मुश्किल वक्त में मदद तो मिली। लेकिन फजल मानते हैं कि लोग परेशान हैं और उन्हें ये भी समझ है कि चुनाव बाद स्थितियां बदल जाएंगी। वे मानते हैं कि सरकार कोई भी आए बीजेपी या समाजवादी उसके लिए ऐसी योजनाओं को लंबे समय तक जारी रख पाना मुश्किल होगा।
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में चार चरण के मतदान में 403 सदस्यों वाली विधानसभा में आधे से ज्यादा सीटों के लिए वोट पड़ चुके हैं। सरकार जिन 15 करोड़ लाभार्थियो की बात कर रही है उनमें से लगभग 60 प्रतिशत उत्तर प्रदेश के उन इलाकों में रहते हैं जहां अब आगे के तीन चरणों में वोट पड़ने हैं।
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