नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र): ब्लोइन इन द विंड यूं तो बॉब डिलन का एक गीत था लेकिन शायद इसी गीत में दुनिया की ऊर्जा समस्याओं के सामाधान के कुछ जवाब भी छिपे हैं। इस गीत में पवन यानी हवा के साथ इंसान के रिश्तों की वो अनकही कहानी है जो कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाती है। ये गीत इशारों – इशारों में ऊर्जा के उस रूप की तरफ भी इशारा करता है जो हवा से पैदा होता है और भविष्य की दुनिया में जिसकी बहुत बड़ी भूमिका होने वाली है।
आज पारंपरिक ऊर्जा के संसाधनों का तेजी के साथ क्षरण हो रहा है। दुनिया पेट्रोल, डीजल और कोयले के पारंपरिक ऊर्जा संसाधनों की परिधि से बाहर एक दूसरे ऊर्जालोक की तरफ तेजी से बढ़ रही है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने दुनिया के देशों को आगाह किया है कि समय रहते ऊर्जा के वैकल्पिक और हरित संसाधनों को अपना लेना चाहिए। इस बारे में विकसित और विकासशील देशों की तमाम बैठकें भी हुईं और हरित, स्वच्छ और अक्षय ऊर्जा के संसाधनों के विकास और उन पर निर्भरता बढ़ाने के संकल्प प्रस्तुत किए गए।
सवाल है कि क्या ऊर्जा को लेकर व्यक्त की जा रही ये चिंता सिर्फ सरकारों की है और इससे सिर्फ सरकारों का लेना- देना है, इससे आम लोगों का कोई सरोकार नहीं है ? नहीं ऐसा नहीं है। ऊर्जा के पारंपरिक संसाधनों का दोहन पिछले डेढ – दो सौ सालों में होता रहा। औद्योगीकरण और शहरीकरण इन संसाधनों के दोहन की मुख्य वजहें रहीं। लेकिन कब तक जमीन और समुंद्र की गहराई में मौजूद इन ऊर्जा भंडारों पर निर्भर रहा जा सकता था। अब वो वक्त आ चुका है कि दुनिया इस विषय को बहुत गंभीरता से ले। सरकारें तो सोच रही हैं। आम लोग भी सोचें तो हालात संभल भी जाएंगे और संवर भी जाएंगे।
दुनिया में आजकल अक्षय ऊर्जा, हरित ऊर्जा, नवीकृत ऊर्जा, स्वच्छ ऊर्जा जैसे तमाम ऊर्जा से संबंधित शब्द चर्चा में हैं। मौटे पर देखें तो इन सारे शब्दों के मूल में दो चिंताएं दिखाई देती हैं। पहली, ऊर्जा के ऐसे संसाधन जो खत्म न हों और दूसरा ऐसी उर्जा जिससे प्रदूषण न हो और पृथ्वी सुरक्षित रहे। इन दोनों चिंताओं का निदान ऊर्जा के ऐसे संसाधनों पर निर्भर हैं जो प्रकृतिक होने के साथ कभी खत्म न होने वाले हों और साथ ही प्रदूषण जैसी समस्याओँ के कारक न हों।
ऊर्जा के ऐसे ही संसाधनों में अक्षय ऊर्जा और हरित ऊर्जा को लिया जा सकता है। ऐसी ऊर्जा सूर्य से हासिल हो सकती है। पवन यानी हवा से हासिल हो सकती है। जल या पानी से हासिल हो सकती है। ये वो संसाधन हैं जो हमें प्राकृतिक रूप से मिलते हैं। इनसे किसी तरह का प्रदूषण नहीं होता। सबसे बड़ी बात ये कमखर्च ऊर्जा के संसाधन हैं। एक बार शुरू में जो पैसा लगा उसके बाद काफी कम पैसे में ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है।
भारत सरकार भी अक्षय ऊर्जा और हरित ऊर्जा के क्षेत्र में काफी बढ़ – चढ़ कर प्रयास कर रही है। वर्ष 2030 तक कोशिश की जा रही है कि देश में कुल ऊर्जा खपत का 40 प्रतिशत हिस्सा अक्षय या हरित ऊर्जा के संसाधनों से पैदा किया जाए। दुनिया में कई देश तो ऐसे हैं जो आज भी पूरी तरह से हरित ऊर्जा पर निर्भर हैं। इन देशों में लैटिन अमेरिकी देश कोस्टारिका, यूरोपीय देश स्कॉटलैंड, डेनमार्क, स्वीडन और फिनलैंड शामिल हैं।
भारत के लोगों को भी उर्जा के ऐसे स्वच्छ, हरित और अक्षय संसाधनों के इस्तेमाल में आगे बढ़ने में झिझक नहीं होनी चाहिए। बेहतर हो, स्कूलों में हम प्रकृति के साथ इंसान रिश्तों के संदर्भ में ऊर्जा के इन संसाधनों को समझाने का प्रयास करें। दरअसल प्रकृति ने हमें वह सब दिया है जो हमारी जरूरत है। य़हां तक कि ऊर्जा के संसाधन भी उसकी देन हैं चाहे उसके पारंपरिक स्रोत हों या अक्षय ऊर्जा से लेकर नवीकृत ऊर्जा। इंसान को प्रकृति की इन देनों को सहेजना तो सीखना होगा। क्योंकि इसी में उसका वजूद और उसकी सुरक्षा दोनों निहित है।