नई दिल्ली, (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : न्यायिक सुधार कानून पर पिछले करीब 37 हफ्तों से इस्राइल में बवाल जारी है। सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों पर अंकुश लगाने वाले इस कानून को दी गई चुनौती पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई शुरू हुई। देश के इतिहास में ये पहला मौका है जब सुप्रीम कोर्ट के सभी 15 जजों ने इस मामले की सुनवाई की। इस कानून को देश की शीर्ष अदालत में इस्राइल के विपक्षी दलों ने चुनौती दी है। इस कानून ने इस्राइल को विभाजित करके रख दिया है। जहां एक ओर देश की बड़ी आबादी इस कानून का विरोध कर रही है, वहीं ऐसे लोग भी बड़ी तादाद में हैं जो इसे जरूरी मानते हैं। दोनों ही पक्षों की ओर से प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। बच्चे, बूढ़े तक सड़कों पर उतर रहे हैं।
इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की पहल पर बने इस कानून के मुताबिक, 120 सदस्यों वाली संसद, 61 सासंदों के बहुमत से सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसले को पलट सकती है। इस कानून में शीर्ष अदालत में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को भी बदला गया है। अब इनकी नियुक्ति में राजनेताओं का भी दखल होगा। अब देखना ये है कि इस कानून को दी गई चुनौती पर सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला लेता है और इस पर सरकार का क्या रुख होगा। जब प्रधानमंत्री नेतन्याहू से ये पूछा गया कि अगर सुप्रीम कोर्ट इस कानून को खारिज कर देता है, तो सरकार का रुख क्या होगा, उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया। दूसरी ओर, उनके कानून मंत्री यारिव लेविन ने कहा कि कोर्ट को इस मामले की सुनावाई का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने ये भी संकेत दिया कि सरकार अदालत के फैसले की अनदेखी कर सकती है। माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे नेतन्याहू अपनी सरकार को बचाने के लिए ये कानून लेकर आए हैं। पिछले साल ही उनकी सत्ता में वापसी हुई थी।
रुढ़िवादी और कट्टरपंथी लोग और पार्टियां जहां सरकार के पक्ष में हैं, वहीं देश का प्रगतिवादी और लोकतंत्र समर्थक वर्ग सरकार के इस कानून के खिलाफ है। इस कानून के लिए लाए गए बिल का मसौदा इस साल जनवरी में सामने आया था और जुलाई में इसे संसद ने पास कर दिया। बिल के पक्ष में 64 वोट पड़े और विपक्ष में इस पर हुए मतदान का बहिष्कार कर दिया। जनवरी से ही देश की बड़ी आबादी इस बिल के खिलाफ इस्राइल की सड़कों पर प्रदर्शन कर रही है। देश के लोकतंत्र समर्थक और प्रगतिवादी सोच वाले लोग इसके सख्त खिलाफ हैं। उनका कहना है कि न्यायिक सुधार कानून सरकार को बेलगाम कर देगा। गौरतलब है कि इस्राइल में लिखित संविधान नहीं है और वहां सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का बहुत महत्व होता है। इस कानून के विरोधियों का कहना है कि इससे देश की जनता के अधिकारों का हनन होगा और सरकार मनमानी करेगी। वह कोई भी जनविरोधी फैसला कर सकती है, मनमाने तरीके से कानून बना सकती है।
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