नई दिल्ली 17 अक्टूबर ( गणतंत्र भारत के लिए लेखराज ) : बीते कल यानी रविवार को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक में राष्ट्रपति शी जिन पिन ने सैनिक और रणनीतिक तैयारियों के साथ क्षेत्रीय़ और वैश्विक स्तर पर चीनी दबदबे जैसे मसले को उठाया। उन्होंने कहा कि, चीनी सेना ट्रेनिंग और युद्ध की तैयारी पर अब पहले से कहीं अधिक ज़ोर देगी। इस तैयारी का मकसद युद्ध लड़ने और उसे जीतने की क्षमता को बढ़ाना है ताकि ‘स्ट्रेटेजिक डेटेरेंसट’ का एक मज़बूत सिस्टम बनाया जा सके। पांच साल में एक बार होने वाली पार्टी कांग्रेस की इस बैठक में चीन ने गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिको के बीच मुठभेड़ का वीडियो चलवाया और उस सैन्य अभियान से जुड़े एक अफसर को बैठक के लिए निमंत्रित किया गया।
कांग्रेस में वर्क रिपोर्ट पेश करते हुए जिन पिन ने भारत और अमेरिका की समारिक नीतियों को चीन के खिलाफ गठजोड़ करार दिया। उन्होंने फिर कहा कि, ताइवान चीन का हिस्सा है और चीन अपने हितो की रक्षा के लिए शक्ति प्रयोग करने से भी नहीं चूकेगा। चीन ने साउथ चाइना सी के समुद्री क्षेत्र पर भी अपने दावे को दोहराया। कुल मिलाकर कहें तो बैठक में चीनी राष्ट्रपति चैयरमैन माओ के नए अवतार में नजर आए।
गलवान का जिक्र क्यों ?
सवाल ये है कि चीन के राष्ट्रपति इस तरह के दावों और बयानों से दुनिया और खुद अपने देश को क्या संदेश देना चाहते हैं? क्यों भारत और ताइवान को लेकर उन्होंने भड़काऊ बयान दिए और इन देशों को अमेरिकी गठजोड़ के मोहरे के रूप में संबोधित किया? गलवान का विशेष जिक्र और उसका वीडियो चलवाना, सैन्य अभियान से जुड़े सैनिक अफसर को आमंत्रित करना जैसी बातें भविष्य में भारत को लेकर चीन की रणनीति के बारे में कुछ संकेत देते हैं या फिर विदेश से ज्यादा अपने खुद के देश में शी जिन पिन अपनी ताकत का एहसास करना चाहते हैं ?
जिन पिन की कमजोर होती पकड़
पिछले दिनों चीन में सत्तापलट और शी जिन पिन के खिलाफ बगावत के खबरों की काफी चर्चा थी। बताया जा रहा था कि चीनी सेना पीएलए पर उनकी पकड़ कमजोर पड़ गई है और उन्हें सत्ता से बेदलखल किया जा सकता है। कुछ दिनों तक जिन पिन सार्वजनिक रूप से देखे भी नहीं गए। खबरों के अनुसार, जिन पिन का विरोध करने वाले नेताओं में अधिकतर वे नेता शामिल थे जो चीनी सेना और कट्टर सोशलिस्ट विचारों के समर्थक माने जाते रहे हैं। इस वर्ग को ताइवान और भारत को लेकर चीनी नीतियों पर आपत्ति रही है और इसने अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की अध्यक्ष और उनके प्रतिनिधिमंडल की ताइवान यात्रा पर चीनी रुख को लेकर शी जिन पिन की कड़ी आलोचना की थी। भारत के साथ सीमा विवाद के सवाल पर भी ये वर्ग शी जिन पिन के रवैये से खुश नहीं था। चीन के राष्ट्रपति होने के कारण शी जिनपिंग देश के सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के प्रमुख हैं। ये कमीशन बीस लाख की चीनी फ़ौज का एक तरह से हाई कमांड है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि, शी ने 63 पन्नों की अपनी वर्क रिपोर्ट में चीनी सेना, भारत, ताइवान, साउथ चाइना सी और सोशलिस्ट सिस्टम को और मजबूत करने का जिक्र करके दरअसल दुनिया को कम घरेलू मोर्चे पर कमजोर पड़ते अपने वजूद को थामने की कोशिश की है।
इस रिपोर्ट में शी ने सेना के बारे में एक विशेष चैप्टर रखा है। इस चैप्टर का नाम है -पीएलए के केंद्रीय लक्ष्य को हासिल करना और राष्ट्रीय रक्षा, सेना का और आधुनिकीकरण करना। चीन का ये विस्तृत मिलिट्री प्लान भारत के लिए अहम हो जाता है क्योंकि पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों के बीच स्टैंड-ऑफ़ अब पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ है। जून 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच ख़ूनी संघर्ष हुआ था जिसके बाद द्विपक्षीय संबंधों में गहरी दरार आ गई थी।
शी ने अपनी रिपोर्ट में स्थानीय युद्धों और सरहदों पर विवाद का ज़िक्र करते हुए किसी देश का नाम नहीं लिया लेकिन जून 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प वीडियो एक बड़ी स्क्रीन पर प्ले किया गया। ये वीडियो द ग्रेट हॉल ऑफ़ पीपल में शी के आने से पहले प्ले किया गया।
आपको बता दें कि, गलवान में हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिकों की मौत हो गई थी जबकि चीनी बयान में उसके कितने सैनिक की मौत हुई इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई थी। फऱवरी 2022 में ऑस्ट्रेलियाई अखबार ‘द कलेक्सन’ ने कम-से-कम 38 चीनी सैनिकों की मौत की खबर दी थी।
विशेषज्ञ, चीनी सेना को विश्व स्तरीय बनाते हुए एक आधुनिक सोशलिस्ट देश की रणनीतिक जरूरतों को पूरी करने के लायक बनाने के जिन पिन के बयान को भी सत्ता पर उनकी कमजोर होती पकड़ का संकेत मानते हैं।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया