नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) : भारत में पिछले छह महीनों में सुल्ली डील्स और बुलीबाई ऐप जैसे सोशल मीडिया के माध्यमों से मुस्लिम महिलाओं के बारे में आपत्तिजनक सामग्री को अपलोड करने की घटनाएं सामने आई हैं। बुलीबाई ऐप मामले में विशाल झा (21 वर्ष), नीरज बिश्नोई (20 वर्ष) मयंक रावत ( 21 वर्ष), श्वेता सिंह (18 वर्ष) को गिरफ्तार किया गया जबकि ओंकारेशवर ठाकुर (26 वर्ष) को इंदौर से सुल्ली डील्स मामले में गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ के बाद जो जानकारियां मिल रही हैं वे बेहद चौकानें वाली हैं। इन जानकारियों से एक बात और साफ हो रही है कि पुलिस भले ही इन्हें मास्टरमाइंट बताए लेकिन नफरत की इस फैक्ट्री के असली ठेकेदार कोई और हैं। मुमकिन है ये सभी आरोपी पैसों के लिए इस तरह के काम करते हों और पैसे उन्हें कहां से मिलते हैं, ये जांच का विषय होना चाहिए। ऐसा भी अंदेशा है कि ये दोनों ही ऐप तैयार करने वाले आपस में एक-दूसरे को जानते थे और ये उनकी मिलीभगत से ही चल रहा था।
आभासी दुनिया के नायक
उत्तराखंड से गिरफ्तार श्वेता सिंह की उम्र केवल 18 साल है। मां-बाप हैं नहीं। चार भाई-बहन हैं। खर्च के लिए उसके परिवार को 10000 रुपए की सहायता उस फैक्ट्री से मिलती थी जहां उसके पिता काम किया करते थे। सोशल मीडिया पर उसकी पोस्ट को देखने से पता चलता है कि वो इस्लाम के खिलाफ जहर उगलने वाली ही होती थीं। आमतौर पर इस उम्र में वैचारिक परिपक्वता की अपेक्षा नहीं की जा सकती और इसका फायदा उठाने वाला वाला एक बहुत बड़ा वर्ग समाज में इस समय अति सक्रिय है।
पुलिस का दावा है कि, बुली बाई ऐप का मास्टरमाइंड नीरज बिश्नोई काफी चालाक और मानसिक रूप से काफी मजबूत है। 21 साल का नीरज बीटेक का छात्र है। नीरज खुद को राक्षसों का संहारक मानता है। पुलिस के अनुसार नीरज ने उन्हें खुद की पहचान जिऊ के रूप में बताई। जिऊ तोमिओका एक जापानी कॉमिक बुक का हीरो है जो राक्षसों की हत्या करता है। वह डिमॉन स्लेयर नामक एनिमेटेड सीरीज का भी हीरो है। नीरज इस काल्पनिक हीरो से इतना प्रभावित है कि उसने ट्विटर पर इसी नाम से पांच हैंडल बना रखे हैं- जो @giyu2002, @giyu007, @giyuu84, @giyu94 and @guyi44 हैं। नीरज इन्हीं ट्विटर हैंडल से बुली बाई ऐप का प्रमोशन भी किया करता था।
पुलिस का दावा है कि नीरज से पूछताछ में ही सुल्ली डील्स मानले के मुख्य आरोपी ओंकारेशवर ठाकुर के बारे में सुराग मिला और मध्यप्रदेश के इंदौर से उसकी गिरफ्तारी संभव हो सकी। ओंकारेश्वर ने गिटहब प्लेटफॉर्म पर सुल्ली डील्स नामक ऐप को जुलाई 2021 में बनाया था। इस मामले में दिल्ली और नोएडा में दो एफआईआर दर्ज की गई थीं। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की इंटेलीजेंस फ्यूज़न और स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस यूनिट के उपायुक्त केपीएस मल्होत्रा के अनुसार, ठाकुर ने 2020 में ट्विटर पर ट्रैडमहासभा नाम के एक ग्रुप को गैंगेसियन नाम के ट्विटर हैंडल का इस्तेमाल करते हुए ज्वाइन किया था। सोशल मीडिया पर इसकी हरकतें ट्रोलिंग और मुस्लिम महिलाओं के बारे मे आपत्तिजनक सामग्री को पोस्ट करने की होती थी। सुल्ली डील्स के खिलाफ मामला दर्ज हुआ तो वो अपने अकाउंट को डिलीट करके गायब हो गया।
इन चेहरों के पीछे कौन
नीरज, श्वेता और ओंकारेश्वर जैसी ही हरकतें विशाल झा और मयंक रावत की भी रही हैं। गिरफ्तार सभी आरोपी मध्य वर्ग या निम्न मध्य वर्ग की पृष्ठभूमि से आते हैं। सभी मुसलमानों, मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ ट्रोल करने, नफऱती और भड़काऊ पोस्ट का काम करते थे। इनका काम करने का तरीका भी कमोवेश एक जैसा ही था। अब तो ऐसा भी जाहिर हो रहा है कि ये सब आपस में एक दूसरे को जानते थे और सुल्ली डील्स को समेटने के बाद इन्होंने उसी तर्ज पर बुलीबाई ऐप को तैयार किया। यानी ये एक व्यक्ति का मामला नहीं है बल्कि ये पूरा गिरोह है। जांच का विषय ये हैं कि इनके पीछे कौन लोग या संगठन है जो इनकी आड़ में सामाजिक नफरत फैलाले और मुसलमान औरतों के खिलाफ गंदगी परोसने का काम करते हैं।
गौतम बुद्ध युनिवर्सिटी, नोएडा के मनोविज्ञान और मानसिक स्वास्थ्य विभाग में कंसल्टेंट डॉ. शिवानी पांडे के अनुसार, इस उम्र में किसी से वैचारिक परिपक्वता की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। ये आभासी दुनिया की उम्र होती है। इस उम्र में जुनूनी फितरत होती है। कोई बात दिमाग में घुसा दी जाए तो ये उसके अच्छे स्प्रेडर बन सकते हैं। रिमोट कहीं और होता है। इस उम्र में विवेक और अच्छे बुरे का ज्ञान बहुत कम लोगों में होता है। जांच के बाद ही असली कहानी पता चलेगी।
समाजविज्ञानी पी. कुमार कहते हैं कि, आईएसआई का काम करने का तरीका क्या था। बच्चों को बरगलाओ, उन्हें ढाल बनाओ, उन्हें नफऱती उम्नाद फैलाने के काम में लगाओ। ये तो उन्हीं का तरीका है। इस मामले को हल्के में लेना ठीक नहीं है। इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए और सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए। लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है इनके पीछे के असली लोगों तक पहुंच। असली गंदगी और नफरत के कारोबारी तो वे ही लोग हैं।
प्रोफेसर कुमार बताते हैं कि, देश में इस समय, सोशल मीडिया पर जिस तरह का फेक और नफरती कंटेंट परोसा जा रहा है उससे जाहिर होता है कि ये तो सिर्फ चेहरे हैं रिमोट किसी और के हाथ में है। ये बात सिर्फ मुसलमानों तक सीमित नहीं रहने वाली। आज वे निशाने पर हैं कल जाति, क्षेत्र, भाषा तमाम बातों को लेकर विवाद खड़ा करने की कोशिश होगी। ये बातें हमारे देश के लिए घातक हैं।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया