नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए न्यूज़ डेस्क ) : सरकार ने तीनों विवादित कृषि कानूनों को आज संसद में वापस ले लिया। संसद के दोनों सदनों में बिना कोई बहस हुए इन कानूनों की वापसी का प्रस्ताव कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने रखा और मिनटों में उसे ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। विपक्षी दलों ने बिना चर्चा के कानून वापसी को लोकतंत्र का अपमान बताया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि विपक्ष कृषि कानूनों पर चर्चा चाहता था और साथ ही न्यूनतम समनर्थन मूल्य (एमएसपी ) पर भी बहस हो सकती थी।
शहीद किसानों को श्रद्धांजलि
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि, कृषि कानूनों की वापसी आंदोलनकारी 750 शहीद किसानों की मौत पर श्रद्धांजलि है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब तक सरकार एमएसपी पर कानून नहीं बनाती किसानों का प्रदर्शन जारी रहेगा और वे वापस नहीं जाएंगे।
विपक्ष नाराज, लेकिन क्यों ?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने, कृषि क़ानूनों की वापसी को किसानों की जीत बताया लेकिन क़ानून वापसी पर चर्चा न होने पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि, दुख की बात है कि बिना चर्चा के कृषि बिल वापस हो गया। सरकार ने क़ानून वापसी पर चर्चा नहीं होने दी। सरकार संसद में चर्चा कराने से डरती है। हम सदन में एमएसपी पर चर्चा चाहते थे।
राहुल गांधी ने कहा कि, अगर प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में माफ़ी मांगी है तो इसका मतलब है कि उन्होंने माना है कि आंदोलन में हुई मौतों के लिए वे ज़िम्मेदार हैं। गलती मानी है तो उन्हें मुआवज़ा देना चाहिए।
कांग्रेस महासचिव, रणदीप सुरजेवाला ने संसद में कृषि क़ानूनों की वापसी का बिल वापस लेने के तरीक़े पर सवाल उठाया है। सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा कि, तीनों कृषि विरोधी काले क़ानूनों को न पारित करते चर्चा हुई, न ख़त्म करते हुए चर्चा हुई, क्योंकि चर्चा होती तो हिसाब देना पड़ता, जबाब देना पड़ता। खेती को मुट्ठी भर धन्नासेठों की ड्योढ़ी पर बेचने के षड्यंत्र का, 700 से अधिक किसानों की शहादत का, फसल पर एमएसपी न देने का।
राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि, सरकार झूठ बोल रही है और कानून वापस लेने के ऊपर कभी कोई चर्चा ही नहीं हुई। उन्होंने कहा कि वो कृषि क़ानूनों को वापस लिए जाने का स्वागत करते हैं लेकिन साथ ही उन्होंने लखीमपुर खीरी और बिजली बिल समेत कई मुद्दों पर चर्चा की मांग की।
कृषि कानूनों पर चर्चा न होने के सवाल पर संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि, कृषि विधेयक पास होने के दौरान चर्चा हुई थी आज पूरा विपक्ष क़ानून वापस लेने की मांग कर रहा था लेकिन जब हम क़ानून वापस लेने के लिए गए तो विपक्ष ने हंगामा खड़ा कर दिया। मैं विपक्ष से पूछना चाहता हूं कि उनका मक़सद क्या है? सरकार का इरादा साफ़ है।
किसानों ने कहा आगे और लड़ाई है
आंदोलनरत किसान नेताओं ने कृषि कानूनों की वापसी पर संतोष जाताया है। उन्होंने कहा है कि, ये उनके आंदोलन के पहले चरण की जीत है। किसानों नेताओ ने कहा कि, न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाला कानून अब हमें चाहिए। हमारे 750 किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए हैं। सरकार उस बारे में अपनी नीति सपष्ट करे। इस मामले को राज्य सरकारों को सौंप देना भी ठीक नहीं है। किसानों ने कहा कि, कृषि कानूनों की वापसी के सरकार के कदम का मान रखते हुए आज संसद तक प्रस्तावित अपने मार्च को वापस लिया गया। हमने सरकार को 4 दिसंबर तक का समय दिया है कि लंबित मुद्दों पर बातचीत करते हुए एमएसपी की गारंटी की हमारी मांग पर फैसला ले ले। किसान अपनी आगे की रणनीति इस मियाद के बीतने के बाद तय करेंगे।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया