चेन्नई (गणतंत्र भारत के लिए सुंदर ) : तमिलनाडु में राज्यपाल आर.एन रवि और मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है। राज्यपाल एक के बाद ऐसे बयान दे रहे हैं जो तरह-तरह के विवादों को जन्म दे रहे हैं। मामला कभी द्रविड़ बनाम आर्य राजनीति, कभी तमिलनाडु के नाम तो कभी राज्य के एंबेलम की जगह केंद्र सरकार के एंबेलम के इस्तेमाल में उलझ जाता है। राज्यपाल और सरकार के बीच तमिल पहचान को लेकर छिड़ी इस जंग ने भारतीय राजनीति में एक नए मोर्चे को खोल दिया है।
सवाल ये है कि राज्य़पाल आर. एन रवि ऐसा कर क्यों रहे हैं ? इसके पीछे की रणनीति क्या है और क्या राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के कंधे का इस्तेमाल भारतीय जनता पार्टी राज्य में अपनी जमीन तैयार करने के लिए तो नहीं कर रही है?
क्या है विवाद ?
राज्यपाल आर. एन. रवि ने पोंगल पर्व के लिए तैयार निमंत्रण पत्र में खुद के लिए तमिझागा के राज्यपाल पदनाम का इस्तेमाल किया। आमतौर पर वहां इसकी जगह तमिझनाडु आलुनार शब्द का चलन है। राज्यपाल लगातार तमिलनाडु का नाम बदलकर तमिझगम करने की वकालत करते रहे हैं। उनका तर्क है कि नाडु शब्द का अर्थ ‘राष्ट्र’ से है जो अलगाववाद की ओर इशारा करता है। बीते मंगलवार को राज्यपाल ने पोंगल के लिए छपे निमंत्रण पत्र पर ख़ुद के लिए ‘तमिझागा के राज्यपाल’ शब्द का इस्तेमाल किया। राज्यपाल, इन दिनों लगातार, तमिलनाडु, तमिल, द्रविड़ विचारधार, द्रविड़ आंदोलन और सनातन संस्कृति को लेकर ऐसे बयान देते रहे हैं जिससे कोई न कोई विवाद पैदा हो रहा है।
राज्यपाल के इस कदमों से राज्य सरकार आगबबूला हो उठी। डीएमके और उसके सहयोगी दलों ने राज्यपाल के ऐसे कदमों की आलोचना की है।
दरअसल, विवाद की शुरुवात पिछले दिनों तमिलनाडु राजभवन में आयोजित एक कार्यक्रम से हुई। कार्यक्रम काशी तमिल संगमम के आयोजकों को सम्मानित करने के लिए किया गया था। कार्यक्रम में काशी तमिल संगमम के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं की तारीफ़ करते हुए राज्यपाल आर.एन. रवि ने कहा कि. काशी तमिल संगमम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिमाग़ की उपज था।
उन्होंने कहा कि, तमिलनाडु में राजनीतिक हालात आजकल कुछ ऐसे हैं कि जहां भी मौका मिलता है वे कहते हैं कि वे द्रविड़ हैं। लेकिन पूरे भारत में अगर तमिलों को लेकर कोई कार्यक्रम या प्रोजेक्ट हो तो तमिलनाडु इसका विरोध करता दिखता है। दरअसल तमिलनाडु कहने से ज़्यादा उपयुक्त तमिझगम कहना है। ये राज्य ब्रिटिश शासन के दौरान गठित हुआ था। तमिझगम भारत का हिस्सा है। तमिझगम भारत की पहचान है। भारत अगले 25 साल में पूरी दुनिया का नेतृत्व करेगा।
राज्यपाल ऐसा कर क्यों रहे हैं ?
तमिलनाडु के राजनीति की नब्ज को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार नारायण वी. के अनुसार, राज्यपाल जो कुछ भी कर या बोल रहे हैं वो एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। 2014 के बाद से बीजेपी लगातार दक्षिण के उन राज्यों में अपना बेस मजबूत करने की कशिश कर रही है जहां वो हमेशा हाशिए पर रही। इसी क्रम में अन्नाद्रमुक नेता जयललिता की मौत के बाद उसकी कोशिश कमजोर पड़ रहे एआईएडीएमके की जगह खुद को स्थापित करने की है। वो विशुद्ध हिंदी प्रदेशों की पार्टी की अपनी छवि से भी उबरना चाहती है।
नारायण बताते हैं कि, जयललिता की मौत के बाद बीजेपी ने कई लोकप्रिय तमिल सिने स्टारों के साथ पेंग बढ़ाया। लेकिन बात वोटों में तब्दील नहीं हो सकी तो उसने अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में काशी-तमिल संगमम जैसे महीने भर तक चलने वाले कार्यक्रम चलाए। इस दौरान केंद्र सरकार ने तमिल संस्कृति और भाषा से संबंधित कई समारोहों के आयोजन की घोषणा भी की।
नारायण पूछते हैं कि आखिर इस सबका मकसद क्या है? तमिल जनमानस के बीच बीजेपी की हिंदी भाषी छवि के बाहर निकलने की कोशिश। वे बताते हैं कि इसी कोशिश का एक हिस्सा कुछ दिनों पहले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का अपनी पार्टी के सोशल मीडिया देखने वाले लोगों से वो आग्रह था जिसमें उन्होंने ये सुनिश्चित करने को कहा था कि, तमिलनाडु में सारे संवाद सिर्फ तमिल और अंग्रेजी में ही किए जाएं।
नारायण बताते हैं कि बीजेपी ने अपनी सवर्ण पहचान से मुक्ति के लिए भी राज्य में कुछ कदम उठाए है जैसे कि उसने छोटे और पिछड़े वर्ग के वानियार समुदाय के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश की।
राज्यपाल की विवादित छवि
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक वरिष्ठ नेता राज्यपाल आर.एन रवि की विवादित छवि से खासे रुष्ट हैं। उनका कहना है कि, नागालैंड के राज्यपाल के पद पर काम करते हुए भी रवि ने ऐसे कई विवादित काम किए थे जिससे राजभवन और सरकार के बीच दूरियां पैदा हो गई थीं जबकि बीजपी वहां खुद सरकार का हिस्सा थी। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को विवाद का केंद्र नहीं बनना चाहिए।