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उपभोक्ता संरक्षण पर नया कानून, कंज्यूमर बना किंग

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नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र):

नई दिल्ली. उपभोक्ता चाहे शहर का हो अथवा देश के किसी दूर-दराज गांव का निवासी। उसके अधिकारों एवं हितों को बेहतर और प्रभावी तरीके से संरक्षित करने के लिए सरकार की तरफ से लगातार कोशिशें की गई हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की जगह पर नया उपभोक्ता संरक्षण कानून लाया गया है। इस कानून में उपभोक्ता संरक्षण और हितों को ध्यान में रखते हुए एक प्रभावी व्यवस्था देने का प्रयास किया गया है।  प्रस्तावित विधेयक में उत्पादकों एवं सेवा देने वालों की जिम्मेदारी तय करने, भ्रामक विज्ञापनों पर लगाम लगाने, शिकायत निवारण प्रणाली को सुगम बनाने, अनुचित व्यापारिक व्यवहारों को रोकने, ई-कॉमर्स कारोबार को विनियमित करने,  शिकायतों के समाधान के लिए मध्यस्थता केन्द्र स्थापित करने, उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के गठन सहित कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं को जोड़ा गया है। इससे न सिर्फ शहरी उपभोक्ता बल्कि दूर-दराज किसी गांव में बैठे गरीब व सामान्य उपभोक्ता के हितों और अधिकारों को भी संरक्षित किया जा सकेगा।

क्यों जरूरी था नया कानून

दुनिया के वैश्वीकरण के साथ बाजार में भी तेजी से बदलाव आया। बाजार में छल प्रपंच का विस्तार भी खूब हुआ। ऑनलाइन खरीदारों की तादाद में तेजी से इजाफा हुआ और उपभोक्ता और उत्पादक के बीच प्रत्यक्ष नहीं बल्कि परोक्ष संबंध विकसित हुए। इससे एक चीज जो  खूब तेजी  के साथ बढ़ी वह थी बाजार में उपभोक्ता के साथ छल को बढ़ावा। बाजार में और भी ऐसी तमाम चीजें हुईं जिससे बाजार को ज्यादा जवाबदेह बनाने की जरूरत महसूसस की गई।  साल 1986 में आया उपभोक्ता संरक्षण कानून इन बदलती परिस्थितियों में कम से कमतर प्रभावी होता गया। वर्ष 2015 से ही लगातार इस बात का प्रयास किया जाता रहा कि बदलते हालात में प्रभावी उपभोक्त संरक्षण कानून लाया जाए और बाजार को जवाबदेह बनाने के साथ उपभोक्ता को भी बाजार के प्रपंच से बचने में मदद मिल सके। आधुनिक व्यापारिक तकनीकों और लुभावने विज्ञापनों पर विश्वास कर लोग वस्तु की खरीद तो करते हैं परन्तु यह उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती है। उपभोक्ताओं के हितों की देखरेख के लिए संगठनों का अभाव होने से यह समस्या और भी जटिल हो जाती है। इसी परिस्थिति को मद्देनजर रखते हुए उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए संस्थागत प्रणाली की शुरूआत विभिन्न देशों में की गई जिन्हें उपभोक्ता अधिकार का नाम दिया गया।

उपभोक्ता अधिकारों का इतिहास

उपभोक्ता अर्थात क्रेता के अधिकारों के संरक्षण की परम्परा समाज के विकास के साथ ही विकसित हुई है। कौटिल्य के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में भी क्रेता के अधिकारों तथा विक्रेता की लोभी प्रवृत्ति का उल्लेख मिलता है। उपभोक्ता के संरक्षण से संबंधित आधुनिक आंदोलन, जिसे उपभोक्ता आंदोलन भी कहा जाता है, की शुरूआत 15 मार्च, 1962 को अमेरिका से हुई। इस दिन अमेरिका के राष्ट्रपति कैनेडी ने उपभोक्ता के अधिकारों को ‘बिल ऑफ राइट्स’ में सम्मिलित करने की घोषणा के साथ-साथ ‘उपभोक्ता सुरक्षा आयोग’ के गठन की घोषणा की थी। इसी उपलक्ष्य में प्रति वर्ष 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है।

