नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुहासिनी) : ‘ठंडा मतलब कोकाकोला’ कोल्ड ड्रिंक्स के बाजार में वो टैगलाइन थी जिसने इस समूचे क्षेत्र में कोकाकोला की बादशाहत को सीना ठोंक कर जाहिर किया। कुछ ऐसा ही हाल बोतलबंद पानी के मामले में बिसलेरी का है। 2018 में बोतलबंद पानी के बाजार में आक्रामक रणनीति अपनाते हुए बिसलेरी ने कुछ ऐसी ही पहल ‘हर पानी की बोतल बिसलेरी नहीं होती’ की टैगलाइन के साथ की। बिसलेरी की सफलता की कहानी के कई पड़ाव हैं हालांकि इटैलियन मूल की ‘बिसलेरी’ दुनिया का इकलौता ऐसा ब्रांड नहीं है जिसने खुद को एक उत्पाद का पर्याय बना दिया लेकिन इस ब्रांड की असाधारण बात ये रही कि इसने पानी को एक कमॉडिटी बना दिया।
क्यों है बिसलेरी पर चर्चा ?
बिसलेरी इंटरनेशनल के अध्यक्ष रमेश चौहान ने हाल ही में घोषणा की है कि वे टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड (टीसीपीएल) के साथ अपने इस ब्रांड को 6,000-7,000 करोड़ रुपए में बेचने के लिए बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे टाटा समूह को ब्रांड सौंप रहे हैं क्योंकि ये ग्रुप उनके मूल्यों का समर्थन करता है और इसलिए भी कि उनकी बेटी को इस कारोबार को चलाने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
बिसलेरी की कहानी और सफलता के महत्वपूर्ण पड़ाव
- बिसलेरी की जड़ें इटली से जुड़ी हुईं है। कहा जाता है कि इसकी शुरुआत नोकेरा उम्ब्रा शहर के एंजेलिका नामक एक झरने से हुई थी। ब्रांड की अवधारणा सबसे पहले फेलिस बिसलेरी नाम के उद्यमी ने की थी। 1921 में उनकी मौत के बाद उनके पारिवारिक डॉक्टर डॉ सेसरे रॉसी को कंपनी की बागडोर संभालने के लिए दी गई।
- भारत में पहला ‘बिसलेरी वाटर प्लांट’ 1965 में मुंबई के बाहरी इलाके ठाणे में खुसरू सुनतूक नेस्थापित किया। चार साल बाद 1969 में पारले बंधुओं- रमेश चौहान और प्रकाश चौहान ने महज चार लाख रुपए में इस ब्रांड का अधिग्रहण कर लिया।
- 1991 में 20 लीटर की एक केन के साथ-साथ बिसलेरी ने बाजार में अपना एक प्रीमियम वॉटर ब्रांड, ‘वेदिका – हिमालयन स्प्रिंग वाटर’ भी लॉंच किया। कंपनी का दावा था कि ये ‘उत्तराखंड में हिमालय की तलहटी में मौजूद ‘जल स्रोत’ से लिया जाता है
- चौहान बंधुओं के दिल के कितना करीब था बिसलेरी इसे इस बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने 1993 में अपने सॉफ्ट-ड्रिंक पोर्टफोलियो के थम्स अप, गोल्ड स्पॉट, सिट्रा, माज़ा और लिम्का को कोका-कोला को बेच दिया लेकिन बिसलेरी को अपने पास ही रखा।
- अपने प्रतिद्वंदी ब्रांड किनले और एक्वाफिना की तरह बिसलेरी भी 2006 तक अपनी पैकेजिंग पर नीले रंग के लेबल का इस्तेमाल करता था लेकिन उसके बाद इसने भीड़ से अलग दिखने की कवायद में ‘समुद्री हरे रंग’ को अपना लिया।
- बिसलेरी जैसा ब्रांड जब भारत में शुरू हुआ, तो बोतलबंद पानी सिर्फ विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता था। लेकिन समय के साथ लोगों का झुकाव इस तरफ बढ़ा और इसकी प्लास्टिक पैकेजिंग को गंभीरता से लिया गय़ा।
- बिसलेरी की वेबसाइट के अनुसार, मौजूदा समय में देश भर में इसके 122 प्लांट हैं। इसके अलावा इसके 4,500 डिस्ट्रीब्यूटर और 5,000 डिस्ट्रीब्यूशन ट्रक हैं।
- बोतलबंद पानी के बाजार में बिसलेरी की हिस्सेदारी32 से 35 फीसदी के बीच है। बिसलेरी की 250 मिली से लेकर 20 लीटर तक की बोतलें बाजार में उपलब्ध हैं।
- बिसलेरी की पैकेजिंग में अंग्रेजी समेत 11 भारतीय भाषाओं के लेबल लगे होते है। ऐसा करने के पीछे भी एक बड़ी वजह थी। नकली प्रोडक्ट का मुकाबला करने के लिए 2017 में ‘वन नेशन वन वाटर’ नामक अभियान के तहत बिसलेरी बहुभाषी लेबल लेकर आई।
ब्रांड के साथ पहुंच
बिसलेरी के साथ बोतलबंद पानी के बाजार में किनले और एक्वाफिना जैसे दूसरे ब्रांड भी उपलब्ध हैं लेकिन उनके साथ दिक्कत उनकी सीमित पहुंच और पसंद को लेकर है। बिसलेरी को देश के कोने-कोने में पाया जा सकता है जबकि दूसरे ब्रांडों के साथ ऐसा नहीं है। बिसलेरी के कद्रदान अपने ब्रांड को लेकर आमतौर पर जिद्दी होते हैं। वे पानी को लेकर अपनी खास पसंद पर कोई समझौता करने को जल्दी तैयार नहीं होते। 2018 में बिसलेरी ने एक एड कैंपेन लॉंच किया जो काफी हद तक उसके ग्राहकों की इसी सोच को जाहिर करता था। इस एड कैंपेन की टेगलाइन थी- ‘हर पानी की बोतल बिसलेरी नहीं होती।’ इस कैंपेन का मकसद बाजार में उपलब्ध दूसरे ब्रांडों से खुद को अलग दिखाने की थी। ऊंटों पर फिल्माए गए इस विज्ञापन को लोगों ने खूब पसंद किया।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया