नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : माना जाता है कि अमेरिका अपने नियम-कायदों के मामले में खासा सख्त रहता है और खासकर जब सवाल अगर सेहत का हो तो चौकसी और भी बढ़ जाती है। माना ये भी जाता है कि अमेरिका में ऐसे प्रोडक्ट्स बिक ही नहीं सकते जो सेहत के लिए खतरनाक हो सकते हैं। अमेरिका भारत की बासमती से लेकर कई दवाओं तक पर इनकी क्वॉलिटी ठीक न होने और इनमें विषाक्त तत्व पाए जाने के कारण प्रतिबंध लगा चुका है।
ऐसे सख्त नियम-कायदों वाले देश अमेरिका में भी गोरखधंधा करने वालों की कमी नहीं है। वहां के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने अभी वहां आठ ऐसी कंपनियों को पकड़ा है, जो आंखों के रोगों का कथित इलाज करने वाली दवाएं बनाती या बेचती थीं, और वो भी बिना सरकार की मंजूरी के।
गौरतलब है कि बिना सरकार की मंजूरी के किसी भी देश में किसी भी दवा को बनाया या बेचा नहीं जा सकता है। एफडीए के मुताबिक, ये कंपनियां काला मोतिया, मोतियाबिंद दूर करने से लेकर आंख आने और आंखों को ताकतवर बनाने आदि की दवाएं सोशल मीडिया के माध्यम से बेच रही थीं। एफडीए का कहना है कि इन दवाओं में खतरनाक किस्म के तत्व मिलाए गए हैं जो आंखों के लिए नकसानदेह साबित हो सकते हैं। उसने सभी कंपनियों से इन दवाओं का उत्पादन और बिक्री तुरंत बंद करने को कहा है। उसका कहना है कि ये संघीय कानूनों का उल्लंघन है।
वैसे, ये दिलचस्प है कि अमेरिका में सख्त कानूनों के बावजूद ऐसी कंपनियों की कमी नहीं है, जो सेहत के लिए खतरनाक माने जाने वाले उत्पाद बेचती रही हैं। इनमें डायबिटीज दूर करने की कथित दवा, मोटापा घटाने वाले उत्पाद और बाल उगाने वाली दवाओं जैसे कई उत्पाद और शक्तिवर्धक दवाएं शामिल हैं। ऐसी कई कंपनियों पर एफडीए पहले भी कार्रवाई कर चुका है।
जहां तक भारत का सवाल है, यहां भी ऐसी कई दवाएं बाजार में बिकती हैं और उनका बाकायदा विज्ञापन किया जाता है। इन्हें हर्बल दवा के नाम से बेचा जाता है। सरकार ने अब भ्रामक दावे कर बेचे जाने वाली दवाओं पर रोक लगाने के लिए एक सिस्टम बनाया है, लेकिन इसका खास असर नजर नहीं आ रहा है। कुछ अर्सा पहले देश में ऐसी हजारों फिक्स डोज कॉम्बिनेशन दवाएं बिक रही थीं, जिन्हें केंद्र सरकार की मंजूरी नहीं थी। भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ने ऐसी कई दवाओं पर बैन लगा दिया था, जिन्हें उनकी मंजूरी नहीं थी। इन दवाओं को राज्यों ने अपनी मर्जी से बनाने और बेचने के लाइसेंस दे दिए थे, जबकि इसके लिए भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल की मंजूरी जरूरी थी। इन पर बैन लगने के बाद कई कंपनियां अदालत में चली गईं थीं। इसके बाद कई दवाओं पर से सरकार ने प्रतिबंध हटा लिया था।
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