अमेरिका द्वारा की गई इस पहल से प्रेरित होकर 1973 में ब्रिटेन में भी व्यापार संबंधी अधिनियम लागू किया गया। अमेरिका के बिल ऑफ राइट्स में शामिल उपभोक्ता अधिकार सूचना, सुरक्षा, उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार तथा स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार शामिल कर इसे और सशक्त बनाया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा उपभोक्ता हितों के संरक्षण के लिए कई दिशा-निर्देश भी जारी किए गए। संयुक्त राष्ट्र संघ के इस प्रयास के बाद अमेरिका, यूरोप तथा विश्व के अन्य विकसित एवं विकासशील देशों में उपभोक्ता के संरक्षण की दिशा में व्यापक रूप से जागरूकता आई।

भारत में उपभोक्ता हित संबंधी पहल

1966 में जेआरडी टाटा के नेतृत्व में कुछ उद्योगपतियों द्वारा उपभोक्ता संरक्षण के तहत फेयर प्रैक्टिस एसोसिएशन की मुंबई में स्थापना की गई और इसकी शाखाएं कुछ अन्य प्रमुख शहरों में भी स्थापित की गईं और हम यह कह सकते हैं कि यहीं से भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरूआत हुई। इसके बाद स्वयंसेवी संगठन के रूप में ग्राहक पंचायत की स्थापना बी-एम- जोशी द्वारा 1974 में पुणे में की गई। अनेक राज्यों में उपभोक्ता कल्याण हेतु संस्थाओं का गठन हुआ। इस प्रकार उपभोक्ता आन्दोलन आगे बढ़ता रहा।

उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986

24 दिसम्बर, 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर उपभोक्ता संरक्षण विधेयक को संसद ने पारित किया गया और राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद देश भर में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। इस अधिनियम में बाद में 1993 व 2002 में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए। इन व्यापक संशोधनों के बाद यह एक सरल व सुगम अधिनियम हो गया है। इस अधिनियम के अधीन पारित आदेशों का पालन न किए जाने पर धारा 27 के अधीन कारावास व दण्ड तथा धारा 25 के अधीन कुर्की का प्रावधान किया गया है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की मुख्य विशेषताएं

उपभोक्ता की परिभाषाः

उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो अपने इस्तेमाल के लिए कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है। इसमें वह व्यक्ति शामिल नहीं है जो दोबारा बेचने के लिए किसी वस्तु को हासिल करता है या कॉमर्शियल उद्देश्य के लिए किसी वस्तु या सेवा को प्राप्त करता है। इसके अंतर्गत इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके, टेलीशॉपिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद के जरिए किया जाने वाला सभी तरह का ऑफलाइन या ऑनलाइन लेनदेन शामिल है।

उपभोक्ताओं के अधिकारः 

बिल में उपभोक्ताओं के छह अधिकारों को स्पष्ट किया गया है जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

(i) ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मार्केटिंग के खिलाफ सुरक्षा जो जीवन और संपत्ति के लिए जोखिमपरक हैं।

 (ii) वस्तुओं या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और मूल्य की जानकारी प्राप्त होना।

 (iii) प्रतिस्पर्द्धात्मक मूल्यों पर वस्तु और सेवा उपलब्ध होने का आश्वासन प्राप्त होना।

 (iv) अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवजे की मांग करना।

नए उपभोक्ता संरक्षण कानून को आसान शब्दों में कुछ इस तरह से समझा जा सकता है

  • भ्रामक विज्ञापन करने वालों पर अर्थदण्ड एवं सजा का प्रावधान

उपभोक्ता संरक्षण कानून में विज्ञापनों की नए सिरे से विस्तृत व्याख्या की गई है। किसी भी रूप में, चाहे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से, वेबसाइट या इंटरनेट के माध्यम से, प्रिंट माध्यम से अथवा किसी अन्य माध्यम से, भ्रामक विज्ञापन करने पर अर्थदण्ड एवं सजा का प्रावधान है। विज्ञापन करने वाले सेलिब्रिटी, ब्रांड एम्बेसेडर की भी जिम्मेदारी तय होगी। भ्रामक विज्ञापन करने पर उनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी।

  • उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण का गठन

उपभोक्ताओं के हितों को बढ़ावा देने तथा उनके अधिकारों की बेहतर सुरक्षा के साथ ही उन्हें अनैतिक व्यापारिक व्यवहारों और शोषण से बचाने के लिए उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण का गठन किया गया है। इस प्राधिकरण को अन्य शक्तियों के अलावा स्वयं संज्ञान लेकर भी कार्रवाई करने का अधिकार होगा।

  • उपभोक्ता न्यायालयों की कार्यप्रणाली को व्यापक और प्रभावी बनाना

उपभोक्ता न्यायालयों के नामों में एकरूपता लाने तथा उनके क्षेत्राधिकार के विस्तार का प्रावधान है। अब जिला फोरम को जिला आयोग के नाम से जाना जाएगा। राज्य और राष्ट्रीय आयोग का नाम पहले जैसा ही रहेगा। जिला आयोग में 50 लाख रुपए तक के मामलों की शिकायत की जा सकेगी। राज्य आयोग में 50 लाख से अधिक तथा 10 करोड़ रुपए तक और राष्ट्रीय आयोग में 10 करोड़ रुपए से अधिक के मामलों की सुनवाई होगी। सदस्यों के चयन में पारदर्शिता सहित अनेक स्तर पर बदलाव किया गया है। देश के विभिन्न हिस्सों में, राष्ट्रीय आयोग के सर्किट बेंच की स्थापना की जाएगी। राज्य आयोग और जिला आयोग के सर्किट बेंच भी स्थापित किए जाएंगे।

  • शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया को आसान बनाना

उपभोक्ता जहां निवास करता है अथवा जहां कार्य करता है  अब उस राज्य के राज्य आयोग या जिला आयोग में शिकायत दर्ज करा सकता है। जिला आयोग में दो लाख रुपए तक के मामलों में वकीलों की जरूरत नहीं होगी। उपभोक्ता स्वयं अपना पक्ष रखकर बहस कर सकेगा। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी शिकायत दर्ज कराने का प्रावधान किया गया है। 

  • उत्पादकों एवं सेवा देने वालों की जिम्मेदारी तय होगी

नए कानून में उत्पादकों एवं सेवा देने वालों की उत्पादों के प्रति जिम्मेदारी तय की गई है। अगर किसी उपभोक्ता को किसी उत्पाद अथवा सेवा की वजह से शारीरिक क्षति होती है या उसकी मौत हो जाती है अथवा उसकी संपत्ति को नुकसान होता है तो उसे संबंधित उत्पादक या सेवादाता से क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार होगा।

  • कॉमर्स कारोबार का विनियमन

देश में ई-कॉमर्स कारोबार का बहुत तेजी से विस्तार हो रहा है। साथ ही धोखाधड़ी की शिकायतें भी इस क्षेत्र से खूब मिल रही हैं। इसे देखते हुए एक विनियामक निकाय बनाया गया है। अब ऑनलाइन लेनदेन के मामले भी उपभोक्ता न्यायालयों में दर्ज कराए जा सकेंगे।

  • वैकल्पिक विवाद निवारण के लिए मध्यस्थता केंद्र

उपभोक्ता अदालतों में शिकायतों की संख्या कम करने एवं शीघ्र न्याय दिलाने के उद्देश्य से जिला, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर मध्यस्थता केन्द्र स्थापित किए जाएंगे। यह मघ्यस्थता केन्द्र उपभोक्ता न्यायालयों से जुड़े होंगे। उपभोक्ता शिकायतों की सुनवाई के दौरान, पक्षों के अनुरोध पर मामले को मध्यस्थता केन्द्र भेजा जाएगा। मध्यस्थता केन्द्र निर्धारित समय सीमा के अंदर शिकायत का समाधान कर संबंधित उपभोक्ता आयोग को सूचित करेंगे। मध्यस्थता केन्द्र में विशेषज्ञों को नियुक्त किया जाएगा।

  • अनैतिक व्यापारिक व्यवहार की परिभाषा का विस्तार

अनैतिक व्यापारिक व्यवहार की परिभाषा को विस्तारित किया गया है। इसमें बिल या रसीद न देना, एकपक्षीय अनुबंध, असुरक्षित वस्तु अथवा सेवाएं प्रदान करना शामिल है। साथ ही ये भी प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति किसी उपभोक्ता द्वारा प्रदान की गई उसकी निजी सूचना को सार्वजनिक करता है तो इसे भी अनैतिक व्यापारिक व्यवहार माना जाएगा।

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरणः 

केंद्र सरकार उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, उनका संरक्षण करने और उन्हें लागू करने के लिए केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) का गठन करेगी। यह प्राधिकरण उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों को विनियमित करेगा। महानिदेशक की अध्यक्षता में सीसीपीए की एक अन्वेषण शाखा (इन्वेस्टिगेशन विंग) होगी, जो ऐसे उल्लंघनों की जांच या छानबीन कर सकती है।

सीसीपीए के कार्यः

(i) उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन की जांच और उपयुक्त मंच पर कानूनी कार्यवाही शुरू करना।

 (ii) जोखिमपरक वस्तुओं को रीकॉल या सेवाओं को वापस करने के लिए आदेश जारी करना। चुकाई गई कीमत की भरपाई करना और अनुचित व्यापार को बंद कराना।

 (iii) संबंधित ट्रेडर/मैन्यूफैक्चरर/एन्डोर्सर/एडवरटाइजर/पब्लिशर को झूठे या भ्रामक विज्ञापन को बंद करने या उसे सुधारने का आदेश जारी करना।

 (iv) जुर्माना लगाना

(v) खतरनाक और असुरक्षित वस्तुओं और सेवाओं के प्रति उपभोक्ताओं को सेफ्टी नोटिस जारी करना।

उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशनः 

जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर ‘उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशनों’ (सीडीआरसी) का गठन किया जाएगा। एक उपभोक्ता निम्नलिखित के संबंध में आयोग में शिकायत दर्ज करा सकता हैः

(i) अनुचित और प्रतिबंधित तरीके का व्यापार।

 (ii) दोषपूर्ण वस्तु या सेवाएं।

 (iii) अधिक कीमत वसूलना या गलत तरीके से कीमत वसूलना।

 (iv) ऐसी वस्तुओं या सेवाओं को बिक्री के लिए पेश करना  जो जीवन और सुरक्षा के लिए जोखिमपरक हो सकती हैं।

अनुचित अनुबंध के खिलाफ शिकायत केवल राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में दर्ज कराई जा सकती हैं। जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश के खिलाफ राज्य आयोग में सुनवाई की जाएगी। राज्य आयोग के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय आयोग में सुनवाई की जाएगी। अंतिम अपील का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को होगा।

सीडीआरसी का क्षेत्रधिकारः 

जिला सीडीआरसी उन शिकायतों के मामलों को सुनेगा, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक करोड़ रुपए से अधिक न हो। राज्य सीडीआरसी उन शिकायतों के मामले में सुनवाई करेगा, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक करोड़ रुपए से अधिक हो, लेकिन 10 करोड़ रुपए से अधिक न हो। 10 करोड़ रुपए से अधिक की कीमत की वस्तुओं और सेवाओं से संबंधित शिकायतें राष्ट्रीय सीडीआरसी द्वारा सुनी जाएंगी।

उत्पाद की जिम्मेदारी (प्रोडक्ट लायबिलिटी):

 उत्पाद की जिम्मेदारी का अर्थ है, उत्पाद के विनिर्माता, सेवा प्रदाता या विक्रेता की जिम्मेदारी। यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह किसी खराब वस्तु या दोषी सेवा के कारण होने वाले नुकसान या चोट के लिए उपभोक्ता को मुआवजा दे। मुआवजे का दावा करने के लिए उपभोक्ता को बिल में स्पष्ट खराबी या दोष से जुड़ी कम से कम एक शर्त को साबित करना होगा।

अनुचित अनुबंघ :

एक अनुबंध अनुचित है, अगर इससे उपभोक्ता के अधिकारों में कोई महत्वपूर्ण नकारात्मक परिवर्तन होता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

(i) बहुत अधिक सिक्योरिटी डिपॉजिट की मांग।

(ii) कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने पर ऐसा दंड जो कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने से होने वाले नुकसान के अनुपात में न हो।

 (iii) अगर उपभोक्ता किसी कर्ज का रीपेमेंट पहले करना चाहे तो इसे लेने से इनकार करना।

