नई दिल्ली (विमल शंकर सिंह, जनचौक.कॉम से साभार) : वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने कुछ समय पहले ही ‘ग्लोबल रिस्क्स रिपोर्ट-2022’ जारी की है। इस रिपोर्ट ने इस वर्ष और भविष्य में होने वाले वैश्विक स्तर के विभिन्न खतरों से विश्व बिरादरी को सावधान करने का प्रयास किया है। वस्तुतः सम्पूर्ण संसार और मानवता का भविष्य इन खतरों के कारण अधर में है और यदि मानवता को अपने को इनसे बचाना है तो समझना होगा कि सावधानी ही दुर्घटना रोकने का एकमात्र उपाय है। वास्तव में ग्लोबल रिस्क्स रिपोर्ट विभिन्न समस्याओं की बाढ़ को बताती, समझाती और सावधान करती है। हां, फिर भी हम सब यदि बाढ़ में फंसना और बहना चाहें तो वह कुछ नहीं कर सकती है। आइये इसको समझें।
वर्ष 2022 की शुरुआत कोविड-19 के फैलाव से हुई है। कोरोना ने सम्पूर्ण विश्व को एक वास्तविक बिरादरी में परिवर्तित कर दिया है जो कि डरी और सहमी हुई है। ऐसी डरी और सहमी हुई जमात को विभिन्न खतरों से आगाह करने के लिए ही ये रिपोर्ट तैयार की गई है। ‘ग्लोबल रिस्क्स रिपोर्ट’ तैयार करने के लिए विश्व के कुछ चुनिंदा विशेषज्ञों, व्यवसाइयों, सरकारों और सिविल सोसाइटी के लोगों से आर्थिक, पर्यावरणीय, भूराजनैतिक, सामाजिक और तकनीकी क्षेत्रों से उत्पन्न हो सकने वाले अल्पकालीन (0-2वर्ष), मध्यमकालीन (2-5वर्ष) और दीर्घकालीन (5-10वर्ष) चुनौतियों एवं खतरों के बारे में जानकारी ली गई है और हम सबको इनसे सतर्क किया गया है ।
आर्थिक चुनौतियों और खतरों में ऋण सम्बन्धी समस्याएं, देशों में आर्थिक क्षेत्र की लम्बी सुस्ती, सम्पत्तियों और उद्योग क्षेत्र का धराशाही होना, कीमत अस्थिरता आदि मुद्दे सम्मिलित हैं। दूसरी तरफ, पर्यावरणीय सक्रियता पर नियंत्रण की असफलता, चरम मौसम,जैव विविधता की हानि, प्राकृतिक संसाधनों सम्बन्धी खतरे आदि पर्यावरणीय समस्याओं में सम्मिलित हैं।
भूराजनैतिक खतरों में आठ चुनौतियों जैसे भू आर्थिक झगड़े, अन्तर्राजीय सम्बन्धों की खटास और विवाद, बहुपक्षीय समाधान व्यवस्था का ढहना, आतंकवाद आदि चुनौतियां सम्मिलित हैं।
सामाजिक खतरों में दस मुद्दे शामिल हैं और वे हैं-सामाजिक एकजुटता / सद्भाव की कमी, आजीविका सम्बन्धी खतरे, मानसिक स्वास्थ्य की बिगड़ती हुई स्थिति, छूत के रोगों का बढ़ना, अनैक्षिक प्रवास आदि।
इसी भांति, टेक्नोलॉजी वर्ग में साइबर सुरक्षा की असफलता, डिजिटल असमानता, तकनीक पर नियंत्रण एवं शासन की असफलता आदि शामिल हैं। इस तरह से पैंतीस से ज्यादा खतरों की पहचान और पड़ताल की गई।
इन खतरों में कोविड के बाद से उपजे खतरों में ‘सामाजिक एकजुटता अथवा सद्भाव की कमी’, ‘आजीविका सम्बंधित खतरे’, ‘मानसिक स्वास्थ्य का बिगड़ना’, ‘पर्यावरणीय अथवा जलवायु सम्बन्धी कार्यवाही कि असफलता’ और ‘चरम मौसम’ सम्मिलित हैं जिनकी स्थिति इस दौरान सबसे ज्यादा बिगड़ी और यही मानव जाति के लिए वास्तविक खतरे के रूप में भी उभरे हैं। इन खतरों से आहत समाज के लिए राष्ट्रीय नीतियां बनाने में और वैश्विक खतरों से लड़ने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग करने में जिस एकजुटता, एकाग्रता की आवश्यकता होती है उसके लिए अनेक समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं ।
