नई दिल्ली , 15 अगस्त (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) जहां आने वाले 15 अगस्त को सरकार ने कई दवाओं के दामों में कमी करने के संकेत दिए हैं, वहीं मेडिकल डिवाइसेस और इंप्लांट्स की कीमतों पर लगाम लगाने के मुद्दे पर वह खामोश है। हेल्थ एक्टिविस्ट्स और जनता की ओर से लंबे अरसे से इसकी मांग की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि ऐसा मल्टीनेशनल कंपनियों और विदेशी दबाव के कारण किया जा रहा है।
2017 में की थी कैपिंग
सरकार ने 14 फरवरी 2017 को दिल की धमनियों में लगने वाले स्टेंट्स के दामों की कैपिंग की थी और इसके बाद इसी साल नी इंप्लांट्स के रेट तय किए थे। इसके बाद यह मुहिम ठप पड़ गई। हालांकि यह बात अलग है कि निजी अस्पतालों ने स्टेंट्स और नी इंप्लांट्स की कम कीमतों का फायदा जनता तक पहुंचाने की सरकार की सरकार की मंशा पर, इन्हें लगाने की प्रक्रिया के रेट बढ़ाकर पलीता लगा दिया। हेल्थ ऐक्टिविस्ट्स का कहना है कि सरकार को पेसमेकर, दिल के वाल्व, डेंटल, हिप और कई इंप्लांट्स और मेडिकल डिवाइसेस के दामों की कैपिंग करके जनता को राहत पहुंचानी चाहिए और इन्हें लगाने के रेट भी फिक्स करने चाहिए। उनका यह भी कहना है कि सरकार ने स्टेंट्स और नी इंप्लांट्स की कीमतों पर तब कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए लगाम लगाई। इसके बाद वह सब कुछ भूल गई।
अमेरिका ने डाला था दबाव
सरकार ने जब दिल की धमनियों में लगने वाले स्टेंट्स और नी इंप्लांट्स की कीमतों के रेट तय किए तो देश के निजी अस्पतालों के साथ ही कई मल्टिनैशनल कंपनियों ने इसका खासा विरोध किया। कई निजी अस्पताल तो सरकार की अधिसूचना के बाद भी मनमाने रेट वसूलते रहे। जब सरकार की ओर से इन्हें नोटिस दिए गए तो इनकी मनमानी पर लगाम लग पाई। उधर, इनको बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां तो इनका विरोध कर ही रही थीं, उन्होंने अपनी सरकारों के जरिए भी भारत पर दबाव डलवाया। अमेरिकी सरकार का तो बाकायदा एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली आकर तत्कालीन वाणिज्य मंत्री और उनके मंत्रालय के अफसरों से मिला और रेट कैपिंग से जुड़ी अधिसूचना वापस लेने को कहा। इसके बाद से हेल्थ एक्टिविस्ट्स और जनता की तमाम मांगों के बावजूद सरकार अन्य इंप्लांट्स और मेडिकल डिवाइसेस की कीमतों की कैपिंग नहीं कर रही है।
एनपीपीए चेयरमैन को दिया था हटा
स्टेंट्स और नी इंप्लांट के रेट फिक्स करने में नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) के तत्कालीन चेयरमैन भूपेंद्र सिंह ने अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपने कार्यकाल में दिल्ली-एनसीआर के कुछ अस्पतालों को मनमाने बिल वसूलने के मामले में भी बेनकाब किया था। अस्पतालों और मेडिकल डिवाइसेस बनाने वाली कंपनियों के दबाव में उन्हें एनपीपीए से हटा दिया गया था। कहा जाता है कि सरकार के कहने पर ही उन्होंने रेट्स पर लगाम लगाई थी, लेकिन विदेशों से दबाव पड़ने पर उन्हें ही बलि का बकरा बना दिया गया।
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