 (iv) बिना किसी उचित कारण के अनुबंध को समाप्त करना।

 (v) बिना उपभोक्ता की सहमति के अनुबंध को थर्ड पार्टी को ट्रांसफर करना, जिससे उपभोक्ता का नुकसान होता हो।

 (vi) ऐसा अनुचित शुल्क या बाध्यता लगाना, जिससे उपभोक्ता का हित प्रभावित होता हो।

राज्य एवं राष्ट्रीय आयोग निर्धारित कर सकते हैं कि अनुबंध की शर्तें अनुचित हैं और वे ऐसी शर्तों को अमान्य घोषित कर सकते हैं।

दंड एवं उपचार का प्रावधान

  • अगर कोई व्यक्ति जिला, राज्य या राष्ट्रीय आयोगों के आदेशों का पालन नहीं करता तो उसे कम से कम एक महीने और अधिकतम तीन वर्ष तक के कारावास की सजा हो सकती है या उस पर कम से कम 25,000 रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है जिसे एक लाख रुपए तक बढ़ाया जा सकता है या उसे दोनों सजा भुगतनी पड़ सकती है।
  • झूठे और भ्रामक विज्ञापनों के लिए मैन्यूफैक्चरर या एंडोर्सर पर 10 लाख रुपए तक का दंड लगाया जा सकता है और अधिकतम दो वर्षों का कारावास भी हो सकता है। इसके बाद अपराध करने पर यह जुर्माना बढ़कर 50 लाख रुपए तक हो सकता है और सजा पाँच वर्षों तक बढ़ाई जा सकती है। दोषी को दण्ड और जुर्माने दोनों से दण्डित भी किया जा सकता है।
  • सीसीपीए भ्रामक विज्ञापन के एंडोर्सर को एक वर्ष तक की अवधि के लिए किसी विशेष उत्पाद या सेवा को एंडोर्स करने से प्रतिबंधित भी कर सकती है। हर बार अपराध करने पर प्रतिबंध की अवधि तीन वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है। ऐसे कुछ अपवाद भी हैं जब एंडोर्सर को ऐसे किसी दंड के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
  • सीसीपीए मिलावटी उत्पादों की मैन्यूफैक्चरिंग, बिक्री, स्टोरिंग, वितरण या आयात के लिए भी दंड लगा सकती है। ये दंड निम्नलिखित हैं:

(i) अगर उपभोक्ता को क्षति नहीं हुई है तो दंड एक लाख रुपए तक का जुर्माना और छह महीने तक का कारावास हो सकता है।

 (ii) अगर क्षति पहुँची है तो दंड तीन लाख रुपए तक का जुर्माना और एक वर्ष तक का कारावास हो सकता है।

 (iii) अगर गंभीर चोट लगी है तो दंड पांच लाख रुपए तक का जुर्माना और सात वर्ष तक का कारावास हो सकता है।

 (iv) मृत्यु की स्थिति में दंड दस लाख रुपए या उससे अधिक का जुर्माना और कम से कम सात वर्ष का कारावास हो सकता है जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।

  • सीसीपीए नकली वस्तुओं की मैन्यूफैक्चरिंग, बिक्री, स्टोरिंग, वितरण या आयात के लिए भी दंड लगा सकती है। ये दंड निम्नलिखित हैं:

 (i) अगर क्षति पहुँची है तो दंड तीन लाख रुपए तक का जुर्माना और एक वर्ष तक का कारावास हो सकता है।

(ii) अगर गंभीर चोट लगी है तो दंड पाँच लाख तक का जुर्माना और सात वर्ष तक का कारावास हो सकता है।

 (iii) मृत्यु की स्थिति में दंड दस लाख रुपए या उससे अधिक का जुर्माना और कम से कम सात वर्ष का कारावास हो सकता है जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।

उपभोक्ता संरक्षण परिषदों की संरचना और भूमिका

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 परामर्श निकाय के तौर पर जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर उपभोक्ता संरक्षण परिषदों (सीपीसी) को स्थापित करता है। ये परिषदें उपभोक्ता अधिकारों को बढ़ावा देने और उनके संरक्षण के संबंध में परामर्श देंगी। इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्रीय परिषद और राज्य परिषद का नेतृत्व, केंद्र और राज्य स्तर के उपभोक्ता मामलों के मंत्री द्वारा किया जाएगा। जिला परिषद का नेतृत्व जिला कलेक्टर द्वारा किया जाएगा।
  • इन निकायों को उपभोक्ता अधिकारों को बढ़ावा देने और उनके संरक्षण के संबंध में परामर्श देना चाहिए।

