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यूपी की घटनाओं का इशारा, ‘कामचलाऊ’ खुफिया तंत्र से काम चलने वाला नहीं

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लखनऊ (गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र) :  उत्तर प्रदेश में आज जुमे की नमाज के बाद कई जगहों पर नमाजियों ने नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। कई जगहों छिटपुट हिंसा की खबरें भी मिलीं। राजधानी लखनऊ, प्रयागराज, सहारनपुर, देवबंद और मुरादाबाद में विरोध प्रदर्शन हुए। उत्तर प्रदेश सरकार ने माहौल को देखते हुए पहले ही सुरक्षा इंतजामों के पुख्ता बंदोबस्त का दावा किया था। लेकिन फिर भी राज्य में कई स्थानों पर इतनी बड़ी तादाद में प्रदर्शकारियों का जमावड़ा और कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ाना राज्य़ के प्रशासनिक और खुफिया तंत्र पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।

सवाल ये कि पहले से सतर्कता और पुख्ता बंदोबस्त का दावा करने वाले प्रशासन की नांक के नीचे ये सब कैसे हुआ ? कैसे मस्जिदों से बाहर निकली भीड़ ने उपद्रव करना शुरू कर दिया। अधिकतर मस्जिदों के इमामों का कहना था कि वे कौन लोग थे हम भी नहीं जानते। अगर ये बात सच है तो बाहर से आए उपद्रवी नमाजी बन कर बलवा करते रहे और पुलिस-प्रशासन को पता ही नहीं। इसे क्या कहा जाए ?

कानपुर में क्या हुआ ?

पिछली 3 जून को कानपुर में हुई घटना को ही लीजिए। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की मौजूदगी में शहर में सांप्रदायिक हिंसा हो जाती है। इतने बडे नेताओं की मौजूदगी में शहर में ऐसा कुछ हो जाना बेहद शर्मनाक है। सबसे बड़ा और सबसे अहम सवाल राज्य के खुफिया तंत्र पर उठता है। देश का शीर्ष नेतृत्व शहर में मौजूद हो और वहां सांप्रदायिक हिंसा की साजिश रची जाए और खुफिया तंत्र को इसकी भनक भी न हो।

इससे पहले, एक जून को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के गर्भगृह की पहली शिला रखने आए तो वहां भी हत्यारों ने शहर की कानून-व्यवस्था को धता बताते हुए एक गर्भवती शिक्षिका को उसके घर में ही चाकू से गोदकर मार डाला। उस कांड के कुसूरवारों का अभी तक कुछ अता-पता नहीं चल पाय़ा हैं।

खुफिया तंत्र की विफलता

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री जैसे बड़े नेता के किसी भी शहर या इलाके में आने पर वहां की प्रशासनिक व्यवस्था एकदम चाकचौबंद रखी जाती है। कई तरह के अतिरिक्त सुरक्षा इंतजाम किए जाते हैं। खुफिया तंत्र पहले से ही इलाके में पल-पल की जानकारी रख रहा होता है। उसकी सूचना प्रशासनिक व्यवस्था का सबसे बड़ा आधार होती है। फिर नमाजियों के बवाल और कानपुर की सांप्रदायिक हिंसा के बारे में खुफिया मशीनरी के पास पहले से कोई जानकारी या टिप क्यों नहीं थी ?

दूसरा सवाल, कानपुर में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की मौजूदगी में इतने बड़े पैमाने पर हिंसा का हो जाना और फिर उसके लिए किसी की जवाबदेही तक तय न हो पाना क्या माना जाए ? क्या राज्य के खुफिया प्रमुख को इसके लिए जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए ?

तीसरा सवाल, और अगर ये राज्य़ की खुफिया मशीनरी का फेल्योर है तो कार्रवाई क्या हुई? क्या किसी और घटना का इंतजार था ? अगर था भी तो आज जुमे  की नमाज के बाद प्रदेश में विभिन्न जगहों पर जो कुछ हुआ उससे वो कसर भी पूरी हो गई।

किसके पास है खुफिया मशीनरी की जिम्मेदारी ?

आपको बता दें कि, उत्तर प्रदेश में अभिसूचना या इंटेलिजेंस के डीजी देवेंद्र सिंह चौहान हैं। इस समय उनके पास प्रदेश के डीजीपी का भी चार्ज है यानी वे अंतरिम तौर पर प्रदेश के पुलिस प्रमुख का काम भी देख रहे हैं। जाहिर है, इतने बड़े और संवेदनशील प्रदेश में दो-दो महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन मुश्किल काम है।

उतर प्रदेश जैसे विशाल राज्य को एक अंतरिम पुलिस प्रमुख के जिम्मे कैसे छोड़ा जा सकता है और वो भी तब जबकि उस व्यक्ति के पास राज्य की खुफिया मशीनरी की जिम्मेदारी हो। ये दोनों दायित्व बहुत बड़े हैं और इन जिम्मेदारियों को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।

अंतरिम डीजीपी क्यों ?

मुकुल गोयल को अचानक पद से हटाए जाने के बाद यूपी के नए डीजीपी के लिए जिन नामों की चर्चा थी उनमें वरिष्ठता सूची के हिसाब से पहला नाम डीजी प्रशिक्षण आर.पी. सिंह का था। वे 1987 बैच के आईपीएस अफसर हैं। दूसरा नाम, डीजी सीबीसीआईडी जी.एल. मीणा का था। वे भी 1987 बैच के आईपीएस हैं। तीसरा नाम, 1988 बैच के आईपीएस आर. के. विश्वकर्मा का था। वे इस वक्त डीजी पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नत बोर्ड और डीजी ईओडब्लू का कामकाज संभाल रहे हैं। सूची में चौथा नाम डीजी इंटेलिजेंस और डायरेक्टर विजिलेंस डॉ. डीएस चौहान का था जो अंतरिम तौर पर यूपी के डीजीपी का कार्यभार संभाल रहे हैं। डीएस चौहान 1988 बैच के अफसर हैं। पांचवां नाम डीजी जेल आनन्द कुमार का था। वर्ष 1988 बैच के अफसर आनन्द कुमार योगी सरकार के पहले कार्यकाल में एडीजी (एलओ) के पद पर रह चुके हैं। लेकिन अंतरिम तौर पर ही सही मुख्यमंत्री ने अपनी पसंद के अफसर को जिम्मेदारी सौंप कर एक संकेत तो दे ही दिया।

लेकिन उत्तर प्रदेश की संवेदनशीलता को देखते हुए जल्द से जल्द खुफिया तंत्र और पुलिस प्रशासन का काम संभालने के लिए अंतरिम नहीं पूर्णाकालिक मुखिया की जरूरत है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

 

 

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