जयपुर (गणतंत्र भारत को लिए कैलाश शर्मा) : राज्यसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं। जैसा लग रहा था, नतीजे कुछ उसी तरह से रहे। राज्य में मची राजनीत्क उठापटक के बीच एक बात साफ थी कि बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस के सभी 126 वोट सुरक्षित हैं और इस किलेबंदी को भेदना मुश्किल है। यही हुआ। निश्चित रूप से बीजेपी को मात देने के इस खेल में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के रणनीतिक कौशल का कोई तोड़ नहीं था।
भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेताओं ने जयपुर में पड़ाव डाला। चुनाव प्रभारी नरेन्द्र सिंह तोमर, बीजेपी के महामंत्री संगठन बी एल संतोष, राजस्थान के प्रभारी अरुण सिंह, राजनीतिक प्रबंधक सुधांशु त्रिवेदी आदि ने पड़ाव डाल लिया था। दिल्ली से खुद नरेंद्र मोदी की निगहबानी थी कि राजस्थान में कांग्रेस की किलेबंदी को भेदना है। तभी नंदकिशोर गोयनका के पुत्र सुभाष चंद्रा की इज्ज़त दांव पर लगा दी गई, जो नरेंद्र मोदी के हरियाणा में संघ के स्वयं सेवक रहते उनका पूरा ध्यान रखते थे। लेकिन सुभाष चंद्रा की हार को नरेन्द्र मोदी भी नहीं रोक पाए।
सुभाषचंद्रा की हार वस्तुतः बीजेपी की नहीं बल्कि खुद नरेन्द्र मोदी की हार है और इस पराजय की गाज राजस्थान के दिग्गज बीजेपी नेताओं पर गिरना स्वाभाविक है। इस चुनाव से एक बात बहुत साफ हो गई है कि राजस्थान में बीजेपी न केवल हारी है, बल्कि पार्टी के नेताओं का मनोबल भी टूट गया है।
अशोक गहलोत का कुशल प्रबंधन
इस जीत के लिए अशोक गहलोत निश्चित तौर पर बधाई के पात्र हैं। उन्होंने पिछले दस दिन में अपनी सजगता, सक्रियता और बेहतर प्रबंधन से पार्टी को सक्षम नेतृत्व दिया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के लिए ये जीत उम्मीद का महासागर लेकर आई है। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जो जिम्मा अशोक गहलोत को राज्यसभा चुनाव के लिए सौंपा था, उसका उन्होने उम्मीद से बेहतर निर्वहन किया। नतीजे से देश की राजनीति में अशोक गहलोत एक कुशल राजनीतिक प्रबंधक के रूप में उभरे हैं।
बीजेपी का भविष्य
जहां तक बात बीजेपी के राजस्थान में भविष्य की है, सच ये है कि अब बीजेपी का कुनबा बिखरा हुआ है। जिन पांच दिग्गजों वसुंधरा राजे, सतीश पूनिया, राजेंद्र सिंह राठौड़, गुलाब चंद कटारिया और चंद्रशेखर पर बीजेपी आलाकमान ने भरोसा किया था, उस भरोसे पर वे खरे साबित नहीं हुए। बल्कि इन सभी की असक्षमता एक्सपोज हो गई। मतलब इन सभी ने मोटे तौर पर बीजेपी आलाकमान का विश्वास खो दिया है। अब इनमें से कोई भी आगे राजस्थान बीजेपी का नेतृत्व कर सकेगा, ऐसा नहीं लगता। और सबसे बड़ी बात, केंद्रीय मंत्रियों गजेंद्र सिंह शेखावत, भूपेन्द्र यादव, अर्जुन मेघवाल, कैलाश चौधरी के होते हुए भी सुभाष चंद्रा जीत नहीं पाए। ये बीजेपी नहीं मोदी का हार है और इसकी टीस राजस्थान बीजेपी बहुत समय तक महसूस करेगी।
फोटो सौजन्य – सोशल मीडिय़ा