पटना, 27 जुलाई ( गणतंत्र भारत के लिए राजेश कुमार ) : क्या बिहार एनडीए में सब कुछ छीकठाक नहीं है ? मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी के रिश्तों में खटास की खबरें तो काफी समय से हवा में तैर रही हैं लेकिन बीजेपी हो या जेडीयू दोनों ही तरफ से सीधे तौर पर साफ-साफ कुछ भी कहने से बचा जा रहा था। लेकिन, हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई महत्वपूर्ण आयोजनों से खुद को अलग रख कर इन चर्चाओं को फिर हवा दे दी।
पहला वाकया, 25 जुलाई का है जब नीतीश कुमार नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए। इससे पहले, 22 जुलाई को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के बिदाई समारोह से भी नीतीश कुम्रार ने खुद को अलग रखा। इसी तरह से 17 जुलाई को राष्ट्रीय ध्वज को लेकर गृहमंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्रियों की एक बैठक आयोजित की थी जिसमें नीतीश कुमार शामिल नहीं हुए।
क्या है नीतीश की नाराजगी की वजह ?
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, नीतीश कुमार की नाराजगी की वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 12 जुलाई को पटना दौरे से जुड़ी एक घटना है। 12 जुलाई को बिहार विधानसभा के शताब्दी समारोहों में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पटना गए थे। समारोह में प्रधानमंत्री और नीतीश कुमार ने एक दूसरे की तारीफ भी की। दरअसल, नीतीश की नाराजगी विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने जिस तरह से इस समारोह को आयोजित किया उससे बताई जाती है। समारोह के लिए छपे निमंत्रण पत्र पर नीतीश कुमार का नाम तक नहीं था। नीतीश कुमार ने इसे अपनी तौहीन माना और उन्होंने अपनी नाराजगी को संकेतों के जरिए बीजेपी शीर्ष नेतृत्व को देने की कोशिश भी की।
इस बीच, पटना में 30 और 31 जुलाई को बीजेपी के विभिन्न मोर्चों की बैठक होने जा रही है। मकसद 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी की तैयारियों और रणनीति को आंकना है। बैठक में गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शामिल हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार इस बैठक पर बहुत बारीक निगाह जमाए हुए हैं और वे अपनी आगे की रणनीति इस बैठक के बाद ही तय करेंगे।
आपको बता दें कि, नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच रिश्तों में तल्खी की खबरें तब से आनी शुरू हुईं थी जब ईद के दौरान नीतीश कुमार, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की इफ्तार पार्टी में शामिल हुए थे। उसके बाद बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से धर्मेंद्र प्रधान ने नीतीश कुमार से भेंट करके उनकी नाराजगी को दूर करने की कोशिश की थी। नीतीश कुमार को ये आश्वासन भी दिया गया था कि राज्य में एनडीए का नेतृत्व उन्हीं के हाथों में रहेगा और बीजेपी उनसे अलग जाने के बारे में सोच भी नहीं सकती।
इस मुलाकात के बाद नीतीश कुमार की तरफ से भी तल्खी को शांत करने की कोशिश की गई लेकिन सीधे-सीधे कुछ भी कहने परहेज किया गया। लेकिन प्रधानमंत्री की मौजूदगी में अपने साथ हुए इस वाकये से नीतीश कुमार की नाराजगी के घाव फिर हरे हो गए। देखना ये है कि राजनीति के खेल के माहिर खिलाड़ी नीतीश कुमार अपनी अगली चाल क्या चलते हैं। जेडीयू के एक नेता का कहना है कि नीतीश कुमार का राजनीति करने का अपना एक तरीका है। उनके दिमाग में क्या चल रहा है इसे भांपना अच्छे-अच्छों के बस की बात नहीं। लेकिन जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं उससे जाहिर हो रहा है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है।
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