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पीएमओ ने चुनाव आयोग को पत्र में ऐसा क्या लिखा कि मच गया हड़कंप ?

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नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए न्यूज़ डेस्क ) :चुनाव आयोग की आपत्ति के बाद भी प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ ऑनलाइन बातचीत में चुनान आयुक्तों को शामिल होना प़ड़ा। हालांकि ये बातचीत अनौपारिक बताई गई और इसे चुनाव सुधारों के सिलसिलें में बताया गया इसके बावजूद चुनाव आयुक्तों को ऐसे निर्देश चुनाव आयोग की स्वायत्तता को कमतर करते हैं।

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र और दो चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और अनूप चंद्र पांडे ने प्रधानमंत्री कार्यालय़ की तरफ से बैठक के लिए जारी निर्देश पर आपत्ति जताई थी इसके बावजूद भी उन्हें 16 नवंबर को प्रधानमंत्री कार्यालय की ऑनलाइनन बातचीत में शामिल होना पड़ा।  

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इस दिन चुनाव आयोग को क़ानून मंत्रालय (चुनाव आयोग का प्रशासनिक मंत्रालय) के एक अधिकारी से एक पत्र प्राप्त हुआ। इस पत्र में लिखा था कि प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव पी. के. मिश्रा कॉमन इलेक्टोरल रोल पर एक बैठक की अध्यक्षता’ करेंगे और उसमें मुख्य चुनाव आयुक्त के मौजूद होने की उम्मीद है। चुनाव आयोग में इस तरह के पत्र से हड़कंप मच गया। सूत्रों के हवाले से अखबार ने लिखा कि आयोग को इस पत्र के शब्दों पुप घोर आपत्ति थी और इसे एक समन या तलब के रूप में माना गया। आयोग ने इसे संवैधानिक मर्यादाओं का उव्लंघन मानते हुए इसे पूर्व के उदाहरणों के खिलाफ मांना।  चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने जानकारी दी कि पीएमओ से मिले इस पत्र पर चुनाव आयोग ने क़ानून मंत्रालय से अपनी आपत्ति को प्रकट किया।

अखबार के अनुसार, यही वजह थी कि मुख्य चुनाव आयुक्त और दोनों चुनाव आयुक्त इस वीडियो मीटिंग से दूर रहे। उनके अधीनस्थ अधिकारी इस बैठक में शरीक हुए। हालांकि इस बैठक के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त और दोनों चुनान आयुक्त, पी. के. मिश्रा के साथ एक अनौपचारिक बातचीत शामिल हुए।

अखबार ने एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से लिखा कि, ये बैठक केवल चुनाव सुधारों से संबंधित लंबित मसलों के लिए थी। इसमैं कॉमल इलेक्टोरल रोल के लिए एक कट ऑफ डेट पर चर्चा की गई और चुनावों से संबंधित कोई बातचीत इस मीटिंग में नहीं की गई। इसे अनौपचारिक बैठक कह सकते हैं। ये किसी तरह की कोई औपचारिक बैठक नहीं थी। पिछले साल 13 अएगस्त को इसी तरह की एक बैठक आयोजित की गई थी जिसमें चुनाव अधिकारी शामिल हुए थे न कि चुनाव आयुक्त।  

सामान्य तौर पर, चुनाव आयोग का वास्ता सिर्फ और सिर्फ कानून मंत्रालय से पड़ता है और चुनावों के आयोजन पर गृह मंत्रालय से सुरक्षा संबंधी उपायों के बारे में चर्चा होती है जिसमें चुनाव आयुक्त जाते हैं। इस तरह की बैठकों के लिए पत्र भेजना चुनाव आयोग की मर्यादा और निर्धारित मान्य परंपराओं के उल्लंघन के रूप में देखा जा रहा है।   

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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