नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र):
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत अगर कोई किसान शिकायत दर्ज करता है तो वह उपभोक्ता की श्रेणी में आएगा। अदालत ने कहा कि अगर किसान किसी बीज कंपनी के साथ फ़सल ख़रीद लेने का क़रार करता है तो भी वह उपभोक्ता माना जाएगा। हालांकि ये मामला थोड़ा पुराना है और उपभोक्ता संरक्षण कानून 2019 के आने से पहले उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 के तहत न्यायालय में विचारार्थ आया था लेकिन किसान हित से जुड़ा ये मसला उपभोक्ता मामलों में विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
कंपनी ने करार का उल्लंघन किया
सर्वोच्च अदालत ने अपना ये फैसला उस मामले में दिया जिसमें एक किसान ने बुवाई के लिए एक बीज कंपनी से 400 रुपए प्रति किलो की दर से 750 किलो गीली मुसली की ख़रीद की और अपने खेत में इसकी बुवाई की। कंपनी ने इस किसान से उसकी उपज की वापस ख़रीद नहीं की जिसकी वजह से इस फसल का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया, जिसके बाद किसान ने उपभोक्ता फ़ोरम में शिकायत की। ज़िला उपभोक्ता मंच ने उसकी शिकायत यह कहते हुए ठुकरा दिया कि वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत उपभोक्ता की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है, लेकिन राज्य आयोग ने इस आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि इस मामले पर उसकी मेरिट के हिसाब से सुनवाई हो। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने राज्य आयोग के इस आदेश को सही ठहराया।
कंपनी की दलील किसान उपभोक्ता नहीं
सुप्रीम कोर्ट में कंपनी ने दो मुद्दे उठाए। पहला, किसान से फ़सल की वापस ख़रीद का क़रार जिसका मतलब दुबारा बिक्री है, धारा 2(डी) में नहीं आता।
दूसरा, किसान ने मुसली की बुवाई और उसकी बिक्री वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए की थी न कि आजीविका चलाने के लिए और इसलिए भी यह धारा 2(डी) में नहीं है। न्यायमूर्ति एमएम शांतनगौदर और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी ने मामले की सुनवाई के क्रम में कहा कि इस कारोबार को री-सेल (दुबारा बिक्री) नहीं कहा जा सकता। पीठ ने इस दलील को भी ख़ारिज कर दिया कि त्रिपक्षीय क़रार री-सेल जैसा है क्योंकि इसमें वापसी ख़रीद का क्लाज़ जुड़ा है और इसलिए किसान को “उपभोक्ता” नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामले में किसान बीज कंपनी से बीज ख़रीदते हैं या कई बार बीज कंपनी ही उनसे बीज तैयार करने का आग्रह करती हैं ताकि वह उनका विपणन कर सके। इस प्रस्ताव को मान लेने का मतलब यह है कि किसान बीज तैयार करेगा और कंपनी बीज बेचेगी। इस तरह किसान अपने बीज की री-सेल नहीं करता। यह सही है कि किसानों को अपना उत्पाद खुले बाज़ार में बेचना पड़ता है ताकि वे अपनी आजीविका चला सकें, लेकिन इसे रीसेल नहीं कहा जा सकता और इसलिए वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आ सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी की दलील ठुकराई
पीठ ने कहा कि किसानों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की परिधि से बाहर रखना इस क़ानून का मज़ाक़ होगा। पीठ ने बीज कंपनियों की इस बात के लिए भी आलोचना की कि वे बात-बात में किसानों के ख़िलाफ़ मुक़दमें का सहारा लेते हैं और इस तरह शीघ्रता से समाधान के उद्देश्य को समाप्त कर देते हैं। अदालत ने देश में किसानों की स्थिति की भी चर्चा की और कहा कि खेती के योग्य ऊपरी ज़मीन का क्षरण, खाद्य वस्तुओं, जल और मिट्टी का विषैले खाद और कीटनाशकों के कारण प्रदूषित होना, मौसम की मार और पर्यावरण में गड़बड़ी के कारण कई तरह की मुश्किलों का सामना किसानों को करना पड़ रहा है। इसकी वजह से किसानों में कैन्सर जैसी बीमारियां फैल रही हैं। मशीनीकरण से किसानों की उन्नति तो हुई है पर इसकी उन्हें भारी क़ीमत चुकानी पड़ी है। छोटी जोत वाले अधिकांश किसानों को सिंचाई, बिजली, बीज, खाद और कीटनाशकों पर ज़्यादा ख़र्च करना पड़ता है पर उपज से इतनी आय नहीं होती कि लागत भी उनको मिल जाए। फिर एक के बाद एक फ़सल के असफल होने के कारण पूरे सीज़न के लिए किसानों की आय मारी जाती है, उनकी वित्तीय मुश्किलें बढ़ जाती हैं, क़र्ज़ में फंसने की वजह से कई बार इसकी परिणति उनकी आत्महत्या में होती है। अदालत ने कंपनी पर मुक़दमे की लागत के रूप में 25,000 रुपए का जुर्माना लगाया और इस मामले को निरस्त कर दिया।
ऐसे करें शिकायत
नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन 1800-11-4000 या 0172-2700183 पर कॉल कर सकते हैं।
वेबसाइट http://www.nationalconsumerhelpline.in/ पर लॉगइन करके भी कंप्लेंट रजिस्टर कॉलम में अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
ऐसे दें लिखित शिकायत
एक सादे कागज पर निर्धारित वाद शुल्क के साथ खुद या वकील के जरिए फोरम में तीन कॉपी के सेट में शिकायत दाखिल कर सकते हैं। शिकायतकर्ता व विपक्षी का नाम, पता, शिकायत का कारण कब पैदा हुआ और मांगी गई क्षतिपूर्ति का विवरण भी प्रमाण के साथ देना जरूरी है। फोरम के पक्ष में पोस्टल ऑर्डर या डिमांड ड्राफ्ट के जरिए वाद शुल्क जमा होगा। दुकानदार, मैन्यूफैक्चर्स, डीलर या फिर सर्विस प्रोवाइडर के खिलाफ शिकायत की जा सकती है।
ये हैं जरूरी दस्तावेज
शिकायत के साथ कैश मेमो, रसीद की कॉपी, बिल, गारंटी या वारंटी कार्ड, कंपनी या दुकान पर की गई शिकायत का सबूत देना होगा।