Homeपरिदृश्यटॉप स्टोरीहिंदू और हिंदुत्व की लड़ाई... विपक्ष के लिए कहीं बीजेपी का ‘ट्रैप’...

हिंदू और हिंदुत्व की लड़ाई… विपक्ष के लिए कहीं बीजेपी का ‘ट्रैप’ तो नहीं ?

spot_img

नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) : क्या भारत में विपक्षी दल दिशाहीनता के शिकार हैं और वे उसी पिच पर बैटिंग कर रहे हैं जिस पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी उन्हें खिलाना चाहती है ? पिछले दिनों हुई घटनाओ और आयोजनों से तो यही संकेत मिलता है। बनारस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के उद्घाटन के मौके पर वो सब कुछ किया जो बीजेपी के चुनावी मुद्दों को तय करने के लिए जरूरी था। वहीं जयपुर में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हिंदू और हिंदुत्व पर चर्चा को आरंभ करके भी वही किया जो बीजेपी चाहती थी।  

उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड समेत कई राज्यों में विधानसभा चुनावों की बिसात बिछ चुकी है और चुनावी विमर्श से वे मुद्दे गायब होते जा रहे हैं जो जनता के असल मुद्दे हैं और सत्तारूढ़ दल जिन पर चर्चा से बचना चाहता है। महंगाई, बेरोजगारी, महामरी के दौर की भयावह कुव्यवस्था, चौपट अर्थव्यवस्था और किसानो की समस्याएं जैसे मसले चुनावी चर्चाओं से गायब होते जा रहे हैं। चर्चा हिंदू, हिंदुत्व, औरंगजेब और मुसलमानों पर आकर टिक गई है।

ऐसा क्यों है, और इससे फायदा किसको है ? हिंदू और हिंदुत्व के इर्दगिर्द रहते हुए बीजेपी ने सत्ता हासिल की है। बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि चुनावी विमर्श इन मुद्दों से अलग जाए। ये भी सही है कि बीजेपी चुनावी पिच पर अपने हिसाब से पत्ते एकदम सटीक खेल रही है। अयोध्या के बाद काशी और फिर मथुरा, उसके पिटारे में ऐसे तमाम मुद्दों की मौजूदगी है जो जज्बाती तौर पर मतदाता से वोट हासिल करने में कारगर साबित हो सकते हैं। बीजेपी के लिए ये और बड़े नफे की बात है कि अयोध्या के बाद, काशी और मथुरा ये दोनों मसले भी उत्तर प्रदेश से ही जुड़े हुए हैं और इनके कारण हिंदू वोटों के ध्रवीकरण में उसे मदद मिल सकती है। बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी, खस्ताहाल अर्थ व्यवस्था और कोरोना के दौरान जो कुछ जनता ने भुगता, ऐसे विषय चुनावी मुद्दे बनें और उसके लिए मुश्किल पैदा हो।

इसीलिए बीजेपी चुनावी चौपड़ पर पूरे विमर्श को ही बदलने में लगी है और उसमें काफी हद तक कामयाब भी है। उसे अपने विषय और मुद्दों को लेकर कोई भ्रम नहीं है। बहस हिंदू और हिदुत्व पर आकर टिक गई है और विपक्ष भी इस बहस का हिस्सा बन गया है। समाज विज्ञानी प्रोफेसर पी कुमार के अनुसार, बीजेपी के इस जाल में विपक्षी दल बुरी तरह से उलझ गए हैं। उन्हें ये समझ ही नही कि इन मुद्दों में घुस कर वे बीजेपी की रणनीति का शिकार हो रहे हैं और कुछ नहीं। राहुल गांधी ने उसी बहस को शुरू कर दिया जो बीजेपी चाहती थी। हिंदुत्व और हिंदू की लड़ाई और उस पर चर्चा क्यों ?  ऐसी लड़ाई में आप बीजेपी से नहीं जीत सकते। आपको चुनावी मुद्दे बदलने होंगे। मुद्दे बहुत से हैं बस विपक्ष को उन्हें जनता को याद भर दिलाते रहना है।

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री ने एक टीवी परिचर्चा में कहा कि, चुनाव हमेशा भावनात्मक मुद्दों पर ही लड़े जाते रहे हैं और वोट भी उन्हीं पर मिलता है। उन्होंने पूछा कि भारत में कब काम और विकास के आधार चुनाव लड़ा और जीता गया?

समाज विज्ञानी राधारमण के अनुसार, बीजेपी भावनात्मक मुद्दों को आधार इसीलिए बनाना चाहती है क्योंकि ऐसे मुद्दों ने ही उसे सत्ता की चाबी सौंपी है। वे कहते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर की मौजूदा बहस को लीजिए। बीजेपी ये तो जरूर बताती है कि औरंगजेब ने मंदिर तुडवाया लेकिन इस बात को वो दबा जाती है कि मंदिर को बनवाने का काम अकबर के नौरत्नों में से एक राजा टोडरमल ने किया और क्या ऐसा संभव है कि टोडरमल ने ये काम बिना अकबर की अनुमति के किया होगा ?

वे मानते हैं कि हिंदू और हिंदुत्व पर चर्चा भी बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है और कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल इस ट्रैप में फंस गए हैं। उन्हें इससे बाहर निकलने का रास्ता सूझ ही नहीं रहा। विपक्ष को इसका भारी नुकसान होगा। वे बिहार और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों की याद दिलाते हुए बताते हैं कि, बिहार में भले तेजस्वी चुनाव हार गए लेकिन उन्होंने बीजेपी को पसीने छुड़ा दिए। क्यों, क्योंकि उन्होंने उन मुद्दों पर चुनाव लड़ा जिसे उन्होंने चुना था। लड़ाई क्लोज़ रही और बीजेपी के हाथ से सत्ता जाते-जाते बची। पश्चिम बंगाल में ममता दीदी ने मोदी और अमित शाह की जोड़ी को मात दी क्योंकि तमाम कोशिशों के बाद भी ममती बनर्जी ने खेल अपनी पिच पर खेला, बीजेपी की पिच पर नहीं। नतीजे आपके सामने हैं।

प्रोफेसर कुमार के अनुसार, आने वाले चुनाव कांटे के हैं। बीजेपी हर तरह से चुनाव को भावनात्मक मुद्दों पर ले जाने की कोशिश करेगी लेकिन विपक्ष को चुनाव में लड़ना है और मुकाबला करना है तो उसे अपने मुद्दे खुद तय करने होंगे। मुद्दों की कमी तो है नहीं। हिंदू- हिंदुत्व के सवालों पर शास्त्रार्थ की जरूरत नहीं है। बीजेपी को पता है कि इन मुद्दों पर उसे मात देना विपक्ष के बस की बात नहीं है। विपक्ष के लिए इन मुद्दों से बचना और जन सरोकारों के मसलों पर चुनावी रणनीति तैयार करना ही सबसे बड़ी चुनौती है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया        

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

- Advertisment -spot_img

Recent Comments