नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : सरकार के तमाम दावों और कोशिशों के बावजूद देश में नकली और घटिया दवाओं (Spurious and sub standard drugs) पर लगाम नहीं लग पा रही है। इसका सबूत केंद्र और राज्य सरकारों की एजेंसियों का पिछले वित्त वर्ष के दौरान रिकॉर्ड संख्या में कई कंपनियों की दवाओं को बाजार से हटवाना है। इस दौरान विभिन्न दवाओं के 1394 बैच बाजार से हटाने का आदेश दवा कंपनियों (Pharma companies) को दिया गया। इससे पिछले साल यह संख्या 1171 थी। यानी एक साल के दौरान इसमें 19 प्रतिशत की बढ़ोतरी हई।
सैंपल फेल होने की रफ्तार बढ़ी
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, 2019-20 से 2023-24 के दौरान दवाओं के 5759 बैचों को बाजार से हटाने के आदेश दिए गए। मंत्रालय का यह भी कहना है कि 2022-23 के दौरान दवाओं के 96713 सैंपल्स की जांच की गई और इनमें से 3053 सैंपल्स फेल हो गए। इन सैंपल्स की दवाएं या तो घटिया और नकली थी या फिर इनमें मिलावट पाई गई।
पुराना है धंधा
गौरतलब है कि घटिया या नकली दवाओं का धंधा भारत में नया नहीं है। सरकार की तमाम कोशिशों और अभियानों के बावजूद इस पर पूरी तरह लगाम नहीं लग पा रही है। इसकी वजह जरूरी स्टाफ और लैब्स की कमी के साथ ही सरकारी मशीनरी का भ्रष्टाचार भी है। इसके कारण देश में हर रोज बड़ी संख्या में मरीजों की जान खतरे में पड़ रही है। सरकार ने नकली और घटिया दवाओं की जांच के लिए मोबाइल टेस्टिंग लैब्स चलाने का भी फैसला किया था, लेकिन गुजरात के अलावा और किसी अन्य राज्य ने इस मामले में खास रुचि नहीं ली।
देश की साख पर भी बट्टा
घटिया दवाओं के कारण भारत की साख पर कई बार बट्टा लग चुका है। अमेरिका और यूरोप में देश की कुछ नामी कंपनियों की दवाओं के घटिया होने और उनमें अपशिष्ट पाए जाने पर इन कंपनियों पर बैन लगा दिया गया था। आयुष (Ayush) की कई दवाओं में भी खतरनाक तत्व और हेवी मेटल्स पाए जाने पर उन पर प्रतिबंध लगाया गया था। एक भारतीय कफ सीरप (Cough syrup) के सेवन के बाद कुछ अफ्रीकी देशों में बच्चों की मौत से काफी विवाद पैदा हुआ था। इससे भारत की छवि तो खराब ही हुई थी, विदेशी मुद्रा की कमाई पर भी असर पड़ा था। इन प्रतिबंधों को केंद्र सरकार के दखल के बाद बड़ी मुश्किल से हटाया जा सका था।
मौत की सजा की हुई थी सिफारिश
2011-12 में हुए एक सर्वे से पता चला था कि तब गुजरात में सबसे ज्यादा नकली और घटिया दवाएं बिक रही थीं। विशेषज्ञों का कहना है कि तब से देश में नकली और घटिया दवाओं का प्रसार कम तो हुआ है, लेकिन इस पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए और इस काम में लगे लोगों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। माशेलकर कमेटी ने नकली दवाओं का धंधा करने वालों को मौत की सजा (Capital punishment) देने की सिफारिश की थी, लेकिन वह सिफारिशें अब भी धूल खा रही हैं।
फोटो सौजन्य़- सोशल मीडिय़ा