नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क) : भारत सरकार के आंकड़ों की विश्वसनीयता पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं। ताजा मामला विश्व स्वास्थ्य संगठन के उन आंकड़ों का है जिसमें कोरोना से भारत में हुई मौतों का आंकलन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बारे में जो रिपोर्ट तैयार की है उसके मुताबिक दुनिया भर में अब तक करीब डेढ़ करोड़ लोगों की कोराना महामारी के कारण मौत हुई है। इन आंकड़ों में भारत में हुई मौतों की संख्या 40 लाख बताई गई है जो भारत सरकार के अधिकृत आंकड़ों से करीब आठ गुना ज्यादा है। भारत सरकार का दावा है कि कोरोना से देश में अब तक करीब सवा पांच लाख लोगों की मौत हुई है।
भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट पर आपत्ति जताई है। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस बारे में एक खबर प्रकाशित की है जिसमें दावा किया गया है कि भारत इन आंकड़ों को सार्वजनिक करने के विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रयासों में रुकावट डाल रहा है।
भारत को क्यों है आपत्ति ?
भारत ने देश में कोविड-19 मृत्यु दर का आकलन करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की पद्धति पर सवाल खड़े किए हैं। भारत का कहना है कि, इस तरह के गणितीय मॉडल का इस्तेमाल इतने विशाल भौगोलिक आकार और जनसंख्या वाले देश में मृत्यु के आंकड़ों का अनुमान लगाने में नहीं किया जा सकता। अमेरिकी अखबार न्य़ूयॉर्क टाइम्स में 16 अप्रैल को रिपोर्ट छपने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा कि, भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अपनाई जाने वाली पद्धति पर कई बार अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में लगभग 40 लाख मौतों का अनुमान लगाया है जो स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों की तुलना में लगभग आठ गुना अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, भारत की आपत्तियों के कारण चौंका देने वाला अनुमान जारी करने में महीनों की देरी हुई है, जो इस गणना पर विवाद खड़ा करता है कि वहां कितने लोगों की कोरोना से मौत हुई और उसने इसे सार्वजनिक होने से रोकने की कोशिश की।
भारतीय आंकड़ों की विश्वस्नीयता पर सवाल क्यों?
ऐसा नहीं है कि भारत सरकार के आंकड़ों पर संदेह पहली बार जताया गया है। कोरोना काल में भारत में कोरोना के मरीजों और मृत्यु के आंकड़ों पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी तंज कसा था। ट्रंप ने व्हाइट हाउस में पत्रकारो के सवालो के जवाब में कहा था भारत के आंकड़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। विदेश के अलावा, देश के अंदर सरकारी आंकड़ों को लेकर भी भरोसे की बेहद कमी है। इसके कई कारण भी है। सरकार के आंकड़े खुद में ही कई बार विरोधाभासी साबित हुए हैं। समाजविज्ञानी सुनील देशपांडे के अनुसार, देश की संसद में अगर सरकार ये बयान दे कि कोरोना काल में देश में एक भी व्यक्ति की मृत्य ऑक्सीजन की कमी के कारण नहीं हुई है तो ऐसे आंकड़ो पर विदेश का क्या देश में ही कौन भरोसा करेगा। गरीबी रेखा के पैमाने से लेकर उससे जुड़ी कई परिभाषाओं को भी आंकड़ों की बाजीगरी के लिहाज से बदल दिया जाता है। देशपांड ने भारतीय मीडिया की भूमिका पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि पूरे देश ने देखा क्या हुआ था, कैसे लाशें उतरा रही थीं। लोगों को मरने के लिए उनके हाल पर छोड़ दिया गया था लेकिन उनके लिए प्रश्न ये नहीं था। उन्हें सरकारी विज्ञापन चाहिए थे और सरकार का भोंपा बजाना था। ये निराशानजक था।
राहुल गांधी ने भी सरकार को घेरा
इस बीच, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने, राहुल ने ट्विटर पर ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की रिपोर्ट का ‘स्क्रीनशॉट’ (तस्वीर) साझा किया, जिसमें दावा किया गया है कि भारत दुनिया भर में कोविड से हुई मौत के आंकड़े सार्वजनिक करने के विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के प्रयासों में बाधा डाल रहा है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने ट्वीट में कहा कि, मोदी जी न सच बोलते हैं, न बोलने देते हैं. वो तो अब भी झूठ बोलते हैं कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा। राहुल ने कहा कि, मैंने पहले भी कहा था कि, कोविड के दौरान सरकार की लापरवाही के कारण पांच लाख नहीं, बल्कि 40 लाख भारतीयों की मौत हुई है।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया