नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : उत्तराखंड में पिछले साल बीजेपी की सरकार बनने के बाद से ही राज्य एक के बाद एक कई गलत वजहों से चर्चा में है। अंकिता हत्याकांड, एक के बाद एक सरकारी परीक्षाओं के पर्चे लीक होने, बेरोजगार युवाओं पर लाठीचार्ज और तमाम अन्य घटनाओं के बाद अब राज्य में वनों के अवैध कटान और वन क्षेत्र में खेती कराने के मामले सामने आ रहे हैं। इस मामले में राज्य सरकार ने कुछ वन अधिकारियों और कर्मचारियों को निलंबित तो किया है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई बिना किसी बड़े संरक्षण के संभव नहीं है। लोगों का ये भी कहना है कि जंगल काटने के हर मामले की गहनता से जांच होनी चाहिए और इसमें शामिल हर शख्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाई जरूरी है।
गौरतलब है कि हाल में ही चकराता वन प्रभाग के कनासर रेंज में बड़ी संख्या में देवदार और कैल के बेशकीमती पेड़ काट डाले गए। रपटों के मुताबिक, ये सारा खेल नाप भूमि के नाम पर किया गया। नाप भूमि वो होती है, जिस पर किसानों का अधिकार होता है। इस भूमि पर देवदार, कैल जैसी प्रजातियों के पेड़ काटने के लिए राज्य सरकार की मंजूरी जरूरी होती है और वो आसानी से नहीं मिलती।
सूत्र कहते हैं कि कनासर रेंज में जिस तरह से देवदार और कैल के सैकड़ों पेड़ों को काटा गया है, वो बिना अधिकारियों और सफेदपोशों की मिलीभगत के संभव नहीं है। यहां देवदार के सैकड़ों साल पुराने जंगल को साफ कर दिया गया। सूत्र ये भी बताते हैं कि यहां कुछ पेड़ों को काटने की अनुमति लेकर बड़ी संख्या में बेशकीमती पेड़ काट दिए गए और ये काम बिना मिलीभगत के संभव नहीं है। कनासर रेंज में देवदार का एक पेड़ करीब तीन सौ साल पुराना है। इसे संरक्षित पेड़ों की श्रेणी में रखा गया है। ये एशिया में देवदार का सबसे पुराना पेड़ है। इसके तने की गोलाई 6.33 मीटर है। वन विभाग अब इस रेंज से काटे गए पेड़ों की तलाश कर रहा है। उसने आसपास के इलाकों से बड़ी तादाद में देवदार और कैल के स्लीपर बरामद किए हैं। चकराता और इसके आसपास के इलाके में देवदार के पेड़ों की भरमार है और ये इस शहर को बेहद खूबसूरत लुक देते हैं।
बहरहाल, अभी कुछ समय पहले उत्तरकाशी जिले के पुरोला-टौंस रेंज में भी देवदार के 108 हरे पेड़ों को अवैध तरीके से काट दिया गया। यहां वन विकास निगम को 788 पेड़ काटने की अनुमति मिली थी, लेकिन इसके साथ ही देवदार के 108 पेड़ और काट दिए गए। इस मामले में अभी तक 17 वन अधिकारियों और कर्मचारियों को निलंबित किया जा चुका है। कनासर में भी कइयों का निलंबन हुआ है। इसके साथ ही राजाजी पार्क के वन क्षेत्र के काफी बड़े इलाके में खेती कराने का भी मामला सामने आया है। जाहिर है, यहां भी खेती कराने के लिए जंगलों का सफाया किया गया।
गौरतलब है कि उत्तराखंड बेशकीमती वन संपदा का खजाना है। इसके कारण वन तस्करों की नजरें इस पर गड़ी रहती हैं। जंगलों से लकड़ी के साथ ही लीसे और और जड़ी-बूटियों की तस्करी भी यहां आम है। खनन माफिया भी राज्य में सक्रिय रहता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कनासर और टौंस का मामला बड़ा होने के कारण नजर में आ गया, वरना यहां लकड़ी और अन्य वन संपदा की तस्करी तकरीबन हर रेंज में होती है। उनका ये भी कहना है कि कनासर और टौंस में जो कुछ हुआ है, वो बड़ी साजिश का नतीजा है और इसमें सरकारी अधिकारियों के साथ ही कई सफेदपोश माफिया भी शामिल हैं। वे कहते हैं कि इस पूरे मामले की सीबीआई जांच जरूरी है, तभी इस कांड में शामिल हर चेहरा बेनकाब हो सकेगा।
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