नए उपभोक्ता संरक्षण कानून से उपभोक्ता को फायदा

कहीं से भी शिकाय़त

अब कहीं से भी उपभोक्ता शिकायत दर्ज कर सकता है।। उपभोक्ताओं के नजरिए से यह बड़ी राहत है। अभी तक उपभोक्ता को तयशुदा स्थान पर ही अपना मामला दर्ज कराना होता था। लेकिन नए कानून में वह कहीं से भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। ई-कॉमर्स से बढ़ती खरीद को देखते हुए यह शानदार कदम है। कारण है कि इस मामले में विक्रेता किसी भी लोकेशन से अपनी सेवाएं देते हैं। इसके अलावा कानून में उपभोक्ता को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भी सुनवाई में शिरकत करने की इजाजत है। इससे उपभोक्ता का पैसा और समय दोनों बचेंगे।

दूर हुईं पुराने कानून की खामियां

नए कानून में उपभोक्ताओं के हित में कई कदम उठाए गए हैं। पुराने नियमों की खामियां दूर की गई हैं। नए कानून की कुछ खूबियों में सेंट्रल रेगुलेटर का गठन, भ्रामक विज्ञापनों पर भारी पेनाल्टी और ई-कॉमर्स फर्मों और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बेचने वाली कंपनियों के लिए सख्‍त दिशानिर्देश शामिल हैं।

क्षेत्राधिकार बढ़ने से फायदा

नए कानून में उपभोक्ताओं की शिकायतें निपटाने के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता आयोग (कंज्यूमर रिड्रेसल कमीशन) हैं। नए कानून में इनके क्षेत्राधिकार को बढ़ाया गया है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के सह-संस्थापक और प्रेसिडेंट एम आर माधवन ने कहा है कि, राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालतों के मुकाबले जिला अदालतों तक पहुंच ज्यादा होती है. लिहाजा, अब जिला अदालतें 1 करोड़ रुपए तक के मामलों की सुनवाई कर सकेंगी।

कानून में एक और बड़ा बदलाव हुआ है। अब कहीं से भी उपभोक्ता शिकायत दर्ज कर सकता है. उपभोक्ताओं के नजरिए से यह बड़ी राहत है. पहले उपभोक्ता वहीं शिकायत दर्ज कर सकता था, जहां विक्रेता अपनी सेवाएं देता है।

कंपनी की जवाबदेही तय

कंपनी की जवाबदेही तय की गई है। मैन्यूफैक्चरिंग में खामी या खराब सेवाओं से अगर उपभोक्ता को नुकसान होता है तो उसे बनाने वाली कंपनी को हर्जाना देना होगा। मसलन, मैन्यूफैक्चरिंग में खराबी के कारण प्रेशर कुकर के फटने पर उपभोक्ता को चोट पहुंचती है तो उस हादसे के लिए कंपनी को हर्जाना देना पड़ेगा। पहले कंज्यूमर को केवल कुकर की लागत मिलती थी। उपभोक्ताओं को इसके लिए भी सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता था। मामले के निपटारे में सालों साल लग जाते थे।

ई कॉमर्स कंपनियों पर नकेल

इस प्रावधान का सबसे ज्यादा असर ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर होगा। कारण है कि इसके दायरे में सेवा प्रदाता भी आ जाएंगे। मुकेश जैन एंड एसोसिएट्स के संस्थापक मुकेश जैन कहते हैं कि, प्रोडक्ट की जवाबदेही अब मैन्यूफैक्चरर के साथ सर्विस प्रोवाइडर और विक्रेताओं पर भी होगी। इसका मतलब है कि ई-कॉमर्स साइट खुद को एग्रीगेटर बताकर पल्ला नहीं झाड़ सकती हैं। इससे ई-कॉमर्स कंपनियों पर शिकंजा कसा है और उन पर डायरेक्ट सेलिंग पर लागू सभी कानून प्रभावी होंगे। दिशानिर्देश कहते हैं कि अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील जैसे प्लेटफॉर्म को विक्रेताओं के ब्योरे का खुलासा करना होगा। इनमें उनका पता, वेबसाइट, ई-मेल इत्यादि शामिल हैं। ई-कॉमर्स फर्मों की ही जिम्मेदारी होगी कि वे सुनिश्चित करें कि उनके प्लेटफॉर्म पर किसी तरह के नकली उत्पादों की बिक्री न हो। अगर ऐसा होता है तो कंपनी पर पेनाल्टी लगेगी। यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों पर नकली उत्पादों की बिक्री के मामले बढ़े हैं।

पृथक रेगुलेटर

अलग रेगुलेटर बनाने का प्रस्ताव किया गया है। कानून में सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (सीसीपीए) नाम का केंद्रीय रेगुलेटर बनाने का प्रस्ताव है। यह उपभोक्ता के अधिकारों, अनुचित व्यापार व्यवहार, भ्रामक विज्ञापन और नकली उत्पादों की बिक्री से जुड़े मसलों को देखेगा।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 से उपभोक्ताओं के संरक्षण की उम्मीद तेज हो गई है। यह अधिनियम नागरिकों के हितों के संरक्षण में अपना सहयोग देगा। इसके तहत उपभोक्ताओं के शिकायतों की तेजी से सुनवाई होगी जो सरकार के गुड गवर्नेंस के लक्ष्यों को आगे बढ़ाएगी। इससे खराब गुणवत्ता वाले सामानों से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से भी मुक्ति मिलेगी क्योंकि यह कानून उन पर रोक लगाएगा।

नए प्रावधानों से मिली धार

  • नए कानून के तहत केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण को गठित किया गया है।  प्राधिकरण, के पास अधिकार है कि वह उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा और अनैतिक व्यापारिक गतिविधियों को रोकने के लिए हस्तक्षेप कर सके।
  • किसी भी कंपनी या विक्रेता को 30 दिन में उत्पाद वापस लेना और पैसा लौटाना अनिवार्य होगा।
    उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण को अमेरिकी फेडरल ट्रेड कमीशन के तर्ज पर अत्यधिक प्रभावी बनाने की कोशिश की गई है।
  • प्राधिकरण उत्पाद वापस लेने या रिफंड के आदेश के अलावा कंपनी के खिलाफ क्लास एक्शन ले सकेगा। क्लास एक्शन का मतलब है कि मैन्युफैक्चर्स या सर्विस प्रोवाइडर्स की जिम्मेदारी अब प्रत्येक ग्राहक के प्रति होगी। क्लास एक्शन के तहत सभी प्रभावित उपभोक्ता लाभार्थी होंगे।
  • प्रोडक्ट के उत्पादन, निर्माण, डिजाइन, फॉर्मूला, असेंबलिंग, टेस्टिंग, सर्विस, इंस्ट्रक्शन, मार्केटिंग, पैकेजिंग, लेबलिंग आदि में खामी की वजह से अगर ग्राहक की मौत होती है या वह घायल होता है या किसी अन्य तरह का नुकसान होता है तो मैन्युफैक्चरर, प्रोड्यूसर और विक्रेता को भी जिम्मेदार माना जाएगा।
  • नए कानून में प्रावधान किया गया है कि अगर जिला व राज्य उपभोक्ता आयोग ग्राहक के हित में फैसला सुनाते है तो संबंधित कंपनी राष्ट्रीय आयोग में अपील नहीं कर सकेगी।

  • नए कानून में उपभोक्ता को ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराने का भी अधिकार दिया गया है। ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराने के बाद उपभोक्ता अपने नजदीकी उपभोक्ता आयोग जा सकता है।
  • उपभोक्ता वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से भी सुनवाई में शामिल हो सकता है।

  • अब तक ग्राहक, विक्रेता के खिलाफ उसी स्थान पर लीगल एक्शन ले सकता था, जहां लेन-देन हुआ हो। ऑनलाइन शॉपिंग में ऐसा संभव नहीं था। इसलिए ऑनलाइन शिकायत दर्ज करा नजदीकी उपभोक्ता आयोग में सुनवाई का अधिकार दिया गया है। सरकार का मानना है कि नया कानून उपभोक्ता विवादों के जल्द निपटारे के लिए महत्वपूर्ण होगा।
  • पहली बार ई-कॉमर्स कंपनियों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत लाया गया है। ई-कॉमर्स कंपनियों को उपभोक्ता का डाटा लेने के लिए ग्राहक की सहमति लेना अनिवार्य होगा। साथ ही, ग्राहक को ये भी बताना होगा कि उसके डाटा का इस्तेमाल किस तरह और कहां किया जाएगा।
    ऑनलाइन शॉपिंग कराने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों को अब अपने व्यापार का ब्यौरा (बिजनेस डीटेल्स) और सेलर अग्रीमेंट का खुलासा करना अनिवार्य होगा।
  • कानून में मैन्युफैक्चरर के अलावा उत्पाद का प्रचार करने वाले सेलिब्रिटीज की जिम्मेदारी तय की गई है। भ्रामक या ग्राहकों को नुकसान पहुंचाने वाले विज्ञापन करने पर मैन्युफैक्चरर को दो साल की जेल और 10 लाख रुपए जुर्माना हो सकता है।
  • गंभीर लापरवाही के मामलों में मैन्युफैक्चरर को छह माह से आजीवन कारावास की सजा और एक लाख रुपए से 50 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
  • विज्ञापन करने वाले सेलिब्रिटीज से भी निर्धारित जुर्माना वसूला जाएगा, लेकिन उसे जेल नहीं होगी।
  • कानून में पहली बार कंपोजिट सप्लाई या बंडल सर्विसेज का भी प्रावधान किया गया है। इसका मतलब है कि अगर कोई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म यात्रा टिकट के साथ होटल में ठहरने और स्थानीय ट्रैवल की सुविधा प्रदान कर रहा है तो उसे सभी सेवाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। वह दूसरे पर दोष मढ़कर बच नहीं सकेगा।
  • झूठी शिकायतों को रोकने के लिए कानून में 10 हजार रुपए से लेकर 50 हजार रुपए तक के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।
  • उपभोक्ता आयोग से उपभोक्ता मध्यस्थता सेल को भी जोड़ा जाएगा, ताकि मामले का त्वरित हल निकाला सके। इससे उपभोक्ता आयोग में लंबित केसों का बोझ भी कम होगा।
  • उपभोक्ताओं की शिकायत पर फैसला लेने के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों का गठन होगा। जिला और राज्य आयोग के खिलाफ राष्ट्रीय आयोग में अपील की सुनवाई हो सकती है। राष्ट्रीय आयोग के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई होगी।
  • नए कानून में ऐसे अनुबंधों को अनुचित माना गया है, जो उपभोक्ताओं के अधिकारों को प्रभावित करते हैं। इसे अनुचित और व्यापार का प्रतिबंधित तरीका माना जाएगा।
    अगर कोई व्यक्ति या कंपनी जिला, राज्य या राष्ट्रीय आयोगों के आदेशों का पालन नहीं करता है तो उसे तीन वर्ष की जेल या 25 हजार रुपए से एक लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है।
  • जिला उपभोक्ता आयोग एक करोड़ रुपए तक, राज्य उपभोक्ता आयोग एक करोड़ रुपए से 10 करोड़ रुपए तक और राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग 10 करोड़ रुपए से ज्यादा का जुर्माना कर सकता है।

चुनौतिय़ां भी कम नहीं

एक सच्चाई यह भी है कि सिर्फ कानून बना देने से किसी समस्या का समाधान नहीं हो जाता बल्कि आवश्यकता है उस कानून को सही तरीके से लागू करने की  ताकि इसका फायदा देश के हर नागरिक को मिल सके। साथ ही उपभोक्ताओं को जागरूक करने की भी आवश्यकता है ताकि वे इस कानून को जान व समझ सकें और अधिकारों के लिए उपभोक्ता मंचों तक पहुँच सकें। इससे सरकार के स्वस्थ नागरिक व स्वस्थ देश की अवधारणा को साकार किया जा सकता है।

 कहां और कैसे कर पाएगा उपभोक्ता अपनी शिकायत

  • उपभोक्ता जहां रहता या काम करता है वहां शिकायत कर सकता है
  • ऑनलाइन शिकायत का विकल्प
  • 21 दिनों के अंदर शिकायत दर्ज कराना जरूरी होगा
  • ऑनलाइन शिकायत में भी मामला दर्ज करते समय मौजूदगी जरूरी नहीं
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