नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : सरकार उत्तराखंड में इस बार देवदार (Cedar) के 6500 पेड़ों को काटने की योजना बना रही है। इसके लिए पेड़ों पर बाकायदा छपाई भी कर दी गई है। मकसद है उत्तरकाशी-गंगोत्री हाइवे को चौड़ा करना। पेड़ हर्षिल घाटी में झाला से भैरव घाटी के बीच 18 किलोमीटर सड़क को चौड़ा करने के लिए काटे जाने हैं। सरकार की इस योजना के खिलाफ स्थानीय आबादी उठ खड़ी हुई है।
उसका कहना है कि इस तरह की कोशिश हिमालय के लिए एक आपदा है। उसका यह भी कहना है कि वह इन पेड़ों को हरगिज़ कटने नहीं देगी। इस योजना के विरोध में स्थानीय लोग लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। लोगों के मुताबिक, सड़क को घाटी की ओर आरसीसी की दीवार और टनल बनाकर भी चौड़ा किया जा सकता है। इससे पेड़ों को काटने की नौबत नहीं आएगी। लोगों के मुताबिक, देवदार के पेड़ सड़क से करीब 50 मीटर दूर हैं। इन्हें काटे जाने की तो जरूरत ही नहीं है। आरोप है कि कुछ लोगों के व्यक्तिगत हितों के कारण इन पेड़ों को काटने की योजना बनाई गई है।
जागेश्वर में भी हुआ था भारी विरोध
इससे कुछ पहले राज्य के ही अल्मोड़ा जिले में जागेश्वर की सड़क को चौड़ा करने के लिए सैकड़ों पेड़ों को काटने की योजना थी। पेड़ों की पहचान कर ली गई थी। जनता के भारी विरोध पर सरकार को अपनी योजना को वापस लेना पड़ा था। पिछले साल चकराता में तस्करों ने सैकड़ों पेड़ काट दिए थे।
सड़कों को चौड़ा करने के नाम पर राज्य में अब तक हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं और जो पेड़ों की तस्करी हो रही है, वह अलग है। हर्षिल घाटी में भी पेड़ काटने की ताजा योजना का मकसद सड़क को चौड़ा करना है, ताकि पर्यटकों को गंगोत्री जाने में दिक्कत न हो। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर पर्यटकों को यहां आने में दिक्कत हो रही है, तो उन्हें यहां आने की जरूरत ही नहीं है।
पर्यटन के नाम पर विनाश
पहाड़ में इस समय पर्यटन (Tourism) को बढ़ावा देने के नाम पर बड़े-बड़े होटल, रिजार्ट्स और अन्य प्रोजेक्ट्स बना दिए गए हैं। पहाड़ की जमीन इतना बोझ उठाने में सक्षम नहीं है। बहुत ज्यादा लोगों की आवाजाही बढ़ने से पहाड़ों की जलवायु पर भी असर पड़ रहा है और इससे जो अराजकता फैल रही है, वह अलग है। इस बार भी गढ़वाल में सरकार की ऑल वेदर रोड का जो हश्र हुआ है, वह यह बताने के लिए काफी है कि पहाड़ कितने संवेदनशील हैं। हिमालय का इलाका वैसे भी दुनिया की सबसे नई संरचना है और भूगर्भीय लिहाज से काफी संवेदनशील भी। बावजूद इसके, यहां हजारों बहुमंजिला इमारतें खड़ी कर दी गई हैं और स्थानीय प्रशासन को यह सब दिखाई नहीं देता।
जमीनों की भी लूट
उत्तराखंड में जमीनों की भी लूट (Loot) मची हुई है। बाहरी लोग यहां आकर बड़े पैमाने पर निर्माण करा रहे हैं। मुक्तेश्वर, रामगढ़ के इलाके के साथ ही तमाम जगहों पर ऊंची पहाड़ियों तक पर कई-कई मंजिला इमारतें, होटल और रिजॉर्ट बन गए हैं और कोई देखने वाला नहीं है। किसी को यह नहीं दिख रहा है कि पहाड़ इतना बोझ उठाने के काबिल नहीं हैं। यहां नदी, नालों तक में घुसकर मकान बनाए जा रहे हैं। पेड़-पौधों का जो नुकसान हो रहा है, वह अलग है।
विकास के नाम पर विनाश
देश के पहाड़ी राज्यों में पिछले कुछ सालों में विकास के नाम पर जिस तरह से अंधाधुंध निर्माण कार्य हो रहे हैं, वह पहाड़ को बर्बाद करने लगे हैं। डर इस बात का है कि इसके कारण आने वाले समय में पहाड़ का हर इलाका कहीं जोशीमठ (Joshimath) न बन जाए। जोशीमठ भूस्खलन के मलबे पर बसा शहर है। बावजूद इसके, यहां निजी और सरकारी स्तर पर बड़े-बड़े निर्माण कर दिए गए। और तो और शहर के पास एक पनबिजली परियोजना बनाने की भी मंजूरी दे दी गई और इसकी टनल शहर के नीचे से गुजारी जा रही है, वह भी विस्फोट करके। स्थानीय आबादी की हर मांग को अनसुना किया जा रहा है।
चाहिए हिमालयी नीति
स्थानीय लोगों और पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र के विकास के लिए सरकार को एक स्पष्ट हिमालयी नीति (Himalayan Policy) बनानी चाहिए। ऐसी नीति न होने के कारण तीखी पहाड़ियों पर भी सात-आठ मंजिला बिल्डिंग बना दी जा रही हैं, सड़कों को अवैज्ञानिक तरीके से चौड़ा किया जा रहा है और टनल बनाकर पहाड़ों को छलनी किया जा रहा है।
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