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केजरीवाल जी, आखिर, आप फाइलों पर दस्तखत क्यों नहीं करते….?

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नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए लेखराज) : दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार के दो-दो मंत्री सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया इस समय़ जेल की हवा खा रहे हैं। मनीष सिसोदिया शराब लाइंसेंस घोटाले में जबकि सत्येंद्र जैन हवाला कारोबार जैसे संगीन मामले में गिरफ्तार किए गए हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद को कट्टर ईमानदार पार्टी का नेता बताते हैं और दावा करते हैं कि भ्रष्टाचार को लेकर उनकी पार्टी कोई समझौता नहीं करती। अपने दावे को पुष्ट करते हुए अरविंद केजरीवाल पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार के एक मंत्री की भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो से गिरफ्तारी की बात करते हैं।

लेकिन सवाल ये है कि क्या, अरविंद केजरीवाल दिल्ली में अपनी सरकार के मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर भी उतने ही संजीदा हैं? अरविंद केजरीवाल इन दिनों कई तरह के आरोपों से घिरे हुए हैं। खुद के बंगले के रेनोवेशन पर हुए 45 करोड़ के भारी-भरकम खर्च के अलावा उनकी सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं।

लेकिन, गणतंत्र भारत अपने इस आलेख में अरविंद केजरीवाल की कार्यशैली से संबंधित आरोपों के प्रश्न पर विमर्श करेगा। सवाल उठता है कि अपनी सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच भी मुख्यमंत्री कैसे पाक-साफ बचे हुए हैं ?

एलजी का नोट

दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर विनय कुमार सक्सेना ने पिछले दिनों दिल्ली सरकार को भेजे एक नोट में निर्देश दिया कि दिल्ली सरकार की तरफ से एलजी ऑफिस को अनुमोदन के लिए भेजी जाने वाली हर फाइल पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के दस्तखत होने चाहिए। दिल्ली सरकार के किसी भी मंत्री की तरफ से सीधे एलजी को फाइल न भेजी जाए। एलजी का कहना था कि मुख्यमंत्री दिल्ली सरकार के मुखिया हैं और उनकी सरकार के विभिन्न विभागों के मंत्रियों की हर फाइल पर उनकी अंतिम मुहर लगनी जरूरी है तभी फाइल एलजी ऑफिस को भेजी  जानी चाहिए।

दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर की तरफ से अपेक्षा की गई थी कि मुख्यमंत्री संसदीय लोकतंत्र की परंपराओं का निर्वहन करते हुए अपनी सरकार के फैसलों को लेकर अंतिम तौर पर जिम्मेदारी को स्वीकार करेंगे।

एलजी ऑफिस का सवाल बहुत जायज था। कुछ महीनों पहले ही दिल्ली सरकार और एलजी, दिल्ली का बॉस कौन, के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में कानूनी पचड़े में उलझे हुए थे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दिल्ली की चुनी हुई सरकार को ही दिल्ली का असली बॉस बताया और एलजी को अपनी मर्यादा और सीमाओं के बारे में आगाह किया।

यहां तक तो बात ठीक थी, लेकिन अब गेंद दिल्ली सरकार के पाले में थी। अदालती आदेश के अनुसार दिल्ली सरकार को भी संसदीय परंपराओं का अनुपालन करना जरूरी था। ऐसे में अरविंद केजरीवाल की सरकार की तरफ से एलजी ऑफिस को भेजी जाने वाली हर फाइल पर सरकार के मुखिया यानी मुख्यमंत्री का साइन होना जरूरी होता है और मुख्यमंत्री को उसका अनुपालन करना चाहिए।

केजरीवाल खुद को संयोजक मानते हैं

अरविंद केजरीवाल अब तक ये दलील देते रहे हैं कि उनके पास कोई मंत्रालय नहीं है और वे अपने मंत्रियों के काम की निगरानी और समीक्षा के लिए खुद को उपलब्ध रखते हैं। उनका कहना है कि वे आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय कन्वीनर हैं और वे सरकार में भी संयोजक की भूमिका में रहते हैं। इसीलिए मंत्रियों की तरफ से फाइल अनुमोदन के लिए सीधी एलजी को भेजी जाती है।

लेकिन, क्या इसे उचित माना जा सकता है ?  संविधान विशेषज्ञ और वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश सचान मानते हैं कि, ‘सरकार का मुखिया होने के नाते उनकी सरकार के हर विभाग की अंतिम जिम्मेदारी अरविंद केजरीवाल की बनती है इसलिए एलजी के पास अनुमोदन के लिए भेजी जाने वाली हर फाइल पर केजरीवाल के दस्तखत होना चाहिए।’

वे कहते हैं कि, ‘दिल्ली सरकार जितने भी घोटालों या विवादों में फंसी है और उसके मंत्री जेल गए हैं उन सभी में केजरीवाल तकनीकी तौर पर अभी तक सिर्फ इसीलिए बचे हुए हैं क्योंकि उन्होंने खुद किसी भी फाइल पर दस्तखत नहीं किया है जबकि ऐसा होना चाहिए था।’

सचान के अनुसार, ‘संसदीय परंपराओं में चुनी हुई सरकार में मुख्यमंत्री सामूहिक जिम्मेदारी का निर्वहन करता है और किसी भी मंत्री या विभाग पर उंगली उठने का मतलब मुख्यमंत्री पर सवाल उठना लेकिन क्या केजरीवाल इस पैमाने पर खरे उतरते हैं ?’ सचान सवाल उठाते हैं कि, ‘अपनी ही सरकार के मंत्रियों पर लग रहे आरोपों से मुख्यमंत्री खुद को कैसे अलग रख सकते हैं जबकि उनका तो काम ही उन्हीं के शब्दों में मंत्रियों पर निगरानी रखने का है। ऐसा नहीं हो सकता कि अच्छा-अच्छा खा और बुरा-बुरा थू। कही ऐसा तो नहीं कि फाइलों पर दस्तखत न करना केजरीवाल की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है।’

बहरहाल, अरविंद केजरीवाल का दावा है कि, वे कट्टर ईमानदार पार्टी के नेता हैं और उनके मंत्रियों पर लग रहे आरोप महज राजनीतिक हथकंडे हैं भर हैं लेकिन जैसे साक्ष्य और तथ्य सामने आ रहे हैं उनसे नहीं लगता कि अरविंद केजरीवाल जो कुछ भी दावा कर रहे हैं उसमें वाकई दम है। अरविंद केजरीवाल दिल्ली की चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्री हैं और वे अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते। सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी में नहीं उन्हें कागजों पर भी सरकार के हर फैसले की जिम्मेदारी लेनी होगी।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया      

 

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