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सावरकर का माफीनाम और गांधी….आरोप, तथ्य और मंशा…

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) :

सोशल मीडिया से लेकर टीवी की बहसों में इस समय देश के नायकों की तस्वीरों को बदलने का उपक्रम चल रहा है। सभी के पास इतिहास की अपनी किताब है, और अपनी दृष्टि भी। कोई महात्मा गांधी को गलत ठहरा रहा है तो कोई नेहरू को। किसी के नायक सावरकर हैं तो कोई गोडसे को भगवान बता रहा है।  गांधी जयंती के दिन गोडसे हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा था। कुल मिलाकर कहा जाए तो इतिहास को अनदेखा कर एक नया इतिहास गढ़ने की कोशिश की जा रही है।

सवाल ये है कि आखिर इस कोशिश के पीछे मंशा क्या है और इसके पीछे तथ्यों की हकीकत क्या हैं ? बात, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के उस बयान की जिसमें उन्होंने सावरकर के माफीनामे के पीछे महात्मा गांधी की सलाह को जिम्मेदार ठहराया। मौका था उदय माहुरकर और चिरायु पंडित की लिखी किताब, वीर सावरकर- द मैन हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टीशन के विमोचन का। राजनाथ सिंह के इस बयान के बाद सावरकर और गांधी को लेकर देश में एक नई बहस छिड़ गई।

राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में कहा कि,  सावरकर के ख़िलाफ़ झूठ फैलाया गया, कहा गया कि उन्होंने अंग्रेज़ों के सामने बार-बार माफ़ीनामा दिया, लेकिन सच्चाई ये है कि क्षमा याचिका उन्होंने ख़ुद को माफ़ किए जाने के लिए नहीं दी थी, उनसे महात्मा गांधी ने कहा था कि दया याचिका दायर कीजिए. महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने याचिका दी थी।

माहुरकर ने अपनी किताब में ऐसे किसी भी तथ्य से इनकार किया लेकिन उन्होंने ये जरूर कहा कि इस विषय पर किसी पुख्ता निष्कर्ष का वक्त अभी नहीं है क्योंकि गांधी और सावरकर के बीच संबंधों पर अभी शोध जारी है।

सावरकर और ऐतिहासिक तथ्य

राजनाथ सिंह का बयान आते ही उस पर तीखी प्रतिक्रिया मिलने लगी। इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब ने एक ट्वीट में कहा कि, इतिहास लेखन वास्तव में बदल रहा है जिसका नेतृत्व मंत्री कर रहे हैं और जिनका दावा है कि गांधी ने सावरकर को माफ़ीनामा लिखने को कहा था। कम से कम अब ये स्वीकार किया गया कि उन्होंने लिखा था। जब मंत्री दावा करते हैं तो किसी दस्तावेज़ी साक्ष्य की ज़रूरत नहीं होती है। नए भारत के लिए नया इतिहास।

माफीनामा और गांधी

महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और कांग्रेस नेता असलम शेख़ ट्विटर पर लिखते है कि, इतिहास, इतिहास ही रहेगा। बीजेपी के महानायक सावरकर ने एक-दो नहीं बल्कि छह क्षमा याचिकाएं 1911, 1913, 1914, 1915, 1918 और 1920) अंग्रेज़ों को लिखी थीं,  जिसमें वो माफ़ी की भीख मांग रहे थे।

गौरतलब है कि भारतीय राजनीति में गांधी का प्रवेश ही 1915 के बाद हुआ है तब तक सावरकर चार माफीनामे अंग्रेजी सरकार को दे चुके थे।

मुंबई में स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक से जुड़े, वीर सावरकर के छोटे भाई डॉक्टर नारायण राव सावरकर के पोते रंजीत सावरकर इस बात को नहीं मानते कि महात्मा गांधी के कहने पर वीर सावरकर ने माफीनामा लिखा था। उन्होंने ये जरूर कहा कि महात्मा गांधी ने अपने दो लेखों में सावरकर की रिहाई की वकालत इस आधार पर की थी कि उन्होंने शांतिपूर्ण रास्ते पर लौटने की बात कही थी।

सावरकर और हिंदुत्व

सावरकर ने अपनी किताब हिंदुत्व: हू इज़ ए हिन्दू,  में स्पष्ट तौर पर लिखा कि राष्ट्र का आधार धर्म होता है और उन्होंने भारत को हिंदुस्थान कहा। उन्होंने अपनी किताब में लिखा, हिन्दुस्थान का मतलब हिन्दुओं की भूमि से है। हिन्दुत्व के लिए भौगोलिक एकता बहुत ज़रूरी है। एक हिन्दू प्राथमिक रूप से यहां का नागरिक है या अपने पूर्वजों के कारण हिन्दुस्थान’ का नागरिक है।

दो राष्ट्र का सिद्धांत

ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि सावरकर ने मुस्लिम लीग से भी पहले द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को पेश कर दिया था। उन्होंने 1937 में अहमदाबाद में साफ़ शब्दों में कहा था कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं और दोनों का हक़ इस भूमि पर एक बराबर नहीं है। जबकि प्रचलित धारणा है कि मुस्लिम लीग ने 1940  के लाहौर अधिवेशन में मुसलमानों के लिए अलग देश की बात पहली बार कही थी।  

बीते सच को बदलने की कोशिश

समाजशास्त्री डॉ. प्रमोद कुमार का कहना है कि दुनिया आइडियोलॉजिकल रेडिकलाइजेशन के दौर से गुजर रही है। सभी के अपने अपने सच और नायक हैं। ऐतिहासिक तथ्य साथ हैं तो ठीक, नहीं हैं तो भी ठीक। ये खतरनाक प्रवृत्ति है। इतिहास के सच से मुंह चुराना उस हरकत की तरह से है जहां तथ्य साथ न दें तो इतिहास ही बदल दो।

वे मानते हैं कि सावरकर के ऊपर सबसे बड़ा इल्जाम गांधी की हत्या में उनका नाम जुड़ना है। उन्हें इस मामले में गिरफ्तार भी किया गया था लेकिन बाद में रिहा हो गए थे। लेकिन गांधी की हत्या की जांच के लिए बने कपूर कमीशन ने उन्हें दोषमुक्त नहीं माना और उन्हें शक के दायरे में रखा। ये सावरकर की विरासत पर दाग है और इससे छुटकारा पाने के लिए ऐसी कोशिशें जारी रहेंगी।

वरिष्ठ  पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बड़े नामों पर, द आरएसएस : आइकन्स ऑफ़ द इंडियन राइट  नाम की एक किताब लिखी है। राजनाथ सिंह के बयान के बारे में टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि, हम इतिहास को झुठलाने के दौर में जी रहे हैं। हर रोज एक झूठ को बार बार बोल कर उसे सत्य बना दिया जाता है। कल कोई और नेता आएगा और कहेगा कि गोडसे ने भी गांधी जी के कहने पर बंदूक उठाई और उन्हें मार दिया।

डॉ. प्रमोद कुमार, देश के नायकों पर उठने वाले सवालों पर ही सवाल खड़ा करते हैं। उनका कहना है कि शायद भारत दुनिया का पहला देश होगा जो जहां उसके महानायकों को ही बदनाम करने की साजिश चल रही है। सरकारे आती-जाती हैं, लेकिन देश की बुनियाद पर चोट ठीक नहीं।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया    

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