इस रिपोर्ट के अनुसार कुछ खतरे ऐसे हैं जिनसे कि अन्य खतरे और भी बढ़ या गंभीर हो जाते हैं। जैसे पर्यावरणीय सक्रियता के नियंत्रण की असफलता से स्वास्थ्य समस्याओं का बढ़ना, प्राकृतिक संसाधनों पर विपरीत असर होना, आजीविका सम्बंधित खतरे तथा विपरीत मौसम के खतरे आदि का बढ़ना सम्मिलित हैं। इसी तरह, चरम मौसम, प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरणीय सक्रियता के नियंत्रण की असफलता और जैव विविधता के नुकसान को और गंभीर कर देता है। इससे अनैक्षिक प्रवसन बढ़ने के साथ-साथ सामाजिक एकजुटता और भू राजनैतिक संसाधन भी प्रभावित होता है।
इसी तरह जैव विविधता की कमी अनेक समस्याओं को बढ़ाती है। आजीविका सम्बंधित चुनौतियां बढ़ती हैं और सामाजिक सद्भावना सम्बन्धी चुनौतियों और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका विपरीत असर पड़ता है। इससे ऋण सम्बन्धी चुनौतियां भी बढ़ती हैं और नौजवान वर्ग दिग्भ्रमित होता है। दूसरी तरफ, सामाजिक एकरूपता के क्षरण से सामाजिक सुरक्षा प्रभावित होती है। भू आर्थिक झगड़े बढ़ते हैं और बहुपक्षीय सहयोग, असहयोग में परिवर्तित होने लगता है। आजीविका सम्बन्धी चुनौतियां, हमको ऋण के जाल में फसाती हैं। अर्थव्यवस्था में लम्बी सुस्ती जैसी स्थिति पैदा होने लगती है और अनैक्षिक आर्थिक क्रियाओं का जन्म होने लगता है। सामाजिक सद्भाव की भी कमी होने लगती है। स्पष्ट है कि ये सब खतरे एक दूसरे को न केवल प्रभावित करते हैं वरन एक-एक ग्यारह होने कि स्थिति पैदा कर देते हैं। ऐसे में इन पर गौर करना और नियंत्रण करना जरूरी हो जाता है तभी इनका दुष्चक्र तोड़ा जा सकता है।
रिपोर्ट यह भी स्पष्ट करती है कि देशों के सम्मुख विभिन्न समयावधियों में कौन सी समस्याएं खतरनाक होंगी जिनका समाधान नितांत आवश्यक होगा। दो वर्ष से कम अर्थात अल्पावधि में पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान की असफलता, मौसम की चरम स्थिति, मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर,सामाजिक सहयोग में कमी या क्षरण, आजीविका की समस्या, ऋण के भार की चुनौती, साइबर सुरक्षा की असफलता आदि चुनौतियां गंभीर खतरों का रूप धारण कर हम सबके समक्ष आएंगी।
मध्यावधि में पर्यावरणीय चुनौतियां, प्रतिकूल मौसम की समस्या, जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों की कमी होने की समस्या, ऋण सम्बन्धी चुनौतियां, साइबर सुरक्षा और भू आर्थिक विवाद जैसी समस्याएं गंभीर खतरों का रूप ग्रहण कर लेंगी। दीर्घावधि में मानव पर्यावरण और सामाजिक सद्भाव की कमी, अनैक्षिक प्रवास, भू राजनैतिक संसाधन सम्बंधित विवाद आदि चुनौतियां गंभीर खतरों का रूप धारण कर सकती हैं ।अतः इन सभी चुनौतियों और खतरों को हम सभी को ध्यान देना होगा ।चुनौतियां और खतरे हम सभी का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। किन्तु प्रश्न तो यह है कि क्या हमारी सरकारों का ध्यान इन पर है? यह रिपोर्ट कहती है कि शायद नहीं । व्यापार की सहूलियतें बनाना,अंतर्राष्ट्रीय अपराध का निस्तारण, वित्तीय स्थिरता कि व्यवस्था, सामूहिक विनाश के हथियारों सम्बन्धी व्यवस्था,भौतिक विवाद के निबटारे कि व्यवस्था जैसे कुछ ही खतरे हैं जिनके लिए एक सुस्थापित व्यवस्था अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बन पाई है।
किन्तु कुछ खतरों के निपटारे के सम्बन्ध में अभी भी सुसम्बद्ध व्यवस्था का अभाव है। रिपोर्ट तो कहती है कि अभी शुरुआती कार्य भी न के बराबर हुए हैं। कृत्रिम रूप से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), अंतरिक्ष का अन्वेषण और शोषण, सीमा पार के साइबर हमले, प्रवास और रिफ्यूजी समस्या, पर्यावरणीय परिवर्तन की चुनौती, जैव विविधता संरक्षण, मौलिक संसाधनों का संरक्षण, गरीबी की समस्या आदि अनेक ऐसे क्षेत्र और चुनौतियां हैं जिनकी संरक्षा पर अभी कोई गंभीर कदम ही नहीं उठाये गए हैं । केवल कुछ प्रारम्भिक कार्य ही शुरू हुए हैं।
क्या हैं इस विवरण के निहितार्थ ? कोविड ने वैश्विक चुनौतियों को एक ऐसी ऊंचाई दे दी है जो कि मानवता को खतरों के भॅवर जाल में डाल चुकी है । खतरे अपरिमित हैं । ऋण के संजाल में अर्थव्यवस्थाएं फ़ंस चुकी हैं। इसका प्रभाव तीन से पांच वर्षों में गंभीर रूप धारण कर लेगा। अल्पावधि में सर्वाधिक गंभीर पांच खतरों में पर्यावरणीय खतरे और चरम मौसम सम्मिलित हैं ।
इसके विपरीत, दीर्घावधि में सभी महत्वपूर्ण खतरे पर्यावरण से ही सम्बंधित होंगे और इन खतरों को रोक पाना संभव भी नहीं दिखाई देता क्योंकि विश्व जनमानस की क्षमता पर विश्व जनमत का विश्वास कम ही है। डिजिटल असमानता से भी जनमानस ग्रसित होगा क्योंकि लगभग 3 बिलियन लोगों को सूचना सम्प्रेषण और विश्लेषण की यह सुविधा प्राप्त ही नहीं है। आमजन साइबर असुरक्षा से दो-चार होंगे। इंग्लैंड में सन 2020 में 117 प्रतिशत आयतन (वॉल्यूम ) में और 43 प्रतिशत मूल्य (वैल्यू ) में इंटरनेट बैंकिंग फ्रॉड में वृद्धि दिखाई पड़ी ।
इंटरनेट के नए उपभोक्ता इस फ्रॉड से ज्यादा ग्रस्त होंगे। लम्बी अवधि में भू आर्थिक विवाद से हम सब ग्रसित होंगे। पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों से विश्व की जीडीपी में 4 से लेकर 18 प्रतिशत तक की कमी होने के आसार हैं। क्या ये मामूली कमी होगी? प्रवास बढ़ेगा और मौसम की चरम स्थिति उत्पन्न हो जाने के कारण सूखा, बाढ़ और आग लगने कि घटनाएँ बढ़ेंगी और सन 2050 तक लगभग 20 करोड़ लोगों को घर छोड़ना पड़ेगा। कोविड शुरू होने के पूर्व की तुलना में सन 2030 तक 51 मिलियन और लोग चरम गरीबी में शामिल हो जाने के लिए मजबूर होंगे। यदि इन खतरों से पार पाना है तो मानवता को इनसे लड़ने के लिए एक समन्वित प्रयास करना होगा ।
रिपोर्ट बताती है कि कोरोना के कारण विश्व अर्थव्यवस्था में सन 2024 तक 2.3 प्रतिशत का सिकुड़ाव होगा। बढ़ती हुई कीमतें और ऋण का बोझ, श्रमिक बाजार सम्बन्धी असंतुलन, संरक्षण वादी नीति के फैलाव की आशंका आदि से सरकारें दीर्घकालीन प्राथमिकताएं अपनाने में अपने को असमर्थ पाएंगी। पर्यावरणीय चुनौतियां इतनी विकराल हो चुकी हैं कि सन 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य पाना कठिन है। वातावरण सम्बन्धी नीतियों में कोई भी जल्दीबाजी में परिवर्तन का विपरीत असर होगा।
कार्बन उत्सजित करने वाले उद्योगों की समाप्ति से लाखों लोग बेरोजगार होंगे। साइबर सुरक्षा तार- तार हुई है। सन 2020 में मैलवेयर और रानसोमवायर वायरस के हमले में वृद्धि 358 प्रतिशत और 435 प्रतिशत हुई है और इसे नियंत्रित्र कर पाना हम सभी के लिए एक चुनौती हो गया है। सरकारों के बीच इससे सम्बंधित सहयोग न बना तो सरकारों में विवाद का यह एक महत्वपूर्ण कारण बनेगा। अत्यधिक सैटलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजे जाने से वहाँ इनके बीच दूरी के सामंजस्य की समस्या बढ़ती जाएगी ।
वैश्विक खतरे राजनैतिक सीमाओं की अनदेखी ही नहीं करते हैं वरन विश्व जनमत को चुनौती देते हैं। लिहाजा बसुधैव कुटुंबकम की भारतीय सोच से आगे बढ़ना होगा । किन्तु भारत भी क्या इन खतरों से सावधान है? शायद नहीं । क्या हम ‘सामाजिक एकजुटता अथवा सद्भाव की कमी’ नहीं झेल रहे हैं? क्या भारतीय समाज, धर्म और जाति के आधार पर विभाजित नहीं दिखाई देता है? कश्मीर फाइल्स ने क्या इस बिखराव को हवा नहीं दी है ? नौजवानों के सामने क्या आजीविका प्राप्त करना आज सबसे बड़ी चुनौती नहीं है ? क्या भारत का कर्ज, जीडीपी का नब्बे प्रतिशत तक नहीं हो गया है? सत्य तो ये है कि इन सभी प्रश्नों के उत्तर हां में ही हैं और सरकार अपने राजकोषीय लक्ष्यों का भलीभांति संधान नहीं कर पा रही है।
चीन और पाकिस्तान से भारत का बढ़ता विवाद क्या भू-राजनैतिक और भू -आर्थिक विवाद का एक जीता जागता सबूत नहीं है। रूस और यूक्रेन के मध्य जंग भी तो यही बताता है। क्या भारत में साइबर सुरक्षा एक जटिल समस्या नहीं हो गई है? क्या मौसम परिवर्तन की मार हम नहीं झेल रहे हैं? क्या सुनामी का कहर हमने नहीं झेला था ?
क्या केदारनाथ क्षेत्र में ग्लेशियर पिघलने और बादल फटने की घटनायें हमें आक्रांत नहीं करतीं? क्या ओवरसीज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट का ये आकलन कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में सन 2100 तक प्रतिवर्ष जीडीपी में 3 से 10 प्रतिशत की कमी होगी -एक गंभीर चुनौती नहीं खड़ा करता। सच तो ये है कि हम भी सभी वैश्विक खतरों से आक्रांत हैं और शुतुरमुर्ग बन जाने से खतरों की आँधी नहीं रुक जाएगी ।
(लेखक, विमल शंकर सिंह, डीएवीपीजी कॉलेज, वाराणसी के अर्थशात्र विभाग के विभागाध्यक्ष थे।)