रांची (गणतंत्र भारत के लिए रंजन) : धनबाद से 200 किलोमीटर उत्तर में सिंहभूम जिले के रइता मांझी लकड़ी के काम के अपनी छोटी से वर्कशॉप के बाहर बैठे हैं। वैसे तो काम का समय है लेकिन बिजली न होने से उनका काम ठप पड़ा है और दोनों कारीगर खाली बैठे हैं। ऐसा दिन में कई बार होता है। काम के बाद घर जाने पर हालात और खराब होते हैं। बिजली की आंखमिचैली से आराम करना दूभर हो जाता है। भयंकर गर्मी और ऊपर से दिन भर की थकान। सब मिलाकर हालात बेहद खराब हैं।
ऐसा ही कुछ हाल जमशेदपुर के पास के एक गांव में रहने वाले रमई का है। उनके खेत सूख रहे हैं और पीने के पानी के लिए उन्हें रोजाना खुद एक युद्ध लड़ना होता है। झारखंड के अधिकतर शहरों और गांवों में बिजली की कहानी कुछ ऐसी ही है।
तकलीफ की बात बात ये हैं कि पूरे देश में बिजली उत्पादन के लिए कोयले की आपूर्ति करने वाला झारखंड खुद इस हाल में है। भारत में 70 प्रतिशत बिजली घरों को कोयला झारखंड की खदानों से मिलता है।
बिना रुकावट बिजली की सप्लाई कई सालों से चुनावी वादे में शामिल है। हाल ही में हुए ग्राम पंचायतों के चुनाव में भी इसे लेकर खूब डंका बजा लेकिन स्थानीय लोग बताते हैं कि जमीन पर कोई काम होता नहीं दिखता।
बिजली की किल्लत क्यों
झारखंड के लोगों का कहना है कि उनके राज्य में बिजली की कमी होना अनुचित है आखिर उनके राज्य के कोयला भंडार से ही बड़े शहरों और देश के उद्योग जगत को बिजली मिल रही है। उनमें से बहुतो का कहना है कि, जिस जगह कभी मेरी जमीन थी वहां अब कोयले की खदान है और इसके बावजूद हमें 10 घंटे भी बिजली नहीं मिलती। वे ये भी कहते हैं कि हम कोयले की खान के कारण कई सालों से यहां प्रदूषण भी झेल रहे हैं लेकिन हमें कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
झारखंड भारत के गरीब राज्यों में है लेकिन 150 खदानों के साथ ये कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। भारत में पैदा होने वाली बिजली का करीब 70 फीसदी कोयला जला कर हासिल होता है।
झारखंड में बिजली वितरण का काम झारखंड स्टेट पावर डिस्र्ट्रीब्यूशन कंपनी जीबीबीएनएल देखती है। कंपनी का कहना है कि, राज्य में बिजली की कमी के कारण स्थानीय हैं। इसमें आंधी तूफान, पुरानी तारें और कंडक्टर शामिल हैं। उसका कहना है कि इन्हें अपग्रेड करने के लिए पैसा खर्च करने की जरूरत है। वे मानते हैं कि, इलाके में गर्मियों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त बिजली है। झारखंड को केंद्रीय, राज्य और निजी बिजली कंपनियों से करीब 2600 मेगावाट बिजली मिलती है। हालांकि उसका ये भी कहना है कि पिछले महीने मांग जब अपनी चरम पर पहुंच गई तो देश के दूसरे हिस्सों में भी इसी तरह की स्थिति आई थी।
केंद्र पर निर्भरता का खामियाजा
विशेषज्ञ मानते हैं कि केंद्र पर निर्भर होना ही राज्य में बिजली की कमी का कारण है। उनका कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर पैदा हुई बिजली मांग पूरा करने में नाकाम रही है। इसके पीछे कोयले की कमी भी कुछ हद तक वजह है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में औद्योगिक प्रदूषण के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार का कहना है कि, झारखंड ने दो दशकों में एक मेगावाट बिजली भी नहीं जोड़ी है और वो दूसरे राज्यों के थर्मल प्लांट से बिजली खरीद रहा है। उनकी प्राथमिकताएं अलग हैं।
समस्या से मुक्ति के लिए झारखंड की उम्मीदें कोयले से चलने वाले दो नए बिजली घरों पर टिकी हैं। इनमें से एक अगले छह महीने में काम शुरू कर देगा। हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि ये कदम अच्छा नहीं कहा जा सकता क्योंकि दुनिया के ज्यादातर देश अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ रहे हैं।
हरित ऊर्जा का विचार भी बेमानी
हरित ऊर्जा मॉडल की तरफ जाने की कवायद सामाजिक रूप से भारत के ज्यादातर उन हिस्सों में अभी थोड़ी दूर है जिनकी स्थानीय अर्थव्यवस्थआ कोयला उद्योग पर टिकी है। कोयले की खदानों के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोग कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं जिनमें वायु और पानी के प्रदूषण से लेकर पानी की कमी और खराब बुनियादी ढांचा तक शामिल है।
झारखंड की 3.3 करोड़ आबादी में से 40 फीसदी लोग गरीब हैं। स्थानीय लोग कहते हैं कि बिजली की कमी उनके विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा है। ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद की तरफ से 2022 में किए एक विश्लेषण के मुताबिक झारखंड के 80 फीसदी घरों में हर रोज कम से कम एक बार बिजली जाती है जो आठ घंटे तक लंबी हो सकती है। ये कोयले के धनी छत्तीसगढ़ और उड़ीसा जैसे राज्यों की तुलना में करीब दोगुनी है।
कोरोना की बुरी मार
झारखंड में घरेलू बिजली के कनेक्शन तीन साल पहले 30 लाख थे जो अब बढ़ कर 50 लाख हो गए हैं। इसका श्रेय ग्रामीण इलाकों में बिजली पहुंचाने के सरकार के अभियान को है। इसके साथ ही कोविड-19 महामारी के दौर में हुई तालाबंदी के कारण वापस लौटे और फिर यहीं रह गए प्रवासियों ने भी इसमें बड़ी भूमिका निभाई। पावर कंपनी का कहना है कि इस वजह से भी बिजली की मांग बढ़ गई है। हालांकि नए ग्राहकों में बड़ा हिस्सा ऐसे लोगों का है जो बिजली का बिल देने की हालत में नहीं हैं।
फोटो सौजन्य –सोशल मीडिया