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जय-अनुसंधान : पराजय की एक और पटकथा की नई इबारत तो नहीं ?

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नई दिल्ली, 15 अगस्त ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) : देश ने अपनी आजादी के 75 साल पूरे कर लिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर देश को संबोधित करते हुए तमाम घोषणाएं कीं, संकल्पों का जिक्र किया और पंच प्रणों यानी पांच प्रणों को गिनाते हुए भ्रष्टाचार उम्मूलन से लेकर राजनीति में परिवारवाद के खात्मे तक तमाम प्रतिबद्धताएं बताईं।

स्वतंत्रता दिवस पर देश के प्रधानमंत्री का भाषण देश के सम्मुख मौजूदा चुनौतियों, सरकार के दृष्टिकोण और प्रतिबद्धताओं का खाका पेश करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ऐसा ही कुछ किया। प्रधानमंत्री के इस भाषण का सबसे खास पहलू रहा इस मौके पर उनकी तरफ से एक नया नारा- जय जवान, जय विज्ञान और जय अनुसंधान। ऐसे नारे सरकार के संकल्प और प्रतिबद्धताओं का प्रतिबिंब माने जाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान-जय किसान का नारा दिया था। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी ने इसमें जय विज्ञान जोड़ दिया। अब नरेंद्र मोदी ने इसमें से जय़ किसान को हटाकर जय अनुसंधान को जोडा है।

गणतंत्र भारत इस आलेख में प्रधानमंत्री के भाषण के सिर्फ इसी पक्ष की पड़ताल करेगा और ये समझने और समझाने का प्रयास करेगा कि प्रधानमंत्री के इस नारे में जोड़े गए शब्द –जय़-अनुसंधान को लेकर उनकी सरकार का अब तक नजरिया क्या रहा है और उनकी इस प्रतिबद्धता को कितनी गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है।

अनुसंधान की जय या पराजय ?                                           

आंकडों को देखा जाए तो जाहिर होता है कि, भारत में सरकार कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का कुल 0.7 प्रतिशत पैसा रिसर्च और डवलपमेंट के काम पर खर्च करती है। जबकि, जापान में जीडीपी का 3.4 प्रतिशत, अमेरिका में 2.7 प्रतिशत और चीन में जीडीपी का 2 प्रतिशत पैसा रिसर्च और डवलपमेंट के काम पर खर्च होता है।

साल 2022- 2023 का आम बजट कुल 39, 44, 908 करोड़ रुपयों का था जिसमें से वैज्ञानिक शोध का काम संभालने वाले विज्ञान एव तकनीकी मंत्रालय को इस बजट का  कुल 0.3 प्रतिशत पैसा आवंटित किया गय़ा। मंत्रालय को कुल 14217 करोड़ रुपयों का आवंटन किया गया जो पिछले वित्त वर्ष में दिए गए पैसों से भी 3.9 प्रतिशत कम था।

दिलचस्प तथ्य ये है कि, विज्ञान और तकनीकी विभाग के बजट में कमी कर दी गई और इनोवेशन और तकनीकी विकास के लिए आवंटित धनराशि को पिछले वित्त वर्ष (2021-22) के 951 करोड़ रुपयों के मुकाबले 2022- 23 के वित्त वर्ष में घटाकर 812 करोड़ रुपए कर दिया गय़ा।

विज्ञान और तकनीकी विभाग का स्वतंत्र प्रभार संभालने वाले राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह का दावा था कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत अगले दशक की तरफ बहुत उम्मीदों से देख रहा है जिसकी खासिय़त विशेष तौर पर दो बातों पर निर्भर करेगी – अर्थव्यवस्था- विज्ञान और तकनीक – इनोवेशन।

विज्ञान, तकनीक और इनोवेशन पर फोकस होने की बात भले ही मंत्री जी ने की हो लेकिन आपको बताते चलें कि इसी बजट में देश के प्रतिष्ठित शोध एवं विकास संस्थानों और इनोवेशन के काम में जुटी लैबोरेटरीज़ की फंडिंग को कम कर दिया गया। इन लैबोरेटरीज़ में जीनोम सीक्वेंसिंग और डीएनए और नेज़ल वैक्सीन जैसी चुनौतियों के किफायती समाधानों पर काम किया जा रहा था। इनके बजट में 576 करोड़ रुपयों की कमी कर दी गई। साल 2021-22 में 14793 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया था लेकिन 2022-23 में इसे घटाकर 14217 करोड़ रुपए कर दिया गया।

यही नहीं, विज्ञान और तकनीकी मंत्रालय के अधीन आने वाले देश के तीन प्रमुख वैज्ञानिक संस्थानों- जैव तकनीक विभाग, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक शोध विभाग और विज्ञान एवं तकनीकी विभाग के बजट में भी कमी कर दी गई। डीएनए वैक्सीन और नेजल वैक्सीन पर काम करने वाले जैव तकनीक विभाग के बजट में सबसे ज्यादा 921 करोड़ रुपयों की कमी की गई। जैव तकनीक विभाग के शोध एवं विकास बजट को 1660 करोड़ रुपयों से घटा कर 1315 करोड़ रुपए कर दिया गया।

इसी तरह से, विज्ञान और तकनीकी विभाग के विज्ञान और इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड के बजट के 100 करोड़ रुपए कम कर दिए गए। ये बोर्ड इस क्षेत्र की विभिन्न परियोजनाओं पर शोध एवं उनके विकास में सहायता देने का काम करता है। बोर्ड तमाम नए क्षेत्रों में 35 वर्ष से कम आयु वाले युवा वैज्ञानिकों के शोध पर फोकस करते हुए उन्हें प्रोत्साहित करने का काम भी करता है।

पिछले बजट के प्रावधानों से तुलना क्यों ?

सवाल उठ सकता है कि, अनुसंधान को लेकर पिछले बजट में राशि के आवंटन को कैसे आधार बनाया जा सकता है। सवाल लाजिमी है, लेकिन अगर पिछले वर्ष ही नहीं बल्कि उसके पहले के वर्षों में भी वैज्ञानिक शोध एवं विकास और शिक्षा जैसे क्षेत्रों को लेकर सरकार से जिस तरह की मदद की अपेक्षाएं थीं उसे पूरा न किया जा रहा हो तो सरकार की मंशा पर सवाल उठेगा ही और उठना भी चाहिए। सरकार ने शोध और विकास यानी अनुसंधान के क्षेत्र में जिस तरह से बजट में कटौती की उससे साफ जाहिर होता है कि सरकार की प्राथमिकताओं में अनुसंधान किस पायदान पर खड़ा है। वैसे भी सरकार शिक्षा के क्षेत्र में कुल बजट का केवल 2.6 प्रतिशत ही खर्च कर रही है जो भारत जैसे विकासशील देश की जरूरतों को देखते हुए बहुत ही कम है।

सिर्फ नारा बनकर न रह जाए

विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे समय में जबकि देश में मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत की बात की जा रही है भारत में शिक्षा के साथ वैज्ञानिक अनुसंधान को प्राथमिकता सूची में बहुत तरजीह देने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने जय जवान, जय विज्ञान और जय अनुसंधान की बात तो कर दी है लेकिन खतरा इस बात का है कि ये सिर्फ एक नारा बन कर ही सीमित न रह जाए जैसा कि पहले की उनकी घोषणाओं के साथ होता रहा है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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