लखनऊ ( गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र ) : अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जमीन की बंदरबांट का जो खेल शुरू हुआ उसमें क्या नेता, क्या अफसर, क्या धर्म और योग की प्रतिष्ठा की बात करने वाले संगठन सबके सब एक ही थाली के चट्टे -बट्टे नजर आते हैं। ये एक तरह से आस्था में अवसर तलाशने वालों के जमावड़े का खेल बन कर रह गया है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने अयोध्या में एक विवादित जमीन के सौदे से संबंधित खबर छापी थी। खबर में बताया गया था कि इस जमीन को खरीदने वालों में कौन लोग शामिल हैं और किस तरह से नियमों को धता बता कर इस जमीन के सौदे किए गए।
इस बंदरबांट में दिलचस्प आयाम तब और जुड़ गया जब उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले की जांच कराने का आदेश दिया। जांच एक हफ्ते में होनी है और जांच करेंगे विशेष सचिव राजस्व। यहीं से जांच की गंभीरता और सरकार की मंशा पर प्रश्नचिंन्ह लगता है। जमीन खरीद में जिन नेताओं और अफसरों के नाम सामने आए हैं उनमें कमिश्नर, डीआईजी, एसडीएम, एमएलए, मेयर जैसे पदों पर आसीन लोग शामिल थे। विशेष सचिव स्तर का अधिकारी कैसे इस जांच को कर पाएगा ये बड़ा सवाल है। ये कुछ वैसा ही मामला है जैसे कि किसी दरोगा को एसपी के खिलाफ किसी मामले की जांच करने का दायित्व सौंप दिया जाए।
इससे पहले भी, अयोध्या में एक जमीन खरीद का मामला काफी चर्चा में रहा था। उसकी जांच का क्या हुआ ये आज तक सामने नहीं आया। उस जमीन खरीद में हिंदू धार्मिक संगठनों से जुड़े लोगो का नाम सामने आए थे और इस खरीद में भी बीजेपी और उससे जुड़े कई नेताओं के संबंधियों का नाम सामने आया है। अफसरों के संबंधियों के नाम तो हैं ही।
इस मामले के कई पहलू हैं। सौदे में कितने शातिर दिमाग का इस्तेमाल किया गया है ये भी देखने की बात है। जमीन विवादस्पद है क्या ये बात अफसरों को नहीं पता थी या दलित की जमीन है, क्या ये नहीं पता था ? अयोध्या में इसके पहले भी जमीन खरीद घोटाला काफी चर्चित रह चुका है ये भी अफसरों की जानकारी में होगा। लेकिन उसके बाद भी जिस तरह से दुस्साहस किया गया ये मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की सरकार के रसूख पर प्रशनचिन्ह है।
इस जमीन सौदे से जुड़े एक अहम पक्ष महर्षि महेश योगी ट्रस्ट के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री स्वयं कुछ समय पहले शामिल हुए थे। योग, आध्यात्म, आयुर्वेद और भारतीय संस्कृति के विस्तार के नाम पर महर्षि के ट्स्ट को उत्तर प्रदेश के नोएडा में भी काफी जमीन आवंटित की गई है।
अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ होने के बाद वहां जमीन के दाम काफी बढ़ गए हैं। इसे देखते हुए वहां जमीन खरीदने वालों की संख्या काफी बढ़ गई। दो किस्म के लोग सक्रिय हुए। एक वे जो विशुद्ध आस्था के कारण अयोध्या में बसना या जमीन खरीदना चाहते हैं। इनकी संख्या कम ही है। और दूसरे वे जो आस्था की नगरी में अवसर को तलाशने वाले थे। ऐसे लोग आमतौर पर कारोबारी हुआ करते हैं लेकिन यहां कहानी कुछ अलग है। यहां जमीन को कब्जाने वालों में सत्तारूढ़ पार्टी और उससे जुडे संगठनों के नेता और उनके संबंधियों के अलावा बड़े पैमाने पर अफसर शामिल हैं और वे भी ऊपर से लेकर नीचे तक।
कुछ दिनों पहले मंदिर ट्रस्ट की जमीन को विवाद हुआ था। जमीन को औने- पौने दामों मे बेचना, फिर महंगी दरों पर खरीदना। विवाद हुआ तो जांच की घोषणा कर दी गई। फिर बताया गया कि कोई गड़बड़ी नहीं हुई। औपचारिक रूप से जांच का कोई नतीजा नहीं आया। इस मामले की जांच कराने का आदेश देने में भी कोई देरी नहीं की गई लेकिन नतीजा पहले हुई जांच के जैसा ही न हो ये चिंता का विषय जरूर है।
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