नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र): भारत सरकार ने फ्रीडम हाउस की तरफ से जारी रिपोर्ट में भारत के बारे में जो कुछ भी निष्कर्ष प्रकाशित किए गए हैं उसे भ्रामक बताते हुए खारिज कर दिया है। सरकार की तरफ से जारी एक बयान में स्पष्ट किया गया है कि भारत में शासन एक संघीय व्यवस्था के तहत चलाय़ा जाता है। राज्यों में अलग-अलग पार्टियां शासन करती है। ये पार्टियां चुनावी प्रक्रिया के तहत चुन कर आती हैं, जिसे एक स्वतंत्र और निष्पक्ष आयोग संपन्न कराता है। ये सब एक जीवंत लोकतंत्र का उदाहरण हैं।
सरकार की तरफ से जारी विज्ञप्ति में सिलसिलेवार 7 बिंदुओं में फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में उठाए गए सवालों के जवाब दिए गए।
भारत में मुस्लिमों के खिलाफ पक्षपात: बयान में कहा गया है कि संविधान के मुताबिक, भारत सरकार देश के सभी नागरिकों को समान मानती है और सभी नियम-कानून बिना किसी भेदभाव के देश के हर नागरिक पर लागू होते हैं। दिल्ली दंगों में प्रशासनिक मशीनरी ने तेजी के साथ बिना किसी पक्षपात के काम किया।
राजद्रोह कानून : विज्ञप्ति में कहा गया कि पब्लिक ऑर्डर और पुलिस दोनों ही राज्य सरकार के विषय क्षेत्र हैं। नियम-कानून को बनाए रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।
प्रवासियों का पलायन : विज्ञप्ति के अनुसार लॉकडाउन का फैसला केंद्र और राज्य के स्तर पर लिया गया। एक राज्य से दूसरे राज्य में अगर भारी संख्या में लोग आते-जाते तो संक्रमण फैलता। लोगों को लॉकडाउन की वजह से परेशानी न हो इसलिए सरकार ने कई अहम कदम उठाए।
मानवाधिकार की रक्षा के लिए नियम : विज्ञप्ति मेंकहा गया है कि भारत के संविधान में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कई नियम-कानून हैं। मानवाधिकार संरक्षण कानून 1993 भी उनमें से एक है। इस कानून के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोगों का गठन किय़ा गया है। यहां मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़ी शिकायतों के निवारण के लिए काम किया जाता है।
मीडिया पर दबाव नहीं : विज्ञप्ति में लिखा गया है कि भारत के संविधान में अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की आजादी है। भारत सरकार पत्रकारों सहित देश के सभी निवासियों की सुरक्षा को सबसे अधिक अहमियत देती है। भारत सरकार ने पत्रकारों की सुरक्षा पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए एक एडवाइज़री जारी की है।
इंटरनेट सेवाओं पर रोक : इंटरनेट समेत दूरसंचार सेवाओं पर रोक, टेम्परेरी सस्पेंशन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज (पब्लिक इमरजेंसी या पब्लिक सेफ्टी) रूल्स, 2017 के प्रावधानों के तहत होती हैं जिसके लिए भारत सरकार के गृह मंत्रालय के सचिव की मंजूरी की जरूरत पड़ती है। कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कुछ समय के लिए इंटरनेट सेवाओँ को निलंबित किया जा सकता है।
एमनेस्ट्री इंटरनेशनल के बारे में स्पष्टीकरण : एमनेस्टी इंटरनेशनल को एफसीआरए अधिनियम के तहत केवल एक बार 20 साल पहले अनुमति मिली थी। उसके बाद से उसे भारत की सरकारों से कोई मंजूरी नहीं मिली। एमनेस्टी को बिना गृह मंत्रालय की अनुमति के विदेश से पैसा भेजा गया जो नियमों के विरुद्ध था।
क्या था फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में ?
अमेरिकी शोध संस्थान फ्रीडम हाउस ने भारत में अधिकारों और आजादी जैसे विषयों को लेकर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए भारत को आंशिक रूप से स्वतंत्र देशों की श्रेणी में रख दिया था। पूर्ण स्वतंत्र देशों के लिए निर्धारित 100 अंकों में से भारत के अंक घटकर 67 हो गए हैं। पहले ये अंक 71 थे। 211 देशों की इस सूची में अब भारत का स्थान 88 हो गया है पहले ये 83 था। संस्थान की ताजा रिपोर्ट में इसके लिए विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को कठघरे में खड़ा किया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही देश में राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता में कमी आई है। संस्था का आंकलन है कि भारत में मानवाधिकार संगठनों पर दबाव बढ़ा है। बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को डराने और उनके खिलाफ मामले दर्ज कर उन पर दबाव बनाने का चलन बढ़ा है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारत में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते हुए कई घटनाएं हुईं हैं। फ्रीडम हाउस एक अमेरिकी शोध संस्थान है जो हर साल ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड’ रिपोर्ट जारी करता है। इस रिपोर्ट में दुनिया के अलग-अलग देशों में राजनीतिक आजादी और नागरिक अधिकारों के स्तर की समीक्षा की जाती है।
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