नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए जे.पी. सिंह):
नई दिल्ली : आज जबकि पैसे कमाने के लिए लोग अपनी जमीन से कटते जा रहे हैं ऐसे में कुछ युवा ऐसे भी हैं जिन्हें उनकी माटी की खुश्बू वापस अअपने वतन खींच लाती हैं। उन्हीं युवाओं में से एक हैं राजस्थान श्रीगंगानगरजिले के रहने वाले रणदीप कांग जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने अमेरिका गए और फिर माता-पिता की जिद पर वहीं काम करने लगे। उनके माता-पिता का सपना था कि रणदीप अमेरिका में ही रहें और बहुत कामयाब बनें। हालांकि रणदीप ने मां – बाप के सपनो को पूरा करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स इजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और वही कैलफोर्निया में सालाना 5 करोड़ रुपए की नौकरी करने लगे। लेकिन रणदीप मन में हमेशा खेती को लेकर एक लगाव बना रहा।
अमेरिका में की गाय, गोबर और गौमूत्र आधारित खेती
रणदीप कांग के अमेरिका में कई विदेशी दोस्त थे जिनके संतरे के बाग थे। अक्सर वह अपना खाली समय बिताने के लिए इन बागों को देखने जाया करते थे। एक दोस्त के संतरे के बाग की उपज बेहद कम थी जिसे लेकर वो परेशान था। अक्सर अपना खाली समय बागों में बिताने वाले रणदीप अपने दोस्त को उपज बढ़ाने के देसी तरीक़े बताने लगे। उन्होंने गौमूत्र से बनी खाद और पेस्टीसाइड का प्रयोग सुझाया और बाग की उपज बढ़ गई। इस एक वाकए ने रणदीप के खेती के शौक को जैसे पंख लगा दिए हों। उन्होंने विदेश में ही खेती के जैविक तरीक़ों पर रिसर्च की और जब कामयाब रहे तो देसी मिट्टी की पुकार ने विदेश में अपना जमा-जमाया कारोबार समेट कर भारत आने को प्रेरित कर दिया। और फिर रणदीप अपने गांव लौट आए।
रणदीप ने जैविक खादों के बारे में कैलिफॉर्निया के किसानों से भी काफी जानकारियां हासिल कीं और अब उनका मकसद था कि उनके अपने गांव के किसान भी जैविक खाद के बारे में जानें और उसका इस्तेमाल करें।
मिट्टी की पुकार से गांव लौटा विदेश से इंजीनियर
रणदीप कांग ने राजस्थान के श्रीगंगानगर में अपने गांव लौटने का बाद पाया कि यहां पर ज्यादातर खेती अब भी बारिश पर ही निर्भर है। फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए किसान अधिक मात्रा में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहें है। इससे मिट्टी की उर्वरता कम हो रही थी वहीं दूसरी ओर जो फसल पैदा होती उसको खाने से उस इलाके के ज्यादातर लोग कैंसर, डाइबिटीज और हड्डी के रोगों से पीड़ित हो रहे थे। ये देख रणदीप का मन विचलित हो गया। वो गांव में आकर लोगों को जैविक खेती के बारे में बताने लगे लेकिन ज्यादातर किसान उनकी बातों पर विश्वास नहीं करते। इसके बाद रणदीप ने साल 2014 में गांव में अपनी 100 बीघा जमीन पर खेती करना शुरू किया। वहां उन्होंने अपनी जमीन में किन्नू, मौसमी, फालसा, जामुन, आंवला, और नीबू सहित कई फलों की बागवानी की। उन्होंने अपने खेतों में जैविक खाद का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। इस खाद को उन्होंने खुद ही तैयार किया था। जैविक खाद में उन्होंने गोमूत्र के साथ नीम, आक, धतूरा, तूंबा, मिर्च और लहसुन को उबाल कर मिलाया और अपनी फसलो में इस्तेमाल। इससे उनकी फसलो को काफी लाभ मिला।
जैविक खेती के सजग प्रहरी बने ऱणदीप
रणदीप के खेती के शौक ने उन्हें इसी मुद्दे पर काम करने को मजबूर किया था। उन्होंने विदेशी धरती पर जो देसी तरीक़ों का लाभ देखा था वे उसे अपने खेतों में आजमाने लगे। अपने खेतों में रणदीप ने रासायनिक खादों औक कीटनाशकों की जगह जैविक खाद और गौमूत्र से तैयार कीटनाशक का इस्तेमाल किया और इसका फायदा भी दिखाई दिया। उनकी खेती देख कर गांव के दूसरे लोगों ने भी जैविक खाद और मौमूत्र से बने कीटनाशक का इस्तेमाल किया। वे गौमूत्र में नीम, आक, धतूरे के पत्ते पीस कर मिलाते हैं और फिर उसे 20-22 दिनों तक छाया में पड़े रहने देते हैं। फिर उसका इस्तेमाल रोग-कीटनाशक के तौर पर किया जाता है। इससे होने वाली उपज, इंटरनेशनल मार्केट में चौगुनी कीमत पर बिक जाती है जबकि लागत कम आती है।
दरअसल गौमूत्र से बने कीटनाशक और खाद के इस्तेमाल से कई तरह के फायदे मिलते हैं। मिट्टी की खुश्की दूर होती है, केंचुओं की तादाद बढ़ती है जो बड़ी मात्रा में मिट्टी पलट देते हैं। इससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा भी बढ़ती है। फ़सलों के लिए ज़रूरी 14 तरह के न्यूट्रिएंट्स की जगह गौमूत्र से 16 तरह के न्यूट्रिएंट्स मिल जाते हैं। दीमक और फंगस का ख़ात्मा हो जाता है। सिंचाई के लिए कम पानी की ज़रूरत होती है। यही कारण है कि गौमूत्र के इस्तेमाल से खेती में लागत कम हो जाती है।
गांव-गांव में जगा रहे हैं जैविक खेती की अलख
रणदीप बताते हैं गौमूत्र से फसलों की पैदावार की गुणवत्ता बेहतर हो जाती है। अब आलम ये है कि मांग बहुत बढ़ने के कारण रणदीप अब इसका व्यावसायिक उत्पादन भी करने लगे हैं। 5 रुपए लीटर गौमूत्र खरीद कर उसे ट्रीट कर बनने वाली पेस्टीसाइड को 50 रुपए प्रति लीटर बेचते हैं। अब इलाक़े के किसान रणदीप से प्रेरित होकर जैविक खेती और गौमूत्र वाली पेस्टीसाइड का इस्तेमाल कर अच्छे परिणाम पा रहे हैं। यही कारण है कि रणदीप लोगों के बीच देसी कृषि वैज्ञानिक के तौर पर पहचाने जाने लगे हैं। जैविक खेती के फायदे के बारे में रणदीप कहते हैं कि इससे फसल का उत्पादन तो बढ़ा ही है वहीं खेती करने की लागत में भी कमी आई है। कपास की खेती में सफेद मच्छर फसल को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। इसे रोकने में सरकार का कृषि विभाग भी फेल हो गया है लेकिन इस जैविक पेस्टीसाइड के प्रयोग से कपास में सफेद मच्छर भी नहीं लगते हैं।