नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र): पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के एक आईपीएस अधिकारी ने ट्विटर पर सिविल सेवा के अपने स्टडी मटीरियल को जरूरतमंदों से साझा करने की पहल की। अपने किस्म की इस अनूठी पहल ने तमाम छात्रों को उसका लाभ उठाने के लिए प्रेरित किया और उस अधिकारी की पहल का जोरदार स्वागत किया।
इसके समानांतर, दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकार ने सिविल सेवा की तैयारियों में जुटे छात्रों के लिए मुफ्त कोचिंग शुरू करने की घोषणा कर दी। दिल्ली में छात्रों को ये कोचिंग सेवारत आईएएस और आईपीएस अफसरों से छात्रों का संवाद करा कर उनका मार्गनिर्देशन करने के रूप में दी जाएगी।
दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में भी अल्पसंख्यक छात्रों और महिला उम्मीदवारों के लिए सिविल सेवा की तैयारी के लिए कोचिंग देने की काम पहले से चल रहा है। दिलचस्प बात ये हैं जामिया के कोचिंग सेंटर के नतीजे काफी उत्साहजनक हैं और वहां से हर साल सफल होने वाले छात्रों की संख्या बढ़ रही है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी महीने मुख्यमंत्री अभ्युदय योजना के माध्यम से इच्छुक छात्रों को कोचिंग देने की घोषणा की है। इस योजना में छात्रों को मंडल स्तर पर आईएएस, आईपीएस और प्रांतीय सिविल सेवा के अधिकारी मार्गनिर्देशन देने का काम करेंगे।
राजस्थान सरकार पहले से ही अपने यहां अनुसूचचित जनजाति के छात्रों को सिविव सेवा परीक्षा के लिए प्रशिक्षित करने का काम करती रही है। उसकी इस योजना के तहत वो इच्छुक छात्रों की जाने माने कोचिंग सेंटरों के माध्यम से तैयारी कराती रही है।
तमिलनाडु और केरल में छात्रों के लिए सालों से ऐसी योजनाएं चल रही हैं।
क्या सचमुच फायदेमंद है सरकारों की ये योजनाएं ?
सिविल सेवा की तैयारियों से जुड़े कोचिंग सेंटरों का कारोबार तरीब 3000 करोड़ रुपए सालाना का है। दिल्ली के अलावा, हैदराबाद और चेन्नई इन कोचिंगों के बड़े केंद्र माने जाते हैं। एक जमाने में उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद सिविल सेवा परीक्षा की तैयारियों का गढ़ माना जाता था लेकिन अब वहां वो स्थिति नहीं है। इन शहरों में तमाम प्राइवेट कोचिंग सेंटरों में काफी मोटा पैसा लेकर छात्रों को सिविल सेवा की तैयारी कराई जाती है। बहुत से प्रतिभाशाली छात्र पैसे की कमी की वजह से इन कोचिंग सेंटरों का लाभ नहीं उठा पाते।
इसी कारण, बहुत से राज्य पहले से ऐसे छात्रों की मदद के लिए उन्हें प्राइवेट कोचिंग सेंटरों में प्रशिक्षित कराते रहे हैं। दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने इसी दृष्टि से छात्रों को गाइडेंस देने के लिए नई तरह की पहल की है।
मंत्रालय के सर्वे में अपेक्षित नतीजे नहीं
दिल्ली और उत्तर प्रदेश में जो अभी शुरू की गई पहल कितनी कारगर है ये बाद में पता चलेगा लेकिन जिन राज्यों में सरकारें पहले से ये योजनाएं चला रही हैं उनके नतीजे जरूर निराश करने वाले हैं। सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रायल ने इस बारे में एक सर्वेक्षण कराया है। सर्वेक्षण के नतीजों में सामने आया है कि जिन कोचिंग संस्थानों के मांध्यम से ऐसे छात्रों को कोचिंग मुहय्या कराई जा रही है वे सरकारी फंड का जम कर दुरुपयोग कर रहे हैं। छात्रों को इनसे अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा है। कई छात्र तो सिर्फ कागजों में कोचिंग ले रहे हैं। इस काम में प्रशासनिक मशीनरी की मिलीभगत की भी आशंका जाहिर की गई है। तमिलनाडु में तो साल 2014 के बाद से लगातार ऐसे कोचिंगों से तैयारी करके निकलने वाले सफल छात्रों की संख्या में कमी आती जा रही है।
ऐसी कोचिंगों के लाभ पर शक
उत्तर प्रदेश कॉडर के एक आईएएस अधिकारी ने अपना नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि, सिविल सेवा का प्रारूप अब काफी हद बदल चुका है और पुराने अधिकारियों के अनुभव नए छात्रों के लिए बहुत उपयोगी नहीं रह गए हैं। नए अधिकारी जो चुनकर आते हैं उनका फोकस व्यावहारिक प्रशासनिक अनुभव हासिल करने पर होता है। बहुत से अधिकारी स्थानीय भाषा और यहां तक कि हिंदी में भी पारंगत नहीं होते और उनके लिए उत्तर भारत के राज्यों में छात्रों के साथ संवाद बना पाना मुश्किल होता है। अधिकारी का ये भी कहना था कि ये सेवाएं अब पेशेवर रूप लेती जा रही हैं और इसके लिए पेशेवर कोचिंग की ही जरूरत